Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
७३
प्रगूढभावनी तमे अगूढता करी, प्रमूढलोकनी घणीज मूढता हरी; अगाधभावमा अगाधबुद्धि स्पर्शति, स्वीकारजो सदा अमारी आ नमस्कृति. कविता प्रसंगमां कवित्व दर्शतुं, हरेक सौम्य वातमांही हुं हतुं; न जाणुं आपनी गुरो ! कइ हती गति, स्वीकारजो सदा अमारी आ नमस्कृति. ॥७॥ मधुर ज्ञाननां तमे उबाडी वारणां: उद्धार लोकनो कर्यो उतारुं वारणा: अजित शिष्यनी पदाब्जमांही विनति, स्वीकारजो सदा अमारी आ नमस्कृति. ॥८॥
२७
मस्त फकीरी.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only
६
पूनमचांदनी खोली पूरी अहींरे-ए राग. अति अलमस्त फकीरी बुद्धिसागर महाराजनीरे, जेनुं वर्णन करतां वाणी विरमी जाय, अति-ए टेक. साखी - शांतस्वरूप सोह्यामनुं, शांतस्वरूप सत्कर्म; शांत भरेली वाणीथी, पावन पाल्या धर्म. निर्मल एक अगोचर अलख निरंजन ध्यानमारे; अवधूत एवी दशानी वृत्ति केम विसराय अति० ॥ १ ॥

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102