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अतिकाय-अतींद्रिय अतिकाय-वि० [सं०] भारी डील-डौलवाला विशालकाय । रामको सिखायी थी; एक पौधा जो दवाके काम आता है। पु० रावणका एक बेटा ।
अतिमुक्त-वि० [सं०] जिसे मुक्ति मिल गयी हो; वीतअतिकाल-पु० [सं०] बेलाका बीत जाना; अबेर ।
राग । पु० दे० 'अतिमुक्तक' । अतिक्रम,-क्रमण-पु० [सं०] (क्षेत्र, अधिकार आदिकी) | अतिमुक्तक-पु० [सं०] माधवी लता; एक वृक्ष । सीमाका उलंघन; कर्तव्यका उल्लंघन; दुरुपयोगः प्रबल | अतिमूत्र-पु० [सं०] बहुमूत्र रोग । आक्रमण; बीतना बढ़ जाना (बल, संख्या आदिका); अतिमैथुन-पु० [सं०] अत्यधिक स्त्री-संभोग। जीतना; काबू पाना; (एंक्रोचमेंट) अपनी भूमि,अधिकार, | अतिमोदा-स्त्री० [सं०] सुगंधकी अधिक मात्रा; नवकर्तव्य आदिकी सीमाका उल्लंघन कर दसरेकी भूमि, मलिका, नेवारी।। अधिकार आदिकी सीमामें प्रवेश, कब्जा या हस्तक्षेप अतियोग-पु० [सं०] अतिशयता; रेल-पेल; औषधमें करना, सीमोलंघन; (वायोलेशन) संधि आदिकी शौका द्रव्यविशेषको नियत मात्रासे अधिक मिलाना । अपालन वा उलंघन।
अतिरंजन-पु० [सं०] बढ़ा-चढ़ाकर कहना। अतिक्रांत-वि० [सं०] आगे बढ़ा हुआ; बीता हुआ; अतीत; अतिरंजना-स्त्री० [सं०] बढ़ा-चढ़ाकर कहना, अतिक्रमका उलंघन किया हुआ । पु० बीती हुई बात ।
शयोक्ति। अतिक्रामक-पु० [सं०] क्रम या मर्यादाका उहंघन अतिरथ, अतिरथी(थिन्)-पु० [सं०] अवेले बहुतोंसे करनेवाला।
लड़नेवाला रथारूढ़ योद्धा । अतिगति-स्त्री० [सं०] उत्तम गतिः मुक्ति ।
अतिरिक्त-वि० [सं०] बढ़ा हुआ, नियत परिमाणसे अधिक अतिचरण-पु० [सं०] जितना करना हो उससे अधिक । फाजिल; भिन्न अद्वितीय । अ० सिवाय, अलावा ।-पत्रकरनाः समान सीमा या अधिकारके बाहर जाना। -पु०वह समाचार या विज्ञप्ति आदि जो अलग छापकर अतिचार-पु० [सं०] अतिक्रमण, आगे बढ़ जाना; एक- समाचार-पत्रके साथ बाँटी जाय, क्रोडपत्र । -लाभराशिका भोगकाल समाप्त हुए बिना दूसरीमें चला जाना
(एक्सेस प्रॉफिट) साधारण या नियमितसे अधिक लाभ । मर्यादाका उहंघन ।
अति(ती)रेक-पु०[सं०] आधिक्य, अतिशयता आवश्यअतिचारी (रिन्)-वि० [सं०] अतिक्रमण करनेवाला,
श्यकतासे अधिक, फाजिल होना; अंतर । आगे निकल जानेवाला।
अतिरोग-पु० [सं०] राजयक्ष्मा, क्षयरोग । भतिजीवन-पु० (सरवाइवल) अन्य व्यक्तियों, प्रजा
अतिवक्ता(क्त)-वि० [सं०] बकवादी, बहुत बोलनेवाला। तियों, प्रथाओं आदिके समाप्त हो जानेके बाद भी किसी अतिवाद-पु० [सं०] कठोर वचन डींग; अतिरंजना। व्यक्ति, प्रजाति, प्रथा आदिका जीवित या बना रहना। अतिवादी(दिन्)-वि० [सं०] बहुत बोलनेवाला; सबके अतिथि-पु० [सं०] अभ्यागत; वह संन्यासी जो कहीं एक
मतका खंडन कर अपने पक्षकी स्थापना करनेवाला खरी रातसे अधिक न ठहरे; यज्ञमें सोम-संबंधी कार्य करने बात कहनेवाला डींग मारनेवाला। वाला अनुचर । -क्रिया-स्त्री० आतिथ्य । -गृह,- अतिवाहन-पु० [सं०] विताना, यापन; भेजना। भवन-पु० (गेस्ट-हाउस) अतिथियों, अभ्यागतीको
अतिवृष्टि-स्त्री० [सं०] अत्यधिक वर्धा । ठहरानेके लिए निर्धारित गृह, प्रकोष्ठादि । -देव-वि० अतिवेला-स्त्री० [सं०] अतिकाल, अबेर; वेलाका अतिक्रम। जिसके लिए अतिथि देवरूप हो। -पति-पु० मेजबान। अतिव्याप्ति-स्त्री० [सं०] लक्षणमें लक्ष्यके अतिरिक्त अन्य -पूजा-स्त्री० अतिथिका स्वागत-सत्कार । -शाला- वस्तुका भी आ जाना (न्याय); लक्षणके तीन दोषोंमेंसे एक। स्त्री० (गेस्ट हाउस) दे० 'अतिथिगृह' । -सत्कार-पु०, अतिशय-वि० [सं०] बहुत ज्यादा; अत्यधिक । पु० -सेवा-स्त्री० अतिथिपूजा, मेहमानकी आवभगत । अधिकता; अतिरेक; श्रेष्ठता; एक अर्थालंकार । अतिदर्प-पु० [सं०] अत्यधिक अभिमान ।
| अतिशयोक्ति-स्त्री० [सं०] किसी बातको बढ़ा-चढ़ाकर अतिदेश-पु० [सं०] अन्य वस्तुके धर्मका अन्यपर आरो- कहना, अतिरंजना; एक अर्थालंकार जिसमें किसी वस्तुका पण निर्दिष्ट विषयके अलावा और विषयोंपर भी लागू अतिरंजित वर्णन होता है। होनेवाला नियम सादृश्य, उपमा; निष्कर्ष ।
अतिसंधान-पु० [सं०] धोखा, छल-कपट; अतिक्रमण अतिदोष-पु० [सं०] बहुत बड़ा दोष, अपराध ।
उचित लक्ष्यसे आगे निशान लगाना ( ओवर हिटिंग, अतिपात-पु० [सं०]अतिक्रम नियम वा मर्यादाका उलंघन; ओवर शूटिंग)। (कालका) व्यतीत हो जाना; अव्यवस्था विरोध; विघ्न । अतिसंधि-स्त्री० [सं०] शक्तिसे अधिक सहायता देनेकी अतिपातक-पु० [सं०] धर्मशास्त्र में बताये हुए ९ महा- प्रतिज्ञा एक मित्रकी सहायतासे दूसरे मित्र या सहापातकोंमेंसे सबसे बड़ा।
यककी प्राप्ति । अतिप्रजनन-पु० (ओवर पॉपुलेशन) किसी देश या क्षेत्र- अति(ती)सार-पु० [सं०] दस्त या आँवकी बीमारी। की आबादीका इतना अधिक बढ़ जाना कि उसके लिए। अतिसौरभ-वि० [सं०] अत्यधिक सुगंधवाला । पु० बहुत वहाँ समुचित रूपसे निर्वाह करना कठिन हो गया हो। अधिक सुगंध; आम। अतिबल-वि० [सं०] अति बलवान् (ऐसायोद्धा)जो बहुतोंसे अतिहसित-पु० [सं०] हासके छः भेदोंमेंसे एक; जोरकी अकेले लड़ सके । पु० बहुत बड़ा बल; शक्तिशाली सैन्य ।। हँसी। अतिबला-स्त्री० [सं०] एक अस्त्रविधा जो विश्वामित्रने अतींद्रिय-वि० [सं०] इंद्रियोंकी पहुँचके बाहर अगोचर ।
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