Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शास्त्र सांभलवाथी स्हेज, विपदा वामेरे; अति दुर्लभ शिव पुरपंथ, प्राणी पामेरे. ॥५॥ माटे शास्त्र श्रवण हररोज, कोडे करीयेरे धरी आगममांही लक्ष, भवजल तरीयेरे. वांधी प्रभुना संगाथे प्रीत, प्रीत विचारीरे; जैनधर्म साचो छ एम, दृढमति धारीरे, ॥७॥ को लक्ष विषेथी अलक्ष, पक्ष तजीनेरे, कीधी सद्गुरुनी सेवाय, स्नेह सजीनेरे. ॥८॥ माटे नरभव पामीने जेह. सत्संग करशेरे; तेनो लक्षचोराथी स्हेज, आत्मा उद्धरशेरे. ॥९॥ थयो जैन विष अनुराग, शास्त्र श्रवणथीरे; थाय अजित जगतमांहि जित, जन्ममरणथीरे. ॥१०॥ काव्य. त्रिविधतापहराय शुभात्मने, जगति जन्मवतां सुखदायिने । कुमतिकर्दमन्दविशोषिणे, परिदधाम्यतिशीतलचन्दनम् ॥१॥ ॐ ही श्री गुरुपदपूजार्थ चन्दनं समर्पयामि स्वाहा. सम्यक्त्व ग्रहणरूपा तृतीयपुष्पपूजा. ॥३॥ दुहा. आगमज्ञान विना कदी, मानव मोक्ष न जाय; वस्तुमात्रनां तत्त्व ते, आगमथी समजाय ॥१॥ For Private And Personal Use Only

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