Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 8888888888888888 ॥सदगुरुश्रीमद्बुद्धिसागरसूरीश्वरपादपद्मेभ्योनमः॥ गुरुपदपूजा. 8888888888888888888888888 BOOB®®®®BBBBBBBBBBBBBR888 RA NDITRA प्रकाशकशा. सामलदास तुलजाराम मु. प्रांतिज. लेखकप्रसिद्धवक्ताआचार्यश्रामअजितसागरमूरि. वि. संवत् १९८२. बुद्धि संवत् १. फाल्गुन शुक्र ३. ER == = = ==E For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ॐ वन्दे श्रीमहावीरमा निवेदन आ दुनियामां दश दृष्टांते दुलप सोमा धन पारी आत्मसाधन कर, एज सौथी प्रथम कत्तव्य छ. पैते आत्मसाधन तत्वज्ञान शिवाय सिद्ध थतुं नथी. वली ते तत्वज्ञाननी प्राप्ति सद्गुरुद्वारा थइ शके छे. कारण के विशाल नेत्र छतां पण अंधकारमा रहेली वस्तु जेम माणसो देखी शकता नथी, तेम अज्ञानथी आवृत्त बुद्धिवाला पामर पुरुषो ज्ञेय वस्तुने ओलखी शकता नथी. माटे सद्गुरुनो आश्रय एज मुख्य ज्ञान साधन छे. कारणके । नास्ति तत्त्वं गुरोः परम् ॥ गुरुथी अन्य कोइ श्रेष्ठ वस्तु नथी. तेमज गुरुत्व विनिश्चयमां पण कर्तुं छे के: गुरु आणाए मुक्खो, गुरुप्पसायाउ असिद्धिओ। गुरुभत्तीए विज्जा, साफलं होइ णियमेणं ॥१॥ गुरुनी आज्ञा प्रमाणे प्रवृत्ति करवामां आवे तोज मोक्ष लाभ थइ शके. गुरुमहाराजनी प्रसन्नताथीज अष्टसिद्धिओ प्राप्त थाय छे. गुरुभक्ति विना विद्याभ्यास करवामां आवे छतां For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧ पण सफल थतो नथी. अहो ! गुरुप्रभाव केवो अलौकिक छे, जेनो अवधि पण आंकी शकातो नथी. शरणं भव्व जिआणं, संसाराडविमहाकलम्मि | मुत्तुणं गुरु अन्नो, णत्थि होही णविय हुत्था ||२|| आ जगत्नी अंदर मृषावादी असद्मार्गना उपदेशको तो घणाए दृष्टिगोचर थाय छे. परंतु मितभाषी सन्मार्गना यथार्थ उपदेष्टा गुरु तो क्वचितज होय छे, तेवा सदगुरु विना अन्य कोण भव्य जीवोने संसाररूप अति गहन अटवीमां शरण छे नही. भविष्यमां पण गुरु शिवाय अन्य त्राता नथी, तेमज प्राचीन कालमा पण गुरु एज उद्धारक थएला छे, माटे त्रणे कालमां गुरु शिवाय कोइनो उद्धार थतो नथी. मुरुभक्तिथीज आ संसारसागर तरवानो छे अने गुरु शिवाय अज्ञान टलवानुं नथी. जह दीवो अप्पानं, परंच दीवइ दित्ति गुणजोगा । तह रयणत्तयजोगा, गुरूवि मोहंधयारहरो ॥ १ ॥ हे भव्यात्माओ ! जेम दीपकमां प्रकाशक गुण रहेलो छे, जेथी ते पोताने अने परपदार्थने प्रकाशित करे छे. तेबीज रीते ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप रत्नत्रयना आराधक होवाथी गुरुपण मोहरूपी अंधकारने दूर करी पोताने अने परने दीपावे छे. For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माटे ज्ञानदाता गुरु आ विश्वमां पूज्यतम छे. गुरु संबंधि महिमा शास्त्रोमां बहुधा प्रतिपादन करवामां आव्यो छे. उपरोक्त गुरु गुणयुक्त शास्त्रविशारद जैनाचार्य योगनिष्ठ सदगुरु श्रीमद् बुद्धिसागर सूरीश्वरजी वि० सं० १९८१ ना जेष्ठ वदी ३ मंगलवार प्रभातमा सवाआठ वागे विजापुर मुकामे स्थूल देहनो त्याग करी परमपदने प्राप्त थया. तेओश्री जैन जैनेतर समग्र प्रजाने केटला उपकारकारक अने केटला प्रिय हता तेनो उल्लेख करवा करतां तेओश्रीना देहांत समाचार जाणतां देशदेशांतरोना कागलो अने तारो अमारा पूज्य गुरुश्रीना उपर आवेला के जे हालमां मु. पादरा अध्यात्म ज्ञानप्रसारक मंडल तरफथी छपाइने बहार पड्या छे, ते वांचवाथी सर्व कोइना जाणवामां आवशे. वली प्रातःस्मरणीय गुरुदेव सदाने माटे आपणा पुष्टावलंबनरूपे उपकार कर्याज कर तेवा हेतुथी गुरुपतिमाने गुरु समान मानी गुरु विरहे गुरु स्थापना पण गुरु समानज छे, ए हेतुथी गुरुश्रीनो जे स्थले अग्नि संस्कार करवामां आव्यो हतो ते स्थले अमारा गुरु महाराजना सदुपदेशथी समग्र जैन संघना उदार हाथ नीचे विजापुरना जैनसंघे मनोहर समाधिमन्दिर तैयार करावी तेमां गुरुमूर्ति स्थापन करी छे. ते मंगलमयमूर्तिनी पूजामाटे घणा मुनिओ तथा सद्गृहस्थो तरफथी मागणीओ थवाथी गुरुभक्ति निमित्ते अमारा परमपूज्य गुरुश्री अजितसागरसूरिजीए सुल For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लित भाषामा प्रशस्त भावथी भरपुर आ बन्ने गुरुपद पूजाओ, आरती, मंगल प्रदीप अने गुरुदेवना मुख आगल प्रार्थना कर वानां स्तवनो विगेरे तैयार करी आप्यां छे. ते जाहर करतां आजे मने अति आनन्द थाय छे. ॐ अहं शान्तिः ॥३॥ विजापुर फागण सुद ३ सोम ! ले. मनि हेमेन्द्रसागर. वि. १९८२ बुद्धि. सं. १ For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथगुरुपूजाभणाववानो विधि, उपाश्रयनी अंदर अथवा अन्यस्थानमां गुरुनां पमलां स्थापवां, अथवा केशरचंदननी बे पादुका किंवा चोखानी पादुकाओ करवी, अगर गुरुनी प्रतिकृति (छबी) होय तो ते स्थापवी. स्नात्र भणाववानी आवश्यकता नथी. जलपूजानो कलश जलपूजा भणावीने आगल भागमां स्थापन करवो, पाषाण धातु विगेरेनी गुरुमूर्ति होय तो तेनी उपर जलनो अभिषेक करवा. तेमज चंदन पूना विगेरे जिन प्रतिमानी माफक करवी. पाषाणनां पगला होय तो ते उपर जलाषिक तथा चन्दन, पुष्प विगरे प्रतिमानी पेठे चढाववां, धूप, दीप तेमनी आगल स्थापन करवां, पगलां अथवा मूर्तिनी आगल स्वस्तिक नैवेद्य फलने ढांकवा, केशर चंदननी पादुकाओ करी होय तो तेमनी आगल जल कलशादिक स्थापन करवां. जिन मंदिरमा गोखलानी अंदर गुरुमूर्ति अथवा पादुकाओ होय तो श्री जिनप्रतिमानो मूळ गभारो बंध करीने गुरुपादुका किंवा गुरुमूर्तिनी आगळ गुरु पुजा भणाववी. अरिहंत भगवान् जेम परमेष्ठी छे, तेम आचार्य, उपाध्याय अने मुनि ए त्रण पंचपरमेष्ठीमा रहेला छे. तेथी तेमनी मूर्ति तथा पादुकाओ For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करवामां आवे छे अने ते जिनमूर्ति तथा जिनपादुकानी माफक पूजवा योग्य छे, मूरिपदधारक जे मुनिए जे दिवसे देहोत्सर्ग को होय, ते दिवसे भक्तिभावथी गुरुपूजा भणाववी, स्नात्रिआओने मिष्टान्नथी जमाडवा,तेमज तेमने मोदक आदिनी प्रभावना करवी. पूजामां आवेला सर्व साधर्मिक बन्धुओनी प्रभावनापूर्वक भक्ति करवी, एटलुज नहीं पण शक्ति होय तो जमण पण करवं. पादुका अगर मूर्ति आगल उत्सव करवो. सांजना समये टोळी बेसाडी गुरुभक्तिनां स्तवनो तथा गायनो गावां. गुरुभक्ति निमित्ते साधु साध्वीनी विशेष सेवा भक्ति करवी. गुरुचरित्रनुं व्याख्यान सांभळवू. ते निमित्ते धार्मिक पुस्तको छपाववामां यथाशक्ति उद्योग करवो. गुरुनो महिमा वधारवामां प्रमाद करवो नहि. गुरुश्रीना उपदेश प्रमाणे सदः तैन करवू. गुरु पादुका तथा गुरुमूर्तिनी सुगंधित पुष्पोथी पूजा करवी. For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ט गुरुपद पूजा. प्रणम्य सिद्धार्थसुतं वरेण्यं, तनामि पूजां गुरुसिद्धिसौधम् श्रीसद्गुरूणामुपदेशखानी, भक्तिप्रभावोल्लसदात्मशक्तिः ।। सकलवृद्धिकराय महात्मने, निखिलकर्ममलक्षयकारिणे गुरुवराय वरिष्ठगुणात्मने, जलमहं विमलं परिकल्पये ॥१॥ ॐ ह्रीं श्री गुरुपदपूजार्थं जलं समर्पयामि - त्रिविधतापहराय शुभात्मने, जगति जन्मत्रतां सुखदायिने । कुमतिकर्दमवृन्दविशोषिणे, परिदधाम्यतिशीतलचन्दनम् ॥२॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥३॥ ॐ ह्रीं श्री गुरुपदपूजार्थं चन्दनं समर्पयामि - सुरभिदहगुणेन सुवासित - सकलभूक्लयाय जितात्मने । सुरनरेन्द्रगणस्तुत कर्मणे, सुगुरवे कुसुमानि यजामहे ॐ ह्रीं श्री सदगुरुपदपूजार्थं पुष्पाणि यजामहेविषयवाजिवशीकरणौजसे, मदविषोद्धरणोत्तमशक्तये । मतिमतां हृदि निश्चितमूर्त्तये, गुरुवराय सुधूपमहं यने ॐ ह्रीं श्री सद्गुरुपदपूजार्थं धूपं समर्पयामि - भक्किनिर्मलबोधविकासिने, प्रथितकीर्त्तियशोविशदात्मने । प्रहतकर्मचयाय तमोहरं, विशददीपमहं परिकल्पये A NY ७ ७ ॐ ह्रीश्री सद्गुरुपदपूजार्थं दीपं यजामहे ॥ For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भवभयक्षतिकर्म विधायकान् शुभगुणाचरणोत्तमशिक्षकान् । शिवनिकेतनकेतन तुल्यकान् परिदधामि पवित्रतराक्षतान् ॥६॥ ॐ ह्रीं श्री सद्गुरुपदपूजार्थं अक्षतान् यजामहे ॥ जैनेन्द्रशासनधुरन्धरपुङ्गवाय, ज्ञानात्मने विजितलौकिकभावनाय । श्रद्धालतान विनवारिधराय शुद्धं, नैवेद्यमुत्तममहं विनिवेदयामि ॥ ७ ॥ ॐ ह्रीं श्रीं सद्गुरुपदपूजार्थं नैवेयं यजामहे - त्रैलोक्यतारकगुणाय वरप्रदाय, सर्वात्मना विहितजन्तुदयोदयाय । निर्वृत्तिधर्मपथदर्शकनायकाय, सम्यक् फलानि शुभदानि निवेदयामि ॥ ८ ॥ कलश. पूजाभिरष्टधा नित्यं, यो नरः पूजयिष्यति । गुरुपादाम्बुजद्वन्द्वं तं शिवश्रीवैरिष्यति ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं श्रीं सद्गुरुपदपूजार्थे फलानि समर्पयामि स्वाहा. इति गुरुपद पूजा समाप्ता. For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुपदपूजा. योगनिष्ठश्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरपूजा. जन्म अने बालचरित्ररूप प्रथम जलपूजा ॥१॥ दुहाविनयसहित श्रीगुरुपदे, प्रेमे करुं प्रणाम; ज्ञानवडे जेणे दीधो, अंतरमां आराम ॥१॥ अनंत भवमां भटकतां, हेते झाल्यो हाथ; प्रेमदीपकथी पिंडमां, निरख्यो निरमल नाथ ॥ २॥ सरस्वती मुजवदनमां प्रेमे पूरो वास; महावीर करुणा करी, पूर्ण मटाडो प्यास ॥३॥ अविचल भक्ति आपजो, बुद्धि सिन्धुमुनिराज । आगमपंथ कीधो सुगम, सदा रहो शिरताज ॥ ४ ।। जप तप संयम सर्व पण, गुरु सेवनथी थाय; सफल को मुज आत्मने, सफल करी मुज काय ॥५॥ ढाल-मारी आंखडलीने आश-ए राग. जय बुद्धिसागर मुनिराज, नरभव सफल कयो; कयौं पावन गुर्जदेश, परहित देह धर्यो, ए टेक. सर्व देशनो शिरोमणि छे, गुणनिधि गुर्जर देश जोः . ते केरा उत्तम शुभ प्रांते, साबर वहे हमेश; नरभव स.॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायकवाडी राज्य दीपे छे, प्रेमधर्म प्रतिपालजो, महाराजाश्री सयाजी नृपनी, वरते आण विशाल; नर. ॥२॥ त्यां आगल शोभे छे सारं, वीजापुर शुभ गामजो पाटीदार तणा त्यां जन्म्या, नाम बेचर गुण धाम. नर. ॥३॥ पूर्व जन्मनुं पुण्य हतुं ने, सरस हता संस्कारजो; बुद्धिबल पण बालपणामां, गणतां नावेपार. नर. ॥४॥ सरकारी नीशाले बेठा, गुजराती अभ्यासजो; साते धोरण शीखी लीधां, धरी गुरुमां विश्वास. नर. ॥५॥ श्रावक करी वस्ती सारी, वीजापुर शोभायजो; आवनजावन मुनिजन करता, दरवर्षे दरशाय. नर. ॥६॥ बुद्धिविलोकी विद्यागुरुजी, पूरण राखे प्रेमजो; गुरु करुणाथी आवेघटमां, विद्या करवा क्षेम. नर. ॥७॥ गुरुजनने सहवासी सघला, उरमां धारे एमजो; अति संस्कारी आ बालक छे, माटे राखे रहेम. नर. ॥८॥ पुत्रतणां लक्षण पारणीये, सहजपणे समजायजो; अजितसागर विनती उचरे, आत्मा ईश्वर थाय; नर. ॥९॥ काव्य. सकलवृद्धिकराय महात्मने, निखिल कर्ममलक्षयकारिणे । गुरुवराय वरिष्ठगुणात्मने, जलमहं विमलं परिकल्पये ॥१॥ ॐ ह्री श्री गुरुपदपूजार्थं जलं समर्पयामि स्वाहा. For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्संगतिरूपा द्वितीयचंदनपूजा ॥२॥ सत्संगति ए दीप छे, कुबुद्धि छे अंधार; सत्संगतिथी पामीये, विरति विवेक विचार; ॥१॥ सत्संगसिसम सृष्टिमां, एक नही उपचार; पारससंगे लोहन, सोनुं बने सुखकार; ॥२॥ सत्संगतिथी सुधर्या, जगमां आत्म अनंत; सत्संगति दे सहजमां, भवतारण भगवंत. ॥३॥ सत्संगति नित्ये करो, करवा भवानिस्तार; क्षणिक सुख लय पामशे, उपजे शांति अपार. ॥४॥ अगरचंदनना संगनो, महद जुओ महिमाय: अन्यक्ष निजसम करे, जीवनोशिव बनी जाय; ॥५॥ ढाल-आवो आवो जशोदाना कंत-ए राग. नथुभाईनो निर्मल भाव, जाम्यो सारोरे जेणे कराव्यो सद्गुरु संग, सुख करनारोरे; ॥१॥ सुखसागर श्री मुनिराज, जपतप भरीयारे; ए तो श्रावक धर्मना सार, कर्मना दरियारे. ॥२॥ बेसी एमनी पास अनेक, शास्त्र सांभालियारे । माटे निर्मल एमनां चित्त, भक्तिमा भलियारे. ॥॥ एवा संगतना सुप्रताप, प्रीति बंधाणीरे; जैन धर्म विषे विश्वास, वस्तु बरताणीरे. ॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शास्त्र सांभलवाथी स्हेज, विपदा वामेरे; अति दुर्लभ शिव पुरपंथ, प्राणी पामेरे. ॥५॥ माटे शास्त्र श्रवण हररोज, कोडे करीयेरे धरी आगममांही लक्ष, भवजल तरीयेरे. वांधी प्रभुना संगाथे प्रीत, प्रीत विचारीरे; जैनधर्म साचो छ एम, दृढमति धारीरे, ॥७॥ को लक्ष विषेथी अलक्ष, पक्ष तजीनेरे, कीधी सद्गुरुनी सेवाय, स्नेह सजीनेरे. ॥८॥ माटे नरभव पामीने जेह. सत्संग करशेरे; तेनो लक्षचोराथी स्हेज, आत्मा उद्धरशेरे. ॥९॥ थयो जैन विष अनुराग, शास्त्र श्रवणथीरे; थाय अजित जगतमांहि जित, जन्ममरणथीरे. ॥१०॥ काव्य. त्रिविधतापहराय शुभात्मने, जगति जन्मवतां सुखदायिने । कुमतिकर्दमन्दविशोषिणे, परिदधाम्यतिशीतलचन्दनम् ॥१॥ ॐ ही श्री गुरुपदपूजार्थ चन्दनं समर्पयामि स्वाहा. सम्यक्त्व ग्रहणरूपा तृतीयपुष्पपूजा. ॥३॥ दुहा. आगमज्ञान विना कदी, मानव मोक्ष न जाय; वस्तुमात्रनां तत्त्व ते, आगमथी समजाय ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥३॥ मूढ बुद्धिनां मानवी, करतां तर्क अनेक; पण प्रमाण आगम विना, नावे सत्य विवेक ॥२॥ अंधारं अज्ञानमय, आगमदीप सुहाय: अंधारूं दीपक वडे, जाय हृदय समजाय अंधजनोने लाकडी, अवनीपर आधार; ज्ञानअंध आगमथकी, निश्चित देशे जाय ॥४॥ ईश्वरने अवलोकवा, आगम सत्य प्रमाण: बुद्धिसागरनुं थयु, आगममा शुभ ध्यान ॥५॥ ढाल- कानुडो न जाणे मारी प्रीत. ए राग. समकित माटे सद्गुरु देव,-केरुं शरण नही ल्योरे. सम०ए टेक. शास्त्र श्रवणथी समकीत थाशे, जन्मोजन्मना रोगज जाशे; आनंद मंगल थाशे हमेश, विभुने सहज वरी ल्योरे. सम०॥१॥ जे जे मार्गे प्रभु उर आवे, ते ते पथ सद्गुरु समजावे; पामे जेवु वावे तेवं, साचे ठाम ठरी ल्योरे. सम०॥२॥ अनादिकालथी आत्म भटकटतो,एक ठाम कदी नथी पल टकतो; शांति नथी वरी शकतो लेश, दीलडामांही डरी ल्योरे. सम०॥३॥ क्लेश वधा मनमांथी कापो, आत्मदेवने अनुभव आपो: स्थिरतामां मन स्थापो बेश, धणीनुं ध्यान धरी ल्योरे.सम०॥४॥ अखंड अनुभव थाशे सारो, देखाशे भव सिन्धु किनारो; भव तस्वानो वारो एज, श्रेयस काम करी ल्योरे. सम०॥६॥ For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवलां शास्त्रो अवलां थाशे, जीवडा के जोखम जाशे; मुखना वायु वाशे हमेश, सुंदर देव स्मरी ल्योरे. सम०॥६॥ तृष्णा मनडुं तनथी त्यागे, अखंड वरना पद अनुरागे; जगमम ज्योति जागे बेश, निर्मल पथ विचरी ल्योरे.सम०॥७॥ आगम श्रवण कयौं जेवारे, निश्चय कीधो प्रभुनो त्यारे, मुरुवाणी उर धारे देव, नाम प्रभुर्नु उचरी ल्योरे. सम०८॥ बुद्धिसागर सद्गुरु राजा, धर्मग्रन्थ सांभलिया झाझाः अजित गरीब निवाजा आप, भवनुं भातुं भरी ल्योरे सम०॥९॥ काव्य. सुरभिदेहगुणेन सुवासित-सकलभूवलयाय जितात्मने । मुरनरेन्द्रगणस्तुतकर्मणे. सुगुरवे कुसुमानि यजामहे ॥१॥ ॐ ही श्री सद्गुरुपदपूजार्थं पुष्पाणि यजामहे स्वाहा देशविरतिग्रहणस्वरूपा चतुर्थी धूपपूजा. ॥४॥ दुहा. विश्वतणा भोगो विषे, रोग तणो भय छ ज; उंचा कुलमा पतननो, तेमज भय वरतेज धनिकने धनक्षय तणो, भय अतिशय वरताय: राजाने परसैन्यनो, भय भासेज सदाय ॥२॥ कायाने भय मरणनो, मायाने भय ज्ञान: अशांतिनो भय शान्ति छे, अमानिनो भय मान. ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ? पींड अने ब्रह्मांडमां भय गाजे छे काल; काले कोइ बचे नही, अंते काल कराल. माटे शाणा समजीने, घटमां घरी वैराग; निर्भय देशे जाय छे, देश विरति अनुराग 11411 ढाल-ओधव क्यारे आवशे वनमालीरे..-ए राग. श्रावक केरा वृत्तनी बलीहारीरे, अंते आतमने ले उगारी. श्रावक० ए टेक. श्रावक० ||१|| मगढ्यो श्रावकधर्ममां प्रेमरे, जेमां सुन्दर कुशल क्षेमरे; माटे तजीये कदी तेने केम ? गुरुदेव श्रावक व्रत पालेरे. जुटुं बोले नही कोइ कालेरे; व्रतधारी सुधर्मे विशाले, सुखसागर सद्गुरु पासेरे, श्रावकधर्म रह्या विश्वासेरे : मन वरताणुं धर्म उल्लासे, श्रावक० ||२|| 11811 श्रावक० ॥३॥ बेचरदासनुं मन रुडुं गलियुरे, भाव भक्ति विषे दृढ भलियुंरे; व्रत जपमांही चित्त बलिये. पडावश्यक स्नेहे साधेरे, भाव वैराग्यमां रुडो वाधेरे; सदा ने गुरु आराधे. श्रावक० ||४|| For Private And Personal Use Only श्रावक० ||५|| दुर्लभ सद्गुरु केरी सेवारे, एवी सेवा मांही रुडा मेवारे; जेमां भाव वैरागना लेवा. श्रावक० ||६|| दीक्षा लेवामां प्रेम प्रगटियोरे, मोह विश्वनां सुख केरो मटियोरे; जैनधर्म हृदयमांही रटीयो. श्रावक० ||७|| Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुण्य पूर्वतणां घणां जाग्यारे, मुख साधु तणां सारां लाग्यारे; दान गुरु पासे दीक्षानां माग्यां. श्रावक० ॥८॥ होय सत्यवैराग्यमां भावरे, पडशे प्रभुनो हृदयमां प्रभावरे, अजितसागरनो ए ठराव. श्रावक० ॥९॥ काव्य. विषयवाजिवशीकरणौजसे, मदविषोद्धरणोचमशक्त ये। मतिमतां हृदि निश्चितमूर्तये, गुरुवरायसुधूपमहं यजे ॥१॥ ॐ ही श्री सद्गुरुपदपूजार्थं धूपं समर्पयामि स्वाहा ॥ दीक्षाग्रहणस्वरूपा पंचमी दीपपूजा ॥५॥ दुहा. साधुपदथी सृष्टिमां, उपजे उत्तम ज्ञान; अनुकुलता सर्वे रीते, धरवा प्रभुनुं ध्यान ॥१॥ पंचमहाव्रत पालतां, आवे दीव्य प्रदेश: आ दीव्य आत्मा धारतो, दीव्य प्रभुनो वेष ॥२॥ सहु साधनमां श्रेष्ठ छे, मुनिना पंचाचार; ग्रहस्थ करतां श्रेष्ठ छे, त्याग दशा सुखकार. ॥३॥ त्याग विना मुक्ति नथी, भाखे श्री भगवंत: जन्म मरणना रोगनो, आवे त्यागे अंत. ॥४॥ समजु लोके समजवो, मीथ्या आ संसार; त्याग दशाए पामवो ऊर्ध्वलोक सुखकार. ॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाल बनजारा-राग. छे साधु पद सुखकारी, मनमां समजो नरनारी; ए टेक. तारामां सूरज जेवो, साधुभव समजो एवो; ज्यां प्रभुरस पूरण लेवो. छे साधु. ॥१॥ छठा गुण स्थानक जावा, वलि पूरण पावन थावा; छे अनुभव ल्हावा. छे साधु.॥२॥ जेवो अणुथी मोटो मेरु, मोटुं कंकरथी जेवू देरुं; ए, जीवन मुनिजनके. छ साधु. ॥३॥ ज्यां अनुपम सुख प्रसरे छ, विपदा जगनी विसरे छे; मुनि हरदम प्रभु उच्चरे छे. छे साधु. ॥४॥ सुखकारक जगमां साधु, जेणे आत्मतणुं सुख स्वाय; मन विश्वपतिमां वाध्यु, छे साधु.॥५॥ लीधी दीक्षा शिव सुखदाई, गण्यां जूठां भाइ भोजाई; स्वीकारी-भली साधुताई. छे साधु.॥६॥ बुद्धिसागर धार्यु नाम, थया पोते पूरणकाम; ब्रह्मचर्य धयु सुखधाम. छ साधु. ॥७॥ ओगणीसें सत्तावन वर्षे, मागशर सुदी सातम दिवसे; लीधी दीक्षा अतिशय हर्षे. छे श्रावक. ॥८॥ मुज मन मन्दिरमा राजो, जय जय गुरुजीनी थाजो; कीर्ति जगमां प्रसराजो. छे साधु. ॥९॥ सुखसागर गुरु शिर कीधा, जैन धर्मना ल्हावा लीधा: पछी अजित प्रभु रस पीधा. छे साधु. ॥१०॥ For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काव्य. भविकनिर्मलबोधविकासिने, प्रथितकीर्त्तियशोविशदात्मने । पहतकर्मचयाय तमोहरं, विशददीपमहं परिकल्पये ॥११॥ ॐ हीश्री सद्गुरुपदपूजार्थं दीपं यजामहे स्वाहा ॥ गुरु सेवारूपा षष्ठी अक्षत पूजा ॥ ६ ॥ दुहा. सद्गुरुनी पासे रही, सेवा करता नित्य: वण सेवा मेवा नही, ए सेवानी रीत. ॥१॥ महा वाट परलोकनी, गुरुविण नावे पार; सद्गुरुनी सेवावडे, झट आवे निस्तार. ॥२॥ अंधारी आ रातमां, सूझ पडे नही रंच; असत्य सत्य जणाय छे, ए मिथ्या छे संच. ॥३॥ हृदयद्वार सद्गुरु विना, कोण उघाडणहार ? सद्गुरु सेवन पुण्यनो, गणतां नावे पार. ॥४॥ गुरु गुरु गुरु मुखे रटे, धरे प्रभुनुं ध्यान; ए साधुनो धर्म छे, पामे पद निर्वाण. ॥५॥ ढाल-आवजो आवजो आवजोरे-व्हेनी ? राग. सेवा थकी सर्व सुख सांपडे, गुरुनी रुडी सेवा थकी, ___ सर्व सुख सांपडे; मुक्ति तणी जुक्ति हाथमां जडे, गुरुनी रुडी. ए टेक. For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ क्लेशकर्म जाय छे ने आत्मसुख थाय छे; शीद जीव विश्वमांही आथडे, गुरुनी. ॥१॥ काम क्रोध नव रहेने-दोष दीलना दहे; आत्मनो विवेक रुडो आवडे गुरुनी. ॥२॥ मोह तणां मूल बधां, जाय सहज वातमां; उखेडी शकाय ज्ञान पावडे. गुरुनी ॥३॥ व्हाल थाय नाथमां ने, आत्म आवे हाथमां; जाय छे अशांति शमतावडे, गुरुनी. ॥४॥ आज्ञा शिर धारताने,-प्रेमधर्म पालता, केम जीव खोटा ख्यालमां खडे ? गुरुनी. ॥५॥ गुरु विना मुक्ति नही,-सर्व संत उच्चरे; स्हेजमां प्रभुनो पंथ पर वडे; गुरुनी. ॥६॥ रुडी सुख सागरजी, सेवा गुरुनी सजी; पाप बीज सेक्यां ज्ञान तावडे, गुरुनी. ॥७॥ आशिष रुडी लीधीने, लीला ल्हेर तो कीधी; कालरूप सर्प केम आभडे, गुरुनी. ॥८॥ गुरुजी ज्ञान दाताने, आपे सुख शाता; अजित नरक द्वार ना नडे; गुरुनी. ॥९॥ काव्य. भवभयक्षतिकर्मविधायकान , शुभगुणाचरणोत्तमशिक्षकान् । शिवनिकेतनकेतनतुल्यकान्, परिदधामि पवित्रतराक्षतान् ॥१॥ ॐ ही श्री सद्गुरुपदपूजाथै अक्षतान् यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥४॥ चारित्राराधन स्वरूपा सप्तमी नैवेद्य पूजा ॥७॥ दुहा. कहेणी सम रहेणी नही, मले नही भलीवार; कहेणी सम रहेणी थतां, उपजे शांति अपार. ॥१॥ माटे सत् चारित्रमा, संतो मूके भार; गुरु करुणा चारित्रमां, छे हेतु सुखकार. ॥२॥ कर्म टले कर्मोथकी, खरेखरो छे न्याय; सत्कर्मेथी विश्वनां, असत्य कर्म बलाय. ॥३॥ दृष्टि तणां बिंदु तणी, गणना कदिये थाय; भूमि केरा भारनो, आंक कदी अंकाय. धर्म तणा पालनतणी, केम किंमत अंकाय: स्वल्प धर्मने पालतां, प्राणी पावन थाय. ढाल-नाथ कैसे गजको बंध छोडायो. त्यागी केरा धर्म कर्म सहु पाले, पीडमांही प्रभुजीने भाले; त्यागी. ए टेक. ग्रामनगर मांही संचरताने, निर्मल नाथने न्याले; सत्कर्मेथी पाप करमनां, बीज वधां गुरु बाले. त्यागी. ॥१॥ संतोनी संगत निशदिन करता, मन रारवी ज्ञानहिमाले; योगतणा अभ्यासे करीने, बाह्यत्ति पाछी वाले. त्यामी. ॥२॥ द्रव्यने जाण्यां अद्रव्यने जाण्यां, क्लेश काढया पाणी काले; खल जनने पण उपदेश आपी, खांते खूटलता खाले. त्यागी ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वैतने जाण्युं अद्वैतने जाण्यु, जाणी गीता गाले गाले; गंभीर ग्रन्थ लख्या घणा जेथी, वांची जनो दोष टाले. त्यागी. ॥४॥ सदगुणने घट भीतर शोध्या, अवगुण काढया उचाले: ज्ञानतणी गंगा प्रेम प्रभावे, सहजे चढावी उच्छाले. . त्यागी. ॥५॥ अनेक लोकने उपदेश आप्या, वृत्ति ठरावी छे ठाले; स्नेहथी समरण सोऽहंनुं करता, मन चढव्यु उंचा माले; त्यागी ॥६॥ अवधूत वेश निरंतर शोभे, पाप दबाव्यां पाताले; आत्म परात्मनुं ऐक्य साधीने, वृत्ति प्रभुपदे वाले. त्यागी. ॥७॥ एक निरंजन नाथ जगाइयो, चलव्युं न मन बीजे चाले: धन्य धन्य बुद्धिसागर गुरुदेवा, अजित हृदयमां निहाले. त्यागी. ॥८॥ काव्य. जैनेन्द्रशासनधुरन्धरपुङ्गवाय, __ ज्ञानात्मने विजितलौकिकभावनाय । श्रद्धालतानविनवारिधरायशुद्धं, नैवेद्यमुत्तममहविनिवेदयामि ॥१॥ ॐ ही श्री सद्गुरुपदपूजार्थ नैवेयं यजामहे स्वाहा For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यान समाधिस्वरूपा अष्ठमी फलपूजा दुहा. ध्यान समाधि योगर्नु, फल वर्णन नव थाय; अनंत भवथी भटकती, वृत्ति स्थिर थई जाय. ॥१॥ सहु साधनमा श्रेष्ठ छे, ध्यान समाधि योग: पूर्व जन्मना पुण्यथी, पण ते पामे कोक. ॥२॥ गेबी वाजां गडगडे, उपमा केम अपाय: अमृत रसना स्नानथी, स्नेहे शांत थवाय. ॥३॥ चंचलता आ चित्तनी, ध्यान वडे वश थाय; चढे खुमारी आत्मनी, जन्म मरण पण जाय. ॥४॥ संत तणा सहवासमां, योग तणो अभ्यास; गुरुए कीधो स्नेहथी, नथी अज्ञात जराय. ॥५॥ ढाल-विमलाचलथी मन मोड्युरे, म्हने गमे न बीजे क्यांय. ए राग. बुद्धिसागर सद्गुरुनोरे, जश वो चारे पास; सुखकारक सेवक जननीरे, पूरण करता सहु आश. बुद्धि० ए टेक० धरी धर्मध्यानमां प्रीति, जग प्रेमे लीधु जीती: राखी साधुनी रीतरे, कीधो उरमा उज्जास. बुद्धि. ॥१॥ जगनुं सुख जाण्यु काचुं, जाण्यु प्रभुनुं सुख साचुं; हुँ एज गुरुने याचुरे, मारो होजो चरणे वास. बुद्धि.॥२॥ को जन्म परम उपकारी, तजी दुनीयां केरी यारी; प्रभु भक्ति कीधी प्यारीरे, तोडया नरकना त्रास. बुद्धि.॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकांत विषे बहु वसता, प्रभजनने देखी हसता; क्षण धर्मविना नव खसतारे,तजी विश्वतणाज विलास.बुद्धि.॥४॥ पूरक कुंभक बहु साध्या, इश्वरने घटमां आराध्या, मनोभाव प्रभुमा वाध्यारे, तजी क्लेश अने कंकास.बुद्धि.॥५॥ राजा पण चरणे नमता, दर्शनथी मनमां शमता; तमे तत्पदमांहि रमतारे, थई सत्य गुरुना दास. बुद्धि.॥६॥ तमे साधी सिद्ध समाधि, तमे कापी जगनी व्याधि; तजी अंतर केरी उपाधिरे,करी भव भ्रमणानो हास. बुद्धि.॥७॥ थोडा तम सरखा थाशे, भजता प्रभु श्वासो. श्वासे, अमथी क्यम गुण विसराशेरे,देजो प्रभुमा विश्वास. बुद्धि.||८॥ अमे लीधुं आपनुं शरणुं, हवे कापो जन्मने मरj, गुरु अमृतनुं छो झर[रे, सूरि अजितने ए आश. बुद्धि.॥९॥ गुरुपद पूजा. कलश. घोडीलारे ते क्याथकी लाव्यारे-.ए राग. मारी जेवी मति प्होंची, तेवारे गुरुना गुण गाया. ए टेक. सद्गुरु मारी संसृति हरजो, अविचल राखजो मायारे. ___गुरुना० ॥१॥ संसारनी प्रीति स्वारथ सूधी, जर ज्योबन जायारे. गुरुना० ॥२॥ तपगच्छ हीरविजयसूरि पाटे, परंपरा मांही आव्यारे. गुरुना० ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सद्गुरु केरु ध्यानज धरतां, फरी धरीये नही कायारे. गुरुना० ॥४॥ शांतिदाता गुरु बुद्धिसागरजी, भव्यपणे मन भाव्यारे; गुरुना० ॥५॥ उपदेश आप्यो ने कंकास काप्यो, समजाव्या श्रीजगरायारे. गुरुना० ॥६॥ गुजरात देशे विजापुर गामे, जन्मीने अंते समायारे; गुरु०॥७॥ प्रगटावी घटमांही ज्ञान खुमारी, अनुभव गुण उपजाव्यारे. गुरुना० ॥८॥ वास विजापुरमा रहीने, गुरुगुण मुजथी गवायारे. गुरु० ॥९॥ अजितमूरि एवी अरज करे छे, करुणा करो गुरुरायारे. गुरुना० ॥१०॥ काव्य. वसन्ततिलकावृत्तम्. त्रैलोक्यतारकगुणाय वरप्रदाय, सर्वात्मना विहितजन्तुदयोदयाय । नित्तिधर्मपथदर्शकनायकाय, ___ सम्यक् फलानि शुभदानि निवेदयामि ॥१॥ ॐ ह्री श्री सद्गुरुपदपूजार्थ फलानि समर्पयामि स्वाहा. For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुपदपूजा शास्त्रविशारदजैनाचार्ययोगनिष्ठश्रीमबुद्धिसागर सूरीश्वरपूजा. प्रथमा जलपूजा दुहा. स्याद्वादना शोभिता, तीर्थंकर शिरताज; महावीर महाराजने, प्रेमे प्रणमुं आज ॥१॥ जयशाली जिनधर्मनी, सत्कीर्तिना स्तंभ; स्वामी सुधर्मा विराजता, गुरु गणधर गुणवंत. ॥२॥ परंपरामां तेमनी, हीरविजयॉरिराज; अनुक्रमे पछी उपज्या, रविसागर सुख साज. ॥३॥ सुखना सागर सद्गुरु, सुखसागर शोभाय; मुनिवर महाप्रभावना, बुद्धिसिन्धु सदाय. ॥४॥ पूजा रचुं हुं प्रेमथी, सद्गुरु करो कृपाय; सफल करो मुज वाणीने,जन्म मरण मटि जाय. ॥५॥ ढाल-ओधा अमने हरि तो व्हाला. ए राग. बुद्धिसागर गुरुजीनी बलिहारी, वारे वारे प्रेमथी जाउं वारी. बुद्धि० ए टेक० गुजरातनो प्रांत उत्तर सारो, For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साबर केरो मुखकारी किनारो; विजापुर गाम अंतर धारो. बुद्धि० ॥१॥ श्रावक तणी वस्ती घणी सारी, लागे प्रभु भक्तोने प्यारी: जिनालयो शोभे छे सुखकारी. बुद्धि० ॥२॥ पाटीदार प्रेमी पूरा शोभे छे, अहिंसक वृत्तने पाले छे दानी गुण केरो ल्हावो लेछे. बुद्धि० ॥३॥ तेमां गुरुए जन्म सुखद लीधो, मानव केरो जन्म सफल कीधो; संसारने बोध सिद्धो दीधो. बुद्धि० ॥४॥ गुरु कर्या सुखसागर स्वामी, खलकमांही राखी नही खामी%B जोडी दृष्ठि साचा धर्म स्हामी. बुद्धि० ॥५॥ करी गुरुसेवा खरी खांते, तज्या रागद्वेषने नीरांते: अजित कीर्ति प्रसरी बधे प्रांते. बुद्धि० ॥६॥ काव्य. सकलवृद्धिकराय महात्मने, निखिलकर्ममलक्षयकारिणे। गुरुवराय वरिष्ठगुणात्मने, जलमहं विमलं परिकल्पये ॥ १॥ ॐ ह्री श्री गुरुपदपूजार्थं जलं समर्पयामि स्वाहा, uranew For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ द्वितीया चन्दनपूजा. दुहा. गुरु कर्या मन मानता, सुखसागर मुनिराय, सद्गुरु वचन सुण्या विना, भक्ति कदी नव थाय. ॥१॥ गुरु विण ज्ञान मले नही, गुरु वगर नही ध्यान; गुरु वगर गति नव मले, गुरु वण नही भगवान ॥२॥ गुरु बतावे ज्ञानथी, परमात्मानो पंथ; शुं समजे अज्ञात जन, समजे विरला संत. ॥३॥ शिष्य स्वभावे संगमां, करी सेवा अति श्रेष्ठ, संसारी सुख परहयाँ नक्की जाण्यां नेष्ट. ॥४॥ सद्गुरुमी करुणा वडे, उत्तम पाम्या ज्ञान: आ जन्मे जाणी लीधा, घट भीतर भगवान. ॥५॥ ढाल-अलबेलीरे अंबे मात. ए राग. छ महिमा अपरंपार, श्री सद्गुरु केरो आवे निर्मल आचार, जाय फोगट फेरो. ए टेक० श्री सद्गुरुजी ज्ञान प्रतापे, प्रगटे घटमां ज्ञान जो; नाय अंधारु अज्ञान केलं, थाय प्रभुनुं ध्यान. श्रीसद० ॥२॥ सद्गुरुनी छे करुणा सारी, जेवी चंदन छायजो; 'भवाटवीना ताप समूला, जीवडा केरा जाय; श्रीसद्॥२॥ सद्गुरु पासे दीक्षा पाम्या, पाम्या विमल विचारजो; धर्मध्यान पग पेमे पाम्या, बली उत्तम आचार.श्रीसद्॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्याद्वादनी समजण पाम्या, पाम्या शांति अपारजो; दयाधर्म दीलडामां पाम्या, धर्मक्रिया सुखकार. श्रीसद्॥४॥ परोपकारमा प्रीति पाम्या, पाम्या परम प्रसादजो; हृदयशुद्धि परिपूरण कीधी,काप्या क्लेश प्रमाद.श्रीसद्॥५॥ सागरमां जेम स्वातीबिंदु, ग्रहण करे कोइ जंतजा; सद्गुण सघला एम समाणा,उपज्यो उदय अनंत.श्रीसद्॥६॥ श्री सद्गुरुनी पूर्ण कृपाथी, सफल थयां सहु काजजो; अजितसागरना सद्गुरु साचा, बुद्धिसागर महाराज. श्रीसद् ॥७॥ काव्य. त्रिविधतापहराय शुभात्मने, जगति जन्मवतां सुखदायिने । कुमत्तिकर्दमन्दविशोषिणे, परिदधाम्यतिशीतलचन्दनम् ॥१॥ ॐ ह्री श्री गुरुपदपूजार्थं चन्दनं यजामहे-स्वाहा अथ तृतीया पुष्पपूजा-दुहा. परमपदारथ प्रभुपदे, लागी लगन अपार, छोळयो सिन्धु सुखतणो, लाग्युं विश्व असार; ॥१॥ जबरां बंधन जगतणां, जबरां जगनां दुःख; गुरु करुणा वण नव छुटे, थाय न साचं सुख; ॥२॥ गुरुविना गति नवमले, गुरुविना नही मोक्ष; सहु वस्तु सद्गुरु विना, प्रगट छतांय परोक्ष; ॥३॥ सहु वस्तु पैसे मले, सद्गुरु वस्तु अमूल्य; अजित कहे श्रीगुरुविना, कर्यु कराव्यु धूल; ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाणी वर्णन शुं करे, महद् पुरुषमहिमाय; केवल शरण स्वभावथी, प्राणी पावन थायः ॥ ५ ॥ ढाल तेजेतरणिथीवडोरे-ए राग. प्रेमथकी परमात्मारे, पीडविषे पेखाय: कोटी उपाय करो छतारे, सद्गुरुथी समजाय, होप्राणी सद्गुरु संगत कीजीयेरे; प्रेमसुधारस पीजीयेरे; थाय सफल अवतार. एटेक. शुं समजे मतिमंदतेरे. अनुभव केरोपंथ, वाणी वर्णन नव करेरे; नवावे कदी अंत; होप्राणी सद्गुरु संगत कीजीयेरे, प्रेमसुधारस पीजीयेरे; थाय सफल अवतार;॥१॥ किंमत सघला विश्वनीरे, एक तरफ अंकाय, पण किंमत आत्मातणीरे; कदीये केम कराय: होपाणी सद्गुरु संगत कीजीयेरे, भेमसुधारस पीजीवरे, थाय सफल अवतार; ॥२॥ मानाने नव भोलख्यो, देख रयो से दूर; संगत सद्गुरुनी करोरे, हाजर होय हजूर; होपाणी सद्गुरु संगत० प्रेम० थाय० । ያዘዘ पाश्चमणिथी विश्वनारे, सुखनी प्राप्ति थाय; पण गुरुनी करुणा थकीरे प्राणी प्रभु बनी जाय; होगाणी सद्गुरु० प्रेम० थाय० ॥४॥ बुद्धिसागरजी सद्गुरुरे; मलिआ मुजने एक; For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૨ सफल जन्म म्हारो कोरे, समज्यो विरतिविवेक; होपाणी सद्गुरु० प्रेम० थाय० ॥५॥ काल ज्वाला ठंडी करीरे, दीधो घट उल्लास; समजाव्यो शुभ सानमारे, प्रभुजी त्हारीपास; होप्राणी सद्गुरु० प्रेम० थाय० ॥६॥ वारंवार प्रणामछेरे, सद्गुरु चरणसरोज; प्रेमपंथीना हृदयनीरे, खरेखरी करीखोज: होपाणी सद्गुरु० प्रेम० थाय० ॥७॥ भव अटवीमां भटकतारे, हेते झाल्यो हाथ; अजितसागरना जन्मने, कर्यो अनाथ सनाथ; होमाणी सद्गुरु० प्रेम० थाय० ॥८॥ काव्य. सुरभिदेहगुणेन सुवासित-सकलभूवलयाय जितात्मने । सुरनरेन्द्रगणस्तुतकर्मणे, सुगुरपे कुसुमानि यजामहे ॥१॥ ॐ ह्रीं श्री गुरुपदपूजार्थ पुष्पाणि यजामहे-स्वाहा चतुर्थी धूपपूजा. दुहा. चोथी पूजा धृपनी प्रगटावे गुरुम; दोष दबावे दीलतणा, राखे कुशल खेम; ॥१॥ गुरुचरणे शुभस्नेहथी, वारंवार प्रणाम; गुरु करुणाथी पामीए, शिवमन्दिर सुख धाम; ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यकदृष्टि गुरुविना, कोण बतावणहार; सम्यक् दृष्टि विना तथा, कोण बचावणहार; ॥३॥ जैनधर्मना सुख भर्या, अति उत्तम मुनिराज; परोपकारी कार्यथी, सिध्यां सघलां काज; ॥४॥ एवा जन थोडा थशे, पावनपरम सुजाण; पूर्ण कृतार्थ बनी रह्या, मोक्षनु राख्यु मान; ॥५॥ ढाल. नाथ कैसे गजको बंध छुडायो-ए राग श्रावकव्रत भवजल तरवानो वारो, नावेगुरु विण पार किनारो, श्रावक० ए टेक. देशथी विरति पंचम गुणस्थानक, साची शान्तिनो उतारो; दीलडाना दोष बधा दूर करवा, समकित सद्गुण प्यारो, श्रावक० ॥१॥ कालने काप्या कंकासने काप्या, उत्तम आव्या विचारो; पाप अने ताप सघला हठाव्या, जाणे के काष हजारो; श्रावक० ॥२॥ प्रेम पावक केरी बलवंती ज्वाला, ध्याननो धूप छ सारो; स्याद्वाद दृष्टि घ्राणमार्गे थई, अध्यात्म गंध प्रसार्यों; श्रावक० ॥३॥ जगवासना केरो रोग हठाव्यो, मोह खपाव्यो छे खारो; सत्कीर्ति सहु जगमांही प्रसरी, उत्तम सहुना उच्चारो; श्रावक० ॥४॥ आत्म परात्मनुं ज्ञान प्रगट करी, ममतानो मार्यों ठठारो; For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ર૪ अनंत कालनी खोयेली वस्तु, पाम्या छे खोली पटारो; श्रावक० ॥५॥ बहु गुणवंता बुद्धिसागरजी, अमने हवे न विसारो; अजितसागर विनवे अति भावे, जेवो तेवो हुं तमारो. श्रावक० ॥६॥ काव्य. विषयवाजिवशीकरणौजसे, मदविषोद्धरणोत्तमशक्तये । मतिमतां हृदि निश्चितमूर्तये, गुरुवराय मुधुपमहं यजे ॥१॥ ॐ ह्री श्री गुरुपदपूजाथै धूपं समर्पयामि-स्वाहा. अथ पंचमी दीपपूजा. दुहा. योगाभ्यासी तन हतुं, योगाभ्यासी चित्त योगाभ्यासी भावथी, रुडी राखी रीत. चित्तष्ठत्तिओ रोकीने, कीधी एकाकार; ध्येय ध्यान व्यता तगा, जाण्या मूह मंकार. २ निर्मल जेनी प्रीतडी, निर्मल जेनी रीत: मन इन्द्रिय कवजे कयाँ, वात तजी विपरीत. ॥३॥ कोमल जेनी वाणीमां, वरसे अमृतधार; वली वलीने चरणमां, प्रणाम वार हजार. ॥४॥ शोध्या आगम निगमने, वली जाण्यु वेदांत; अन्य धर्मना सारने, सहज कयों विज्ञात; ॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ढाल २५ - लाल डंका वाग्या तमारा देशमां. ए राग. अमने रुडो लाग्यो तमारो आशरोरे, सत्य धर्म केरो पंथ कर्यो पांशरोरे. तमे साचा योगाभ्यासी जोगीडारे; गुरु भगवानना भावकेरा भोगीडारे. जाणी जीवशिव केरी एकतारे, सदा साधुना समाजमांही शोभतारे; तमे अलख प्रदेशी आतमारे, जाण्यात मते महातमारे; यम नियमने जाण्या तमे प्रेमथीरे, वाल्यां योजनां आसन घणा नेपबीरे; अ० ॥५॥ प्राणायाम तमे कर्या भले भावधीरे, पूरक कुंभक रेचक घणा ल्हावथीरे. मानव देहना महात्मने अनुभव्युरे, सल्बुं देहनुं रखनते खरं करे के दिन रा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only अ० ॥१॥ अ० ||२|| अ० ॥३॥ अ० ॥४॥ अ० ॥६॥ अ० ॥७॥ साधी समाधि वसीने एकांतमारे; हृती वचन सिद्धि गुरु आपनेरे, पाल्यो पुरण ब्रह्मचर्य प्रतापनेरे. वांझी ने बंधाव्यां पारणारे, शोभाव्यां वालकनी वस्तिथी बारणारे, अ० ॥१०॥ गुरु आंधलाने आंख्यो आपतारे, अ० ॥८॥ अ० ॥९॥ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ अ० ॥११॥ सदा रोगी तणा रोग कष्ट कापतारे. रहेशे विश्वमा अविचल नामनारे, अजितसूरि गुण गाय गुरु आपनारे. अ० ||१२|| काव्य. भविक निर्मलबोधविकासिने, प्रथितकी र्तियशोविशदात्मने । महतकर्मचयाय तमोहरं, विशददीपमहं परिकल्पये ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्री गुरुपदपूजार्थ दीपं यजामहे. स्वाहा. अथ षष्ठी अक्षत पूजा. दुहा— सर्व धर्मना मर्मने, समज्या श्री सूरि राज. नमन करे नरनाथ पण, शोभ्यां संयम साज, ध्यान धर्यु शुभ धर्मनुं, अवगुण कीथा त्याग; एक अविच प्रभु विषे, हतो घणो अनुराग. सर्व धर्म आचार्यनो, कर्यो हतो सहयोग, व्यापक दृष्टि बहु हती, करी शमन सहु शोक; ॥३॥ जगत तापथी तपितने, कल्पवृक्षनी छाय. शो महिमा मुख वर्ण, गुण गंभीर गुरु राय, आनन्द धनना अर्थनी, खरेखरी करी खोज; एक अलख आराधना, रसपूरण प्रभु रोज. ढाल - मा पावा ते गढथी उतयी महाकालीरे. ए राग अक्षत भक्तिना आपीये, सूरिराजारे. अमे क्लेश जगतना कापीये, गुण झाझारे, ॥५॥ For Private And Personal Use Only ॥१॥ ॥२॥ ॥४॥ ॥१॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥३॥ मुख दुःख आपे सरखां गण्यां, सरिराजारे. तमे नाम निरंजननां भण्या, गुण झाझारे; ॥२॥ करुणालु मन निर्मल हतुं, मूरिराजारे. स्यावाद विषे निश्चल हतुं, गुण झाझारे; शुभथाय जगतनुं जे रीते, सरिराजारे. तमे वर्तन करता ए रीते, गुण झाझारे; ॥४॥ अति गहन गति हती आपनी, सूरिराजारे. तजी व्याधि बधी जगतापनी, गुण ज्ञाझारे; तप त्याग तणी सीमा नही, मरिराजारे. राखी लज्जा काचां कर्मनी, गुण झाझारे; ॥६॥ महीपति मरजादा राखता, सूरिराजारे. तमे भव्य वाणी मुखे भाखता, गुण झाझारे; ॥७॥ मीथ्या दृष्टि त्यागी हती, मूरिराजारे. रुडी रहेणी विमल राखी हती. गुण झाझारेः ॥८॥ संयममा मन शोभ्यु हतुं, सूरिराजारे. सूरि अजितनुं चित्त थोभ्यु हतुं, गुण झाझारे; ॥॥ काव्य. भवभयक्षतिकर्मविधायकान, शुभगुणाचरणोत्तमशिक्षकान्। शिवनिकेतनकेतनतुल्यकान्, परिदधामि पवित्रतराक्षतान् ॥१॥ ॐ ह्री श्री सद्गुरुपद पूजार्थ अक्षतान् यजामहे स्वाहा. For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ सप्तमी नैवेद्य पूजा. -दुहातत्त्वज्ञाने त्रण लोक, पूर्ण थयुज प्रसिद्ध ज्ञानी जन ज्ञानी गणे, सिद्धो जाणे सिद्ध. ॥२॥ भक्तो जाणे भक्त छे, संतो जाणे संत: अकल गति गुरु आपनी, गुणी जाणे गुणवंत. ॥२॥ ध्यानी जने ध्यानी गण्या, योगि जाणे सुयोग: सज्जन तो सज्जन गणे,-नीरोगी नीरोग. ॥३॥ पंडित जन पंडित गणे, त्यागी जाणे त्यागी अकल कला मूरिराजनी, शी गति समजे रागी. ॥४॥ मंदमति जाणे नही, मुनि आपनो मर्मः समज्या ते सज्जन थया, धौंगो जाण्यो धर्म. ॥॥ ढाल-लाल डंका वाग्या तमार। देशमारे. ए राग. गुरु आपनी नैवेद्य पूजा सातमीरे, कशी तप जपना जू रास्वी कलीरे. गुरू० ॥१॥ पुरा गथी पाल्पा पंचाचारमेरे, रुडी कहेणी तेवी करणीथी आचारनेरे.गुरु०॥२॥ रच्या ग्रन्थ तमे एकसो आठ छेरे; प्रभु पंथना भरेला प्रेमी पाठ छेरे. गुरु० ॥३॥ राज रजवाडा आपने जाणतारे, वली श्रद्धास्लु राखता मानतारे. गुरु० ॥४॥ जैनशास्त्रनी जुक्ति घणी जाणी हतीरे, For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्यादादनी मोघी मता माणी हतीरे. गुरु० ॥५॥ जूनां मंदिर अनेक सुधरावीयांरे, जैनेतरमा अहिंसा बीज वावीयारे. गुरु० ॥६॥ साचा धर्मनो प्रचार तमे बहु कोरे, सर्व धर्ममांथी सार तमे उर धर्योरे. गुरु० ॥७॥ देश दाझ पण आप केरा मन हतीरे, स्वदेशी भावना प्रचारता छार्नु नथीरे. गुरु०॥८॥ जेम कल्पतरु सर्व वृक्षराज छेरे. एम आपनो अवतार मूरिराज छरे. गुरु० ॥९॥ प्रेम भावनां नैवेद्य आपीये अमेरे, पुरा प्रेमथी स्वीकारजो मूरि तमेरे. गुरु० ॥१०॥ मूरि अजितनी हाथ जोडी विनतीरे, अरज देशकालनी कशी छानी नथीरे गुरु०॥११॥ ढाल बीजी-सजनी मारी, क्यां रमी आवी रजनी साचं बोलोजी-ए राग. सांभलज्यो सद्गुरुजी साचा, सेवकनी एक अरजी; -उरमां धारोजी.अनंत भव अथडाणो आत्मा, मानी पोतानी मरजी: -पार उतारोजी.- ॥१॥ रंक सेवक अमे सदा तमारां, ज्ञान ध्यान नव जाण्यां; -उरमा धारोजी. For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रेमभावना राखो प्राणीपर, पोता समान प्रमाण्या; -पार उतारोजी.- ॥२॥ साधु जनोना संग न कीधा, अवली उच्चारी वाणी; -उरमा धारोजी.सद्गुरु शब्दो दीलमां न धार्या, जोग जुक्ति नव जाणी; -पार उतारोजी.- ॥३॥ एक निरंजन अलखनी खातर, जगसुख आपे त्याग्यां; -उरमां धारोजी.सद्गुरु सेवा पूर्ण करी तमे, मुक्ति तणां दान माग्यां; __-पार उतारोजी.- ॥४॥ मनोहारी रुडी मूर्ति तमारी, याद अहोनिश आवे. -उरमां धारोजी.सद्गुरु भावे संभारीने, आंखडली आंसु लावे; -पार उतारोजी.- ॥५॥ अविद्या आवरण दूर कर्यां अने, सहज समाधि साधी -उरमां धारोजीअनंत उपकार विश्वजनो पर, प्रजाली पापनी व्याधी; -पार उतारोजी.- ॥६॥ निवास करजो अम दिलडामां, आशीर्वाद रुडा देजो; - -उरमां धारोजी.ध्यान भजनमा धैर्य आपीने, खरी खबर हवे लेजो; -पार उतारोजी.- ॥७॥ For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोमलतनना कोमल मनमां, कोमल भाव करावो; -उरमा धारोजी.जे जे प्रकारे सारं अमारु,-थाय ए लक्षमां लावो; -पार उतारोजी.- ॥ आप समुं भवसागर तरवा, शरणुं नंथी कोइ साचुं; -उरमां धारोजी.आप कृपाथी जाणी लीधुं छे, कोटि रीते जग काचुं; -पार उतारोजी.- ॥९॥ अजितसागर शरण थयो छे, बीजानो कदी न थवानो, निर्मलभावे आवरण कापी, ऊद्ध प्रदेशे जनारो; -पार उतारोजी,-॥१०॥ काव्य. जैनेन्द्रशासनधुरन्धरपुङ्गवाय, ज्ञानात्मने विजितलौकिकभावनाय । श्रद्धालतानविनवारिधराय शुद्धं, नैवेद्यमुत्तममहं विनिवेदयामि. ॥१॥ ॐ ह्री श्री सद्गरु पदपूजार्थ नैवेद्यं यजामहे स्वाहा अथ अष्टमा फलपूजा. दुहा. ज्ञानसमूं बीजं नथी, उत्तम साधन एक; ज्ञाने घटमां थाय छे, विरति विचार विवेक ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानामृत आगल वर्धा, औषध व्यथ सदाय, दोष टले आत्मा तणा, अनुभव ज्योति जणाय ॥२॥ ज्ञान तणुं वर्णन करे, शारद देवी सदाय; तोपण आखा भव विषे, संपूर्ण नव थाय ज्ञानचिन्तामणि कर ग्रह्यो, शुं नाणानुं काम; अवनीमां उत्तम थयो, पूर्ण काम अभिराम ॥४॥ ज्ञान वडे आ विश्वमां, शिव जीवनो थइ जाय; ए ज्ञाने उत्तम यया, बुद्धीश्वर सूरिराय ॥९॥ ढाल-वीर कुंवरनी वातडी कोने कहीए, ए राग. हारे ज्ञान पाम्यारे ज्ञान पाम्या, हारे बुद्धिसागर सार; अनुभव उत्तम पामीया, ज्ञान पाभ्या०-ए टेक० शुद्ध ज्ञानरूपी फल चाखीने, रस पीधो, हारे रस पीधोरे रस पीयो हारे ज्ञानामृत निरधार, अनुभवसागर उच्छल्यो. ज्ञान०॥१॥ जेम सर्वे नदीयो वही जाय छे, सिन्धु हामी; हारे सिन्धु हामी रे सिन्धु हामी, हारे एवं आपनुं ज्ञान, सर्वे धर्मों वस्तु एक छे; ज्ञान० ॥२॥ नव करशो निंदा तमे कोईनी, सवळू समजो, हारे सवल समजोरे सवलु समजो; हारे समकित उपदेश, आत्मापरात्मा एक छे. ज्ञान॥३॥ तमो समदर्शी सद्गुण भर्या, संत साचा, For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३ हारे संत साचारे संत साचा: हारे मन वाणीनी पार, दृष्टि हती रुडी आपनी.ज्ञा०॥४॥ गुणग्राहीलोको पासे आवता, बोध देता, हारे बोध देतारे, बोध देता; हारे जेने जे जोइए तेम,अतुलितगतिमति आपनी-ज्ञा०॥५॥ जाणे महिमा शुं मूढमति जनो, जाणे ज्ञानी, हारे जाणे ज्ञानीरे जाणे ज्ञानी: हारे आपनो महिमाय,निर्मल शांत स्वभावना.ज्ञान०॥६॥ आप अवतारने धन्य धन्य छे मुनिराजा, हारे मुनिराजारे मुनिराजा; हारे रुडो अखंड प्रताप,चन्द्र सुरज सुधी वर्तशे ज्ञा०॥७॥ सर्व संशय छूटी गया हता, छूटी ग्रन्थी, हारे छूटी ग्रन्थीरे छूटी ग्रन्थी; हारे गुरु दीनदयाल, देह परम उपकारनो. ज्ञान० ॥८॥ आप चरणे अमारा प्रणाम छे, लाखो फेरा, हारे लाखो फेरारे लाखो फेरा; हारे स्वामी करजो स्वीकार, अजितमूरि एम विनवे. ज्ञान पाम्या० ॥९॥ For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कलश, धन्य महावीर उपगारी एराग. रटण एक सद्गुरुर्नु लाग्यु, फरीने फरी बीजे मन थाक्युः ए टेक. यथामति गुरुजीना गुण गाया. लागीरे अविचल गुरुनी माया: माथेरे भारे सद्गुरुनी छाया, रटण ॥१॥ मानव भव फरी फरी नाज मले. अविद्यानां आवरण नाज टले, गुरुजी थकी भवकेरो फेरो फले, रटण ॥२॥ गुरुरे मल्या बुद्धिसागर साचा. जाण्यारे भाव जगत तणा काचा; सफल थइ आजे विमल वाचा, रटण० ॥३॥ संवत ओगणीश अने ब्याशी. पोष नामे महिनो मुख राशि; तिथि बुध तेरस छे खाशी, रटण ॥४॥ साबर केरो तट शोभे सारो. उत्तर गुजरात उरे धारो; विहार विजापुरमांहि प्यारो, गुरुनी पूजा अहीं पूरी कीधी. मूरिए मति आपी घणी सीधी: कीधीरे स्तुति दैवे जेवी दीधी, स्टण० ॥६॥ For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूरिजी हीरविजय महाज्ञानी. तेमना शिष्य सहजसागर ध्यानी परंपरा परम पावन जाणी, रटण ॥७॥ अनुक्रमे रविसागर जाण्या. तेओना शिष्य सुखसागर मान्या; तेओना बुद्धिसागर पीछाण्या, रटण ॥८॥ महायोगी ध्यानी जगत जाणे. श्रावक अने अन्य बधा माने आचार्य पद सह जन परमाणे, रटण ॥९॥ तेनोरे पदपंकज रजहुं छु. अजित अब्धि प्रेमेथी प्रणमु छु: आशिष अंते सर्वे जीवोने दउँछु, रटण० ॥१०॥ काव्य. त्रैलोक्यतारकगुणाय वरप्रदाय, सर्वात्माने विहितजन्तुदयोदयाय। नित्तिधर्मपथदर्शकनायकाय, ___ सम्यक् फलानि शुभदानि निवेदयामि ॥१॥ ॐ ह्री श्री सद्गुरुपदपूजार्थ फलानि समर्पयामि स्वाहा।। इति . शास्त्रविशारद योगनिष्ठ श्रीमद्बुद्धिसागरसूरीश्वरशिष्यरत्रप्रसिद्धवक्ता जैनाचार्य श्रीमअजितसागरमूरिविरचित गुरुपदपूजा समाप्ता ॥ For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६ गुरु आरति, जयदेव जयदेव जय जय गुरुदेवा, गुरु जय जय गुरुदेवा, बुद्धिसागर महाराजा, सफल करो सेवा; जयदेव जयगुरु देव. ॥२॥ निर्मल ज्ञान विचार, धर्म तणा ज्ञाता; गुरु धर्मतणा ज्ञाता; महिमा केम कथाय, पाप ताप त्राता; जयदेव जयगुरु देव. ॥२॥ सफल कर्यों अवतार, बोध कर्यो जनने, गुरु बोध कों जनने: योगे निर्मल कीधां, तन साथे मनने जयदेव जयगुरु देव. ॥३॥ ब्रह्मचर्य व्रतधारी, सिद्ध पुरुष साचा; गुरु सिद्धपुरुष साचा; कथतां आप प्रताप, विरामती वाचा; जयदेव जयगुरु देव. ॥४॥ पावन परम सदाय,प्रभुनां ध्यान धर्यो,गुरु प्रभुनां ध्यानधयों; शुद्ध अहिंसा ज्ञाने, कल्मष दूर काँ; जयदेव जयगुरु देव. ॥६॥ वचने सिद्धि अपार,जन सघला जाणे, गुरु जन सघलाजाणे; शेठ श्रीमंत महीप, मर्यादा माने; ' जयदेव जयगुरु देवा. ॥६॥ भाव आरती लइने, प्रेमदीपक करीये, गुरु प्रेमदीपक करीये, सद्गुरुपद सेवीने, भवसागर तरीये; जयदेव जयगुरु देव ॥७॥ For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन सहित जैनेतर, सहु वंदन करता, गुरु सहु वंदन करता; प्रेमज्ञानना बलथी; समोपे संचरता; 'जयदेव जयगुरु देव. N८ बुद्धिसागर सद्गुरुनी; जे आरति गाशे; गुरु जे आरति गाशे; अजितसागर कहे एनां; सहु संकट जाशे; जयदेव जयगुरु देव. ॥९॥ मंगलदोवो. दीवोरे दीवो अति मंगल कारी, अनुभव दीपक अति उपकारी: दीवो० ॥१॥ पहेलोरे दीवो गुरु ज्ञान- ज्योती, दर्शन करी मन वृत्तिओ म्होती: दीवो० ॥२॥ बीजारे दीवो शुभ आचार पालो, दीलनी अविद्या उपाधिने टालो; दीवो० ॥३ त्रीजोरे दीवो प्रभुध्यान समाधि, साधन करी हरिये अंतर उपाधि दीवो० ॥४॥ चोथोरे दीवो शुद्ध चारित्र जाणो, आत्मा परमात्मानुं बार| मानो; दीवो० ॥५॥ अलख निरंजन आत्मानां दर्शन, पावन करीये अंतर तन मनः दीवो० ॥६॥ सूर्य शशी दीवा प्रभुजीना शोभे, देखी देखी सूरि मुनि मन लोभे; दीवो० ॥७॥ For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३८ देव - दनुज - मुनि सिद्ध चोराशी, परिहरे ज्ञानदीवाथी उदासी; अखंड अमर दीवो प्रभुनो प्यारो, ध्यान धिरजथी उरमां धारो: अजित सागर गुरु ज्ञाननो दीवो, प्रगट करी जगमां घणुं जीवा; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only दीवो० ॥८॥ दीवो० ॥९॥ दीवो० ॥ १० ॥ फलम्. पूजाभिरष्टधा नित्यं, योनरः पूजयिष्यति । गुरु पादाम्बुजद्वन्द्व, तं शिवश्रीर्वरिष्यति ॥ १ ॥ दुहा कलश भर्यो छे भावनो, पाणी निर्मल प्रेम. पूजन सद्गुरु देवनुं, आपे कुशल खेम; अंतरमां उभराय छे, सूरिवर केरो स्नेह, करुणा केरा आपता, मांघा मीठा मेह; ॥१॥ ॥२॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवनसंग्रह. अलबेलीरे अंबेमात-ए राग. जय जय जयगुरु महाराज, अति करुणा कीधी. म्हने परमातनी आज, अति भक्ति दीधी; एटेक. आसंसार तणां सहु दुःखनो, गणतां नावे पारजो. ए दुःख दूर कर्यां सहु म्हारां, प्रगटयु भाग्य अपार; अति० ॥१॥ मृगतृष्णानुं जेवू पाणी, नावे कदीये हाथजो. आसंसार विषे सुख एवं, सार गुरुनो साथ; अति० ॥२॥ अनंत कालथकी अथडातो, पाम्यो पीडा अनंतजो. ज्ञान ज्योति प्रगटाव्युं पोते, आव्यो दुःखनो अंत; अति० ॥३॥ कल्पतरुनुं जेवु शरणुं, एवी आप सहायजो. अनंत भवनी पीडा गुरुनी, भाव भक्तिथी जाय: अति० ॥४॥ नर भव फरी फरी नावे हाथे, अति उत्तम अवतारजो. सफल कर्यों उपदेश आपीने, अतिमान उपकार; अति० ॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भावट भागी भवाटवीनी, गुरु गुण केम गणायजो. अनंत सुखनो सागर आत्मा, गुरु ज्ञानेथी जणाय; अति० ॥६॥ परम कृपालु सद्गुरु राजा, बुद्धिसागर मूरिराजजो. अजित सागर सद्गुरुने विनवे, सद्गुरु गरीब नवाज; अति० ॥७॥ ॥२॥ २॥ आवो आवो यशोदाना कंत-ए राग. आवो आवो तमे गुरुराज, मन्दिरे आवोरे. अमो दास तमारा सदाय, करुणा लावोरे; तमे सद्गुणना भंडार, अंतरजामीरे. थया पूरण कृतार्थ अनेक, शरणुं पामीरे; तमे शोभावी गुजरात, कीर्ति प्रसारीरे. आप चरणमां बार हजार, विनती अमारीरे: तमे शिखव्या समान स्वभाव, शीखवी समतारे; तमे मार्यों मोह महान, भारी ममतारे. तमे रुडा भज्या भगवान, संसार त्यागीरे; तमे सद्गुरु केरा शिष्य, अखंड अनुरागीरे. तमे सहज समाधि साधि, भल पण भरीयारे; प्रत्याहारने प्रणायाम, केरा तो दरीयारे. ॥३॥ ॥४॥ ॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१ तमे क्लेश तणा तो मूल, संघलां काप्यारेः तमे आत्म विद्या के दान, मुमुक्षुने आप्यारे. हतो ऊर्द्ध तमारो प्रदेश' कोइ जन जाणेरे; तमे अनुभव मार्ग प्रवीण, जाणे ते माणेरे. तमे ध्यानी तणा पण ध्यानी, ज्ञानीना ज्ञानीरे; तमे प्रेमी तणा पण प्रेमी दानीना दानीरे. तमे अखंड जगावी अलेख, अवधूत पंथेरे; तमे जगाडयो आतमराय, वखाण्या संतेरे. सूरि अजित कहे गुरुदेव, उत्तम आचारीरे; सदा आपतणा गुण गाय, अरजी उच्चारीरे. For Private And Personal Use Only 11611 ॥८॥ ॥९॥ ॥१०॥ ॥११॥ 3 अलि साहेली जंगम तीरथ जोवा उभीरेने - ए राग. गुरुदेव तमो भवनमांही सिद्धो पंथ बतावता. सहु प्राणी तणा, कूडमति हरवाने औषध आपता; ए टेक. तमे संत सदा परउपकारी, तमे सुख परित्याग्यां संसारी. हति प्रभु तणी भक्ति प्यारीः गुरु० ॥ १ ॥ जए जोग विषे निशदिन जाग्या, आतम रस माटे अनुराग्या. वली विश्व भोग मिथ्या लाग्या; गुरु० ||२|| धर्मणां बहुत्त पाल्यां, तमे आधि उपाधि बधां टाल्यां. तमे शिवपुर के घर भाल्यां; गुरु० ॥३॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ર तमे अलख निरंजन लक्षधर्यो, फरो मानव केरो सफल कर्यो. तमे पाप समूह समग्र हर्योः गुरु० ||४|| तमे समजाव्यां नरने नारी, श्रद्धा करी आत्म विषे सारी. करी नौका भवजल तरनारी; गुरु० ॥५॥ तमे जगत भाव जाण्या खोटा, जाण्युं जगत जलना परपोटा, तमे जाण्या मनमोहन मोटा: गुरु० ||६|| गुरु एक जीभे केटं कहीये, गुण संभारी मनमां रहीये. गुरु स्मरण वडे राजी थईये; गुरु० ||७|| करुणा अम उपर सदा राखो, क्लेश कंकासने कापी नाखो. गुरु भक्ति विषे जाय भव आखो, गुरु० ॥८॥ सूरि अजितनी विनती ध्यान धरो, शुभ आशिष केरुं दानकरो. बुद्धिसागरजी भव रोग हरो: गुरु० ||९|| जो कोइ बुद्धिसागर सूरिने आराधशेरे लोल. तेना दीलमांही भक्ति ज्ञान वाघशेरे लोल; तेनी नेक तथा टेक प्रभुमां थशेरे लोल, भूख दुःखने - जंजाल अलगां जशेरे लोल. धर्यु ध्यान भगवान केरुं भावधीरे लोल: लाव्या लक्षमां अलक्ष रुडा लहावधीरे लोल, दशे दिशमां हमेशा जामी नामनारे लोल. जेणे पूर्ण करी प्रेमी केरी कामनारे लोल; For Private And Personal Use Only ॥१॥ ॥२॥ 11311 11811 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३ ॥५॥ ॥६॥ ॥७॥ दाम-धाम-गाम-सर्व जेणे त्यागीयांरे लोल, जेने वंदवाने नरनारी लागीयारे लोल.. जेनी प्रीति तणी रीति घणी आकरीरे लोल; जेणे अलबेलानी भक्ति भली आदरीरे लोल, जेणे जैनधर्म केरी करी गजनारे लोल. मिथ्या वादीनी करावी बधे तर्जनारे लोल: जेनी सिद्ध दशा केरी व्यापी मान्यतारे लोल, जेने सज्जनो सुसिद्ध साचा जाणतारे लोल. देश कालना प्रमाणे ज्ञान ध्यानमारे लोल; कयों धर्मनो प्रचार-महा मानमारे लोल, मूरि अजितनी विनती छे एटलीरे लोल. जीव्हा एकने स्तुति कराय केटलीरे लोल; ॥८॥ ॥९॥ ॥१०॥ आवजो आवजो आवजोरे, व्हेनी-ए राग. लावजो लावजा लावजोरे, गुरु प्रार्थनाने लक्षमांही लावजो. प्रेमरूपी पुष्प प्रगटावजोरे, गुरु प्रार्थनाने० एटेक० अज्ञान अंतरमांही अति उभराय छे. एने ज्ञान दीपके हठावजोरे; गुरु० ॥१॥ शोकरूपी अग्नि केरी झाल झलकाय छे,.. स्नेह तणा पाणीथी शमावजोरे, गुरु० ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ गुरु० ॥३॥ सुरु० ॥४॥ गुरु०॥५॥ मनडुं सदाय भूडं भमतुं भमे छे, भव्य गुरु हवे ना भमावजोरे, जैन धर्मरूपी रुडा बागमांही आसमे, वैराग्यनां बीज आवी वावजोरे; अनाचार अंतरना दूर करी नाखजा, आचारनी ध्वजाओ उठावजोरे. हिंसा वधे छे विश्वमांही आ समा विषे: अहिंसाना आनंद उडावजोरे. असंख्य प्रदेशी तमे आतमा अनूपछो, आत्मज्ञान नीरे न्हवरावजोरे, अजितसागर केरी विनती स्वीकारजो, शुद्धतानां पाणी पीवरावजोरे. गुरु० ॥६॥ गुरु० ॥७॥ गुरु० ॥८॥ गजल. ॐ ही श्री गुरुदेव छो, पावन परम परमेश्वरा, हुँ आपनुं समरण करु,-थाजो सदाये सुखकरा;-ॐ०॥१॥ माता तमो पिता तमो, भ्राता तमो बीजूं नही, म्हारी तथा जाती तमो, बीजुं कशुं इच्छु नही.-ॐ॥२॥ आकाशमां पातालमां, गुरु आप सम कंइये नथी, आत्मा परात्म बनाववा, वीजुं सुखद साधन नथी:-ॐ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माथा तणा तो मुकुट छो, हैया तणा शुभ हार छो; कामादि सैन्य विदार बा, शूरा तमो सरदार छो.-ॐ॥४॥ पृथ्वी सलिल अग्नि पवन, आकाशमां त्हारी गति; जन अधमने उद्धारवा, शक्ति इतर सारी नथी;-ॐ॥५॥ प्रेमस्वरूप तमो दिसो, वळी नेम स्वरूप तथा तमो; सौन्दर्यरूप तथा तमो, पूजक तमारां सहु अमो,-ॐ॥६॥ जलना तरंगो जाणुं के, गुणगान सुन्दर गाय छे: गुरुगुणतणा ए तानमां, मुज आत्म निर्मळ थाय छे-ॐ०॥७॥ जगनां मुखो मागु नही, जगनां दुःखो त्यागुं नहीः त्याग्या अने माग्या तणी,इच्छा हृदय राखं नही,-ॐ॥८॥ केवल हृदयमा वांच्छना, परिपूर्ण गुरुकरुणा तणीः उद्धार करवो अजितनो, ए गर्जना सद्गुरुभणी.-ॐ०॥९॥ ॐश्रीसद्गुरुविरह. ओधवजी संदेशो कहेजो श्यामने-ए राग. सद्गुरुनां चरण दर्शन ते फरीथी क्यां मले ? जेणे कही हती आत्म प्रदेशी वातजो. व्हाणुने व्हातारे गुरुजी सांभरे, जेणे जप्या जप जिनवरना दिनरातजो; सद्गुरु. ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६ सोsहं शब्द सुणाच्या म्हारा कानमां, जडचेतननी समजावी शुभशानजो; रुपैया आप्याथी वस्तु ना-मले, ते प्रभु केरुं गुरुए दीधुं दानजो. ज्ञानभानु प्रगटाव्यो दील आकाशमां, निर्मल भावे कर्यो तिमिरनो नाशजो; समीप वस्तु कीधी दूर प्रदेशमां, दूर वस्तु दर्शावी छे पासजो. सद्गुरुना वचने म्हें छोडी जातडी, सद्गुरु वचने त्याग करी म्हें नातजो गुरुवचनामृत पीनेत्याग्या तातने, गुरुवचनोथी मानी मात अमातजो. भ्रमणा मम भागीने लगनी लागा है, गुरु वचनोमां तन मन धन कुरवानजो; आत्मानी परमातमशुं थइ प्रीतडी. For Private And Personal Use Only सद्गुरु ॥२॥ सद्गुरु. ||३|| सद्गुरु ॥४॥ अलख निरंजन प्रभुनुं लाग्युं ध्यानजो. सद्गुरु ॥५॥ असंख्य प्रदेशी चिघन प्रेमे पामीयो, वर्षो रह्या कां शांतितणा वरसादजो; स्मृति आवी छे विस्मृतिकेरा नाथनी, अयाद देवनी गुरु दीधी यादजो. शा शा गुण गणावुं श्री गुरुदेवना, अनंत दिवस गणतां पण नावे पारजो; सद्गुरु ||६|| Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७ विषय शशीनां किरणो मंद पडी गयां, अघ उलूकना विरभ्या शब्द अपारजो. सद्गुरुः ॥७॥ अजित सागरना दिलमां वस्या गुरुदेवश्री, सफल थयो छे मुज मानव अवतारजो, गुरु विण मुक्ति मले नही कदीए कोइने, गुरु विण क्याथी आवे विमल विचारजो सद्गुरु.॥८॥ श्री गुरु विरहे सातवार. सखी पडवे ते पूरण प्रोत-ए राग. सखी ! आदित्य उग्यो आकाशे, व्हा' व्हातारे म्हारां तन मन व्याकुल थाय, गुरु गुण गातारे. ॥१॥ सखी ! सोमेते आवी शान, वात विचारीरे; म्हारा घटमां सद्गुरु देव, अति उपकारीरे. ॥२॥ सखी! आव्यो मंगलवार, मंगल करतोरे: म्हने सद्गुरु आव्या याद, आंसु भरतोरे. सखी ! बुध वासरीये शुद्ध, कोणवतारे; लीधी गुरुए स्वानो पंथ, दीलभरी आवेरे. ॥४॥ सखी ! गुरुए दर्शन दीव्य, गुरुनां करतारे; लक्षचोराशीनी जेह, हरकत हरतारे For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૪૮ सखी ! शुक्रतणो दिन आज, सौने सारोरे; मुजं गुरु विरहीने खास, लाग्यो खारोरे. ॥६॥ सखी ! शनिवासर छे भाव, करिया करवारे; पण गुरुविण मन अकलाय, भवजल तरवारे; ॥७॥ म्हारी वातोना विश्राम, सद्गुरु देवारे. तजि चाल्या अमने स्वर्ग, करीए कोनी सेवारे; ॥८॥ गुरु ! अवगुण अम अगणित, करुणा करजोरे; सूरि अजित सागरना शिर, शुभकर धरजोरे. ॥९॥ सखी ! सातवार जे कोइ, प्रेमे गाशेरे; गुरुकरुणाथी ते शिष्य, पावन थाशेरे. १०॥ श्री गुरुगुणगान. क्षमा रमानाथने पूरण प्यारी-ए राग. गुरुकेरा सद्गुण केम गवाशे, केवल स्मरणथी सुख था. टेक. धर्ममां अधरम अधर्ममां धर्म, शी रीते जुक्ति जणाशे. त्याज्य अत्याज्यनी सुखभरी समजण, सद्गुरुथी समजाशे. गुरु० ॥१॥ सद्गुरु बुद्धि सागरनी सेवाथी, पापना ताप पलाशे; मोक्षना पंथे मोहादिक कादव, सद्गुरु विना कलाशे.गुरु०॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९ अतिवकठिन ए कादवमांथी, निश्चयथी निकलाशे; पण ए निश्चय गुरुविण क्यांथी ! पिंडमां आवशे पासे.मुरु०॥३॥ वृक्ष समग्रनी करीए कलम अने, सिंधुनी शाही सोहासे; पृथ्वीतणो कागल रुडो करतां, शारद हाथ लखाशे. गुरु०॥४॥ आवशे पार समग्रनो तोपण, गुरुगुण केम गणाशे: कारण आत्मानां सौख्य अनंतां, केमज अंत पमाशे. गुरु०॥५॥ सदगुरु माथे मल्या बुद्धिसागर, हुँ पण आवेलो आशे; वस्तु अनुपमर्नु रूप जणाव्युं, हैडामां देवने होंशे. गुरु०॥६॥ तत्व अतत्त्वनां लक्षण आष्यां, वृत्ति न क्रोध कंकासे; अजितसागर पाम्यो इष्ट अनुभव, गुरुभक्ति केम भूलाशे.गुरु०॥७॥ श्रीमद् गुरुविरह. भेखरे उतारो राजा भरथरी-ए राग. सद्गुरु संत महातमा, गया धर्मने धामजी, विरहवडे व्याकुल बर्नु, रटतां गुरुजीचें नामजी. सद्गुरु टेक. अमने उगार्या असत्यथी, आपी सत्योपदेशजी; पापमपंच तजावीया, सुन्दर साधुने वेषजी. सद्गुरु० ॥१॥ मुर्नु लागे सहुतम विना, सूनो लागे संसारजी; विरह अनिल सतावतो, सुकवे काया आ वारजी.सद्गुरु०॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यान करूं घडी आपनु, आवे मूर्ति प्रत्यक्षजी; प्रेमातुर आवं वंदवा, पण उघडे ज्यां चक्षजी.सद्गुरु०॥३॥ एहसमे दर्शन आपनां, यदा नव अवलोकायजी; व्यापे विरहतणी वेदना, काया थर थर थायजी.सद्गुरु०॥४॥ समष्टि तमे साचवी, सौमां सरखोज प्रेमजी सौ पर आशिष ते रीते, राखता सरखीज रहेमजी.सद्॥५॥ जूनो लोपायलो जैननो, कीधो योग उद्धारजी; निर्मल मति गति आपनी, निर्मल सर्व प्रकारजी. ॥६॥ आपनी जग्या खाली पडी, कोना थकी पूरायजी; कामदुधा क्यां अपरपशु, केम उपमा अपायजी, ॥७॥ लभ्य कीधुरे अलभ्यने, कीर्छ अदृष्ट दृष्टजी; सभ्य कीधुरे असभ्यने, कीधुं सृष्ट असृष्टजी. ॥८॥ भेद कीधारे अभेदना, कीधा अभेदना भेदजी: समजावी शान सोह्यामणी, कापी मोहनी केदजी. ॥९॥ शिष्यनो संघ संभारतो, गुरुज्ञान विशालजी: अजित नमे आप पायमां, गुरुदेव दयालजी. ॥१०॥ For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५.१ ११ श्री गुरुमहिमा. रांग उपरनो बुद्धिसागर गुरुदेवजी, जपीये आपनो जापजी; मनडाना मोह शमावजो, टाली तनडाना तापजी: बुद्धि-टेक० धर्म पाल्यो त धैर्यथी, कोथां धर्मनां कार्मजी, अन्यने धर्म पलावीयो, गया धर्मना धामजी, बुद्धि० ||१|| योगप्रदेशथी आवीया, पाल्यों योग आचारजी; सिद्धस्वरूपी सदा तमो, दीव्यज्ञान दातारजी, बुद्धि० ॥२॥ दर्शन फरी हवे क्यां मले ? क्यारे देशो सत्संगजी; क्यारे याशे भव्यदर्शने, उरमांही उमंगजी. बुद्धि० ॥३॥ मूर्ति मधुर मनमोहिनी, पेखी प्रगटतो प्रेमजी; विरही शिष्यो गुरुदेवना, करिये स्थिर मन केमजी ? बुद्धि० ||४|| पारस केरा शुद्ध स्पर्शथी, लोह कुंदन धायजी. आत्मापरात्म बने नहीं, जीत्र पणुं नव जायजी; बुद्धि० ॥५॥ For Private And Personal Use Only आत्मपरात्म बने तदा, मले सद्गुरु देवजी. उत्तम सत्संग आपतां; करतां सत्संग सेवजी. बुद्धि० ॥६॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विरह प्रखर गुरु राजनो, तन मन व्याकुल थायजी. आंख्य थकी अचओ वहे, नव शांति सोहायजी; बुद्धि० ॥७॥ अमने गुरु ? ना विसारशो, गांडां घेलां पण दासजी. अम अवयुण ना बिलोकशो, अमने आपनी आशजी; बुद्धि० ॥८॥ अनंत प्रदेशी आतमा, एना अनुभवनारजी. अजितने आशिष आपशो, अमने आप आधारजी: बुद्धि० ॥९॥ १२ श्री गुरुअनुभव, क्षमा रमानाथने पूरण प्यारी-ए राग. गुरुए अमने अमृत पान कराव्यां, बीज कल्पतरु तणां वाव्यां; एबीज उज्यां फुल्यां तप्था फाल्यां, उत्तम फल मीठां आव्यां: दीव्य देवने दीव्य प्रदेशे, ध्यानना योगे धराव्यां. गुरु० ॥१॥ अनुभव सागर छोले चढयो अने, फल तजी कार्य कराव्यां; For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरु० ॥२॥ गुरु० ॥३॥ गुरु०॥४॥ पीपल उपर बेठेलां पंखी, अगम प्रदेशे उडाव्यां. मति गति पहोचे नही तेवे पर्वत, अनुभव वारि वहाव्यां; गगन सिंहासने आसन शोमे, त्यां अम स्थान ठराव्यां. ज्ञानगंगा जले स्नान कराव्यांने, स्नेहनां पुष्प सुंघाव्यां; प्रेमनी पेटी उघाडी कृपाघन, करुणानां पट पहेराव्यां. बालक पर जेवां लालन पालन, ए लाड अमने लडाव्यां: काम क्रोध केरा ककडा करी अने, दोषनां मूल दबाव्यां. कठिन कठोरता कापी दीधी अने, साधन शुद्ध शिखाव्यां; अलख वस्तु म्हारा दीलमां लखावी, लक्षण खलनां खपाव्यां. बुद्धिसागर गुरुमुज शिर शोभ्या, शांतिनां क्षेत्र सोहाव्यां; अजितसागर कहे सद्गुरु चरणे, भावने भक्ति भणाव्यां. गुरु०॥५॥ गुरु०॥६॥ गुरु०॥७॥ For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुद्धि मोक्षनी बात या, एकसो या सर्व जनायोए छपाव्यातना पूर्ण पिपासा श्री सद्गुरुचरणपुष्पांजलि. गरुडे चढी आवज्यो-ए राग. बुद्धिसागर सद्गुरु जाउं वारी; बुद्धि. ए टेक. दया सर्व जनोपर लाव्या, एकसो आठ ग्रन्थ बनाव्या, - स्नेह साथे शिष्योए छपाव्या. बुद्धि० ॥१॥ जैनशास्त्रना उंडा अभ्यासी, प्रेमज्ञानना पूर्ण पिपासी, पृथ्वी उपर कीर्ति प्रकाशी. बुद्धि० ॥२॥ शुभ साहित्य केरारे शोखी, उंची दृष्टि सदैव अनोखी; राग सर्व दीधा हता रोकी. बुद्धि० ॥३॥ आश्रम ठामोठॉम स्थपाव्या, हाल जरुर वाला ते जणाया; जैनबाल पवित्र भणाव्या. बुद्धि० ॥४॥ वली शास्त्रना भंडार स्थाप्या, उपदेश अनेकोने आप्या; कामभाव अंतरमांथी काप्या. बुद्धि० ॥५॥ कल्पवृक्ष छे परउपकारी, जेनी छाया के शीतल सारी: एवा उपकारी आनंद धारी. बुद्धि० ॥६॥ मान पामता ज्यां ज्यां ते जाता, पुण्यवंत देखी राजी थाता; जेना गुण देशोदेश गवाता. बुद्धि० ॥७॥ अमने आशरो एक तमारो, तारो हाथ झालीने अमारो; बीजे सुखडांनो जाण्यो उधारो. बुद्धिo ॥८॥ शिष्य अजितसागर पाय लागे, माघु ज्ञान दान मागे; गुरुचरणे सदा अनुरागे. बुद्धि० ॥९॥ For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री सद्गुरुस्तवन. राग उपरनोशरण बुद्धिसागर गुरुर्नु सारूं; जेनुं ज्ञान पीयूष लागे प्यारं. शरण ए टेक. रुडी मुक्तिनी जुक्ति बतावे, ज्ञानदीप सहज प्रगटावे; दीलडा केरा दोष दवावे. शरण० ॥२॥ शरणे आव्यानी लज्जा राखे, अज्ञानने नीवारी नांखे, भव्य वाणी वदनथकी भावे. शरण० ॥२॥ रुडी सद्गुरु कल्पनी छाया, राखे शिष्य पर माघी माया; शुद्धव्रतधारी श्री गुरुराया. शरण० ॥३॥ धर्मध्यान निरंतर धार्यों, कैक नर अने नारी उगार्यो; विश्वसरितामां डूबतां तार्यों. शरण ॥४॥ ब्राह्मण क्षत्रियो जेने वखाणे, जोगी जंगम पण जेने जाणे; स्त्रीस्तीलोकोय प्रेमे प्रमाणे. शरण० ॥५॥ हिंसावाला अहिंसक कीधा, दारु पीताने उपदेश दीधा: ___ आप ज्ञाने नक्की नथी पीता. शरण० ॥६॥ बीडी चलमो पण कैनी तजावी, गुजरातने ज्ञाने गजावी: जैन कोमा आणावर्तावी. शरण० ॥७॥ आप सरखा हवे ओछा थाशे, गुण घडीभरना संगी गाशे; पाप गुरुविना कम कपाशे ? शरण ॥८॥ For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६ गुरुविरह तणा भाला वागे, गुरूपदमां अजितअनुरागे; प्रेमे वली वलीने पाय लागे. शरण० ||९|| १५ श्रीमद् गुरुदेवस्तुति. रघुपति राम हृदयमां रहेजोरे-ए राग. रुडा गुरुदेव ? हृदयमांही रहेजोरे, दान ज्ञान अमृत तणां देजो; रुडा० ए टेक० तमो ज्ञानसागर गुरूदेवारे, सारी शीखवजो गुरु ? सेवारे; अमने भक्ति तणी देजो हेवा. रुडा० ॥ १ ॥ रुडी मूर्ति मनमांही भावेरे, विरह अश्रुने नयनमां लावेरे; दीव्य वाणीतो तन तलसावे. For Private And Personal Use Only रुडा० ॥२॥ शांतिकेरा तमो शुभ सिन्धुरे, एक जिनवरमां लक्ष बिन्दुरे; योग अभ्यासना बीजा इन्दु. रुडा० ॥३॥ आपे जन्म सफल करी लीधोरे, प्रेम प्यालो पूरण तमे पीधोरे; उपदेश अनूपम दीधो. रुडा० ||४|| जेजे देशमां आप पधारे, भवसागरथी जन तार्यारे; अज्ञान तिमिरथी उद्धार्या. रुडा० ||५|| मोटा महीपति राखता मानारे, नाम सांभली जन आवे झाझारे सर्व शास्त्र ज्ञाता गुरुराजा. रुडा० ||६|| Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७ विद्यापुर केरी भूमि छे सारीरे, जन्मभूमि ए भव्य तमारीरे; त्यांनां ताय तमे नरनारी. रुडा० ॥७॥ साधुरूप साचवीयुं छे साचुरे, जग सुखने जाण्युं हतुं काचुरे; रुडा० ||८|| भाव भक्ति तमारी हुं याचुं. अजितसागरना मनमांही आवोरे, बुद्धिसागरजी दया लावरे; कृपा वारि विमल वरसावो. रुडा० ॥९॥ १६ श्रीमद् सद्गुरुस्तुति. राग उपरनो. बुद्धिसागर सद्गुरुनी बलीहारीरे, जेने भक्ति प्रभु मेरी प्यारी. जैनधर्म तणी टेक धारीरे, यावत् जीवनना सहु जीवो तणा उपकारी. जे काम कासने काप्यारे, अवळा मार्ग सदैव उत्थाप्यारे; दीव्य देशना संदेश आप्या. बुद्धि० ||२|| मुनिभावनी साचवी दीक्षारे, आपी शिष्योने शास्त्रनी शिक्षारे; जेने भाव भजन केरी भिक्षा. बुद्धि० ॥३॥ शास्त्री लोकोता स्नेहे संभारेरे, पंडित लोको तो प्रेमे पुकारेरे; ध्यानी लोको सदा ध्यान धारे. बुद्धि० ||४|| प्रेमी जनने तो लागता प्रेमीरे, नेमी लोकोने लागता नेमीरे; मति शास्त्र पारंगत जेनी. बुद्धि० ॥५॥ For Private And Personal Use Only बुद्धि० ए टेक. ब्रह्मचारीरे; बुद्धि० ॥ १॥ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भजनीलोकोतोभजनीकजाणेरे,योग वाला तो योगी पीछाणेरे; निर्मल लोक तो निर्मानी माने. बुद्धि० ॥६॥ जेनी राग रहित रुडी दृष्टिरे, शास्त्र मांही विशारद सृष्टिरे; जेने वैराग्य वारिनी वृष्टि. बुद्धि० ॥७॥ देह त्यागी गया बीजा देशेरे, अमने ज्ञान अमृत कोण देशेरे; हित शिक्षाओ गुरु ! कोण कहेशे. बुद्धिः ॥॥ मोहराजाने मारी नाख्योरे, राग एक आत्मामांही राख्योरे; गुरुभाव अजित शिष्ये भाख्यो. बुद्धि० ॥९॥ श्री सद्गुरुने प्रेमांजलि. हरिगीत-गझल सोहिनी. गुजरातमा जन्मी अने, गुजरातने पावन करी, भयकापती भगवंतनी, अति दीव्यभक्ति आदरी; सुज्ञान दीव्य प्रदेशनु, निर्मल तमारामां हतुं, ने आपना पथ लइ जवान, ध्यान पण सुन्दर हतुं. ॥१॥ जे जे तम्हारी पासमां, भावे भर्या जन आवता, ते ते जनोने योग्य विधि, शुभ ज्ञान सुखकर आपता; मूर्ति मनोहर आपनी, अम नयन गोचर आवती, गुरुदेवकेरा भावथी, नयनो विषे जल लावती. ॥२॥ जगमांही जन्म्यो एज, जेणे विश्वर्नु केइ हित कर्यु, उंची कदावर मूर्ति ने, नयनो विमल प्रेमे भयों; For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९ मृदुहास्य संत प्रसंगमां, वचनो सुधाज्ञाने भर्यो. ज्यारे अने त्यारे तमारा, निकटमां ग्रन्थो पड्या, रहेता हता शुभशाखना, के काव्यना के ज्ञानना; घडी एक पुस्तक वांचता तो ते विषे तल्लीन थता, घडी एक भजन सुणी अने, आत्माविषे आल्हादता ॥४॥ For Private And Personal Use Only ॥३॥ घडी एक ध्यान धरी प्रभुनुं, बाह्यमान विसारता, घडी एक दीव्य निरीक्षणे, कँइ नवीन ग्रन्थ विचारता; घडी एक वचनामृत दइ, प्रभुज्ञान अत्र प्रसारता, ने विश्वनुं हित केम बने, ते दृष्टि मनमां धारता. सुन्दर तमारा देहमां, सुन्दर बसी शमता हती, ने मोक्षकेरा मार्गमां, गुरु आपने ममता हती; आ सर्व विश्व भमावता, मनडातणी शमता हती, आचार तत्व स्वरूपां गुरु ? सौम्य निर्मलता हती. ॥६॥ सहु भूतपर अनपायिनी प्रभु ? आप मांही दया हती, ने ती तपना योगथी, कमनीय तव काया हती; शिष्यो उपर शीतल सुभग, गुरु ? आपनी छाया हती, ममता रहित मानव उपर, मधुरी महद् माया हती. ॥७॥ छो आप ऊर्ध्व प्रदेशमां, करुणानी दृष्टि राखजो, आधि अने व्याधि वध, संकष्ट सद् गुरु ? कापजो; छे ध्वांत अम दिलडां विषे, त्यां ज्ञानरूपे व्यापजो, वैराग्यरूपी कल्पतरूनुं, बीज स्थिर मन स्थापजो. ॥५॥ በራሱ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोरठो. सद्गुरुनी थइ याद, मन तन व्याकुल थाय छे; निर्मल आप प्रताप, स्वीकारो अम अंजलि. ॥९॥ ॥१॥ १८ श्री गुरुनी स्तुति. सहेरनो सूबो क्यारे आबशेरे-ए राग. जन्मभूमि धन्य आपनीरे; पवित्र विजापुर गाम मूरिराज! धन्य कर्यों अवतारनेरे० टेक० मोक्षना दाता महातमारे; बुद्धिसागर रुडुं नाम. सूरिराज ! धन्य कर्यो अवतारनेरे० मूर्ति मधुरी मनमोहिनीरे: आवे अहोनिश याद. मूरिराज ! धन्य कर्यो अवतारनेरे० ॥२॥ अजपा जाप जप्यातमेरे; कबजे कर्या जगतात. मूरिराज ! धन्य कयौँ अवतारनेरे० उत्तम आव्यां वधामणारे; करता हता ज्यां विहार. मूरिराज ! धन्य कर्यों अवतारनेरे० ॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जबर जादू हतुं आपमारे; आपता बोध अपार. सूरिराज ! धन्य कर्यों अवतारनेरे० ॥५॥ कोमलता हती कान्तिमारेः । कोमल वचन प्रकार. सरिराज ! धन्य को अवतारनेरे० ॥६॥ परम पावन पद पामीयारे; एमां न संशय रंच. सरिराज; धन्य कर्यो अवतारनेरे० ॥७॥ साचा मान्या जगदीशनेरे, व्यर्थप्रमाण्यो प्रपंच. मूरिराज ! धन्य कर्यो अवतारनेरे० ॥८॥ अमने म्होटो हतो आशरोरे; तरवा संसारनां नीर. मूरिराज ! धन्य कर्यो अवतारनेरे. ॥९॥ उत्तर गुर्जर देशमारे, साबर सरितानो तीर. मूरिराज ! धन्य को अवतारनेरे० ॥१०॥ कूडिलो कलियुग आवीयोरे; धारणा करीए न धीर. सरिराज ! धन्य को अवतारनेरे० ॥११॥ For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजितसागर मूरि उज्चरेरे: गुरुगम रम्य रुचिर. मूरिराज ! धन्य को अवतारनेरे० ॥१२॥ श्री गुरुगुणगान. राउपरनो. आंखडली अम आंसु भरीरे, विरह कह्यो नव जाय, गुरुदेव ! क्यारे दर्शन हवे आपशोरे ! काया पावन कारी आपनीरे, संभारी दील डोलाय, गुरुदेव ! क्यारे दर्शन हवे आपशोरे. ! वचन अमृत याद आवतार, पावन कर्म सदाय, गुरुदेव ! क्यारे दर्शन हवे आपशोरे.! जननी ! भगत जन्म आपजेरे; कां दाता कां शूर गुरुदेव, ! क्यारे दर्शन हवे आपशोरे. ! नहींनर रहेजे वांझणीरे; रखे गुमावती नूर, गुरुदेव ! क्यारे दर्शन हवे आपशोरे. ॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥५॥ ॥७॥ सफल करीए अवतारनेरे; सफल कर्यों अवतार गुरुदेव ! क्यारे दर्शन हवे आपशोरे. सफल करी कुख मातनीरे; मफल कयौं संसार गुरुदेव, ! क्यारे दर्शन हवे आपशोरे. योगनी युक्ति जाणी त्हमेरे; तेम समाधिनो योग, गुरुदेव ! क्यारे दर्शन हवे आपशोरे. आत्मस्वरूप हमे ओलव्युरे; योग गण्या अवयोग, गुरुदेव ! क्यारे दर्शन हवे आपशोरे. दूर करी जग वांच्छनारे; दूर कर्या हता दोष, गुरुदेव ! क्यारे दर्शन हवे आपशोरे. परवरिया प्रेम पंथमारे; जोष जोया निर्दोष, गुरुदेव ! क्यारे दर्शन हवे आपशोरे. अजितसागर मूरि विनवेरे; बुद्धिसागर मूरिराय, गुरुदेव ! क्यारे दर्शन हवे आपशोरे. ॥८॥ ॥१०॥ ॥११॥ For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ रहेम नजर सदा राखजोरे सफल जन्म अम थाय, गुरुदेव ! क्यारे दर्शन हवे आपशोरे. ॥१२॥ गुरु विरह. अलबेलीरे अंबेमात जोवाने जइए-ए राग. सखी ! आव्यो मास आषाढ, विरही गुरुदेवे कर्या: सखी ! उरमा अति उच्चाट, विरही गुरुदेवे कर्या. ए टेक. घन गरजे चपला बहु चमके, थाय अंधारूं घोरजो: गुरुविरही मुज चित्तहुं चमके, करतुं शोर बकोर. वि० ॥१॥ मृदु ठंडा वावलीआ व्हाता, खेडुत अनि हरखायजो; पण तन पर ते नथी स्हेवाता, शरीर अतिवसुकायावरहो०२॥ पृथ्वी उपर पाणी बहु पडतां, नदीओमां वहीजायजो; सद्गुरु विरही मुज मन पाणी, हर्षरहित वहाय. विरही०॥३॥ नथी घरमां गमतुं आ दिवसे, सूनो थयो संसारजो; अतिदुर्लभ गुरुजननी संगत, देती विमल विचार.विरही०॥४॥ नव पल्लववेल्ली थइ रही छे, फूली रह्यां छे फूलजो; पण मुज मन वल्ली सूकाणी, उपजावे अतिशूल. विरही०॥५॥ अन्य जन्ममा आवी मले छे, मात जात ने तातजो: सद्गुरु संगत मलवी कठीन छे, दायक प्रेमप्रभात.विरही॥६॥ For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काम क्रोध कंकासने कापे, टाले भवना रोगजो; ज्ञान भक्ति वैराग्यने आपे, संहारे सौ शोक. विरही०॥७॥ पृथ्वी अतिव प्रफुल्ल थइ छे, पामी पाणी प्रसंगजो; सद्गुरु विरहे पण मुज मूक्या, अंतरना उमंग. विरही०॥८॥ नव अंकूर उग्या छे नौतम, उग्यां क्षत्रे धानजो; पण मम हर्षसमग्र सुकाणा, मनडे त्याग्यूं मान विरही० ॥९॥ बाह्यअग्निनी ज्वालासारी, थाय विमल फरी अंगजो अजित अब्धि गुरुविरहनी ज्वाला, फेर न आपे उमंग.वि०॥१०॥ श्री गुरुविरहनो शोक. राग उपरनो. सखी गुरु ए त्यागी काय, शोक घन छाइ रह्यो; हवे घरमां केम रहेवाय ? शोक अति छाइ रह्यो. ए टेक० जन्म धर्यों विजापुर गामे, विद्या पण भण्या त्यांयरे; महिमा प्रगट कर्यों निजपुरमां, तनु पण त्यागी त्यांय.शोक० ओगणीसो एकाशी संवत् , ज्येष्ठ मास सुखकारजो; कृष्ण पक्षने तिथि त्रीजे, स्वर्ग कयु स्वीकार. शोक ॥२॥ तार अपाणा देशो देशे, लोक उदास अपारजो; जैन हिंदु इस्लाम आदिसहु, समरे वर्ण अढार; शोक० ॥३॥ योगी योगी स्वरूपे जाणे, शास्त्री शास्त्र प्रकारजो; For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६६ कविजन जाणे कविनी कृतिथी, यति पण यति निरधार. शो ०|४| रंक उपर ते दया राखता, विद्यार्थी परव्हालजो; भक्त उपर ते भाव राखता, निर्मल ज्ञान विशाल शो० ॥५॥ देशो देशी भक्तो आव्या, भारे थइ गइ भीडजो माय शोक नहीं दिलडां मांही, पूर्ण विरहनी पीड. शो० ॥३॥ राज लोकनी थाय न एवी, करी सामग्री त्यांयजो; अगर - कपूर - चन्दननी हेमां, पधराव्या सूरिराय; शो० ||७|| ases आंसु व सौ जननां वचने वधु न जायजो; धन्य जीवन आ पर उपकारी, फरी क्यां दर्शन थाय. शो० ॥८॥ क्रूर कठिन आ काल समयनी, नथी उचराती वातजो नमता शेठ श्रीमंत जे चरणे, ए तनु आज बलाय. शो० ॥९॥ विश्व आत्मा जाण्यो जेणे, जाणी जग निज जातजो; अजित सागर सूरि अर्ज उच्चारे, धन्य धन्य मातने तात. शो० ॥ १० ॥ २२ गुरुप्रार्थना. ललित - छंद. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरु दयालनी वातशी कहुँ ! विरह भावथी रोइने रहुँ; अनुभवान्धिनी ल्हेर आपता, गुरु ! विदारजो सर्व आपदा ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुविना बीजी छे गति नहिं, गुरु बिना अहीं छ मति नहिं; गुरुजी ! व्हालथी आप व्यापता, परिहरो हवे सर्व आपदा ॥२॥ पतित शिष्यना कष्ट कापजी, उर विषे रुडा ज्ञाम आपजो. मुजशिरे सदा छत्र छाजता, गुरु ! विदारजो सर्व आपदा; ॥३॥ तिमिरता हती अज्ञता तणी, परिहरी हमे हे शिरोमणिः । करणी धर्मनी आषता हता, गुरुविदारजी सर्व आपदा ॥४॥ जगत्लोकमा आत्मभावना, इतर कोण ये! आफ्ना विना; . शरण शिष्यनी लाजराखता, गुरुविदारजो सर्व आपदा.॥५॥ इतर तीर्थती पाप कापशे, पण गुरु विमा मोक्ष क्या थशे; अमतणी तमो माघी छो मता, गुरु विदारजी सर्व आपदा.॥६॥ रझलतो हतो विश्व रानमां, समज आपला धर्यज्ञाममां, .. मम शिरे रहो ना विसारता,गुरु ! विदारजी सर्व आपदा.॥७॥ नमन आपना पायमां हजो, भ्रमणता हवे ना बीजी थजो; अजित अधिनी एवी प्रार्थना,शरण राखजो हे दयाधना.॥९॥ श्रीसद्गुरुना चरण ललित छंद. ललित छंदमां विनती करूं, ललित काल छे तोय हूं डरु: गुरु विना हवे केम गोठशे ? गुरु विना हवे ग्लानि शेजशे?? ममत माहरी छोडवी दीधी, ममत माहरी धर्ममां कीधी: इतर सौख्यनी प्राप्तिओ थशे, गुरु विना हवे केम गोठशे? २ For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्मकर्मनी सान आपी छे, कुडमति तणी जाल कापी छः कुटिल भावने कोण कापशे, गुरु विना हवे केम गोठशे ? ३ विमल भावना ज्ञानना भर्या, धृति मति क्षमा धर्मना धर्या; विशद वृत्तिथी कोण व्यापशे, गुरु विना हवे केम गोठशे १४ हृदय आज तो ना कह्यु करे, अडर छे थयुं तोय ते डरे, . स्थिर स्वभावने कोण स्थापशे, गुरु विना हवे केम गोठशे ५ भूल थती यदा ज्ञान आपता, कठिण क्लेशनां मूळ कापता: मधुरता विना चित्त जो हशे, गुरु विना मति कोण आप.६ गुरुजि ! आपना पायमां पड्यो, परमज्ञानथी ऊर्य हुँ चढ्यो; इतर आपदा कोण दाबशे, गुरु विना हवे केम गोठशे ? ७ तमतणी हती धींगी ढालडी, तमवडे रणे हुँ शक्यो लडी; हृदय सैन्यमां शी व्हले थशे ? गुरु विना हवे केम गोठशे? ८ श्री गुरुभक्ति विना. छंद भुजंगो. चतुराइ त्हारे भले चित्त चोटी, उमेदो करे छे घणी म्होटी म्होटी: गुरुपादपद्मे न चेतस् थयु जो, थयुं शुं भण्या तो ? थयु शुं गण्या तो ? For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बनी वैदराजा दवाओ बनावे, घणा भोगी रोगी भले घेर आवे: गुरुपादपद्मे न चेतस थयु जो- थयु शुं ? २ वकीलात कोर्ट भलेने करे तुं, तिजोरी विषे दाम लावी भरे तु; गुरुपादपद्मे न चेतस् थयुं जो- थयुं शुं ? ३ भले लोक सन्मान आपे सभामां, भले लोक अंजाय त्हारी प्रभामां: गुरुपादपद्म नचेतस् थयुं जो- थयु शुं ? ४ अडे अभ्र एवां कयाँ हयं म्होटां. डरे लोक स्हेजे कदी सामुं जातां; गुरुपादपद्मे न चेतस् थयुं जो- थयु शुं ? ५ षडंगादि वेदो भलेने भणे छे, वली काव्यभेदो खुशीथी करे छे; गुरुपादपझे न चेतस् थयुं जो- थयुं शुं ? रुडी अश्व अस्वारी काढी फरे छे, 'घणो कामी तुं काम मांही रमे छ गुरुपादपझे नचेतस् थयु जो- थयुं शुं ? ७ तजी ज्ञातिने त्हें तजी चोटी रोटी, भले जाणी ले तो जगत् आश खोटी; गुरुपादपद्मे न चेतस् थयुं जो- थयुं ? ८ For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मल्या शीर्ष बुद्धयन्धि श्रीयोगिराजा, अजितान्धिना चित्तमही विराज्या; कर्यो जन्म कृतकृत्यने मोक्ष दीधो, तथा म्हें व्यथा त्यागी तुज बोध लीधो. थयुं शुं १९ ॐ - गुरुस्तुति छन्द नाराच अथवा गंजल अंग्रेजो वाजानो. कुपात्र ने सुपात्र हेगुरो ? बनावता, सुपात्रना प्रति हमें सहर्ष आविताः गुणज्ञ लोकमां तमारी नामना हती, गुणो अतीव आपना कह्या जता नथी. स्मरी स्मरी ज्वलायमान अंग थाय छे, फरी फरी स्मरी स्म अने स्मराय छे; अमोथी ना बने बन्युंज जे तमो थकी, गुणो गुणज्ञ ! आपना कहा जता नथी. दुःखो विलोकी दीननां दयालुता थती, सुखो विलोकी अभ्यन सुखार्द्रता थती; भविक मंडली की सुप्रार्थना थती, गुणानुवाद आपना कहां जता नथी. , For Private And Personal Use Only ? Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७१ हसेल सामुं देखीने सुहास्य लावता, रुदित सामुं देखीनेज अश्रु लावताः अनेक लोकमां अनेक भावना हती, गुणानुवाद आपना कह्या जता नथी. कठीनता घटे तिहां कठीनता हती, सुदीनता घंटे तिहां सुदीनता हती; करुण भावमा करुण भावना थती, गुणानुवाद अपना कहा जता नथी. सुयोगी लोक आपने सुयोगी मानता, अशोकी लोक आपने अशोक जाणताः सुयोगता अशोकताभरी घणी हतो, गुणानुवाद आपना कहा जता नयी. विसारीये छतां कदापि विस्मरी नहि, अनेक दोष शिष्यना दिले घरो नहिः महा अगाध भावना कली गइ नहि, गुणानुवाद आपना कहा जता नथी. पदाब्जमां अमारुं चित्त राखजो सदा, उपाधि आधि व्याधिने विदारजो तथा अजित सद्गुरुपदे अजित विनती. गुणानुवाद आपना कह्या जता नथी. For Private And Personal Use Only ६ ሪ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री गुरुमहिमा. छन्द नाराच. अलक्षदेशमां गुरुजी लक्ष राखता, अपक्षपातमां सदैव पक्ष नाखता; अदक्षलोक अर्थ आप दक्षता हती, अमारी आ स्वीकारजो सदा नमस्कृति. ? अधर्य लोकने गुरुजी धैर्य आपता, अशौर्यलोकने गुरुजी शौर्य आपता; वडीलवर्गमा तमारी नम्रता हती, स्वीकारजो अमारी आ सदा नमस्कृति. तमारी ज्ञानीलोकमांही ज्ञानता हती, तमारी मानि छोकमांही मान्यता हती; जगत् हितार्थ कार्यथी तनू भरी हती, स्वीकारजो गुरु अमारी आ नमस्कृति. सुभक्तलोकमां तमारी भक्तता हती, विरक्तभावथी रुडी विरक्तता हती: अनंत केटिवार छे प्रणाम त्वत्पति, स्वीकारजो सदा अमारी आ नमस्कृति. ४ तमो विषे फकीरीनी अमीरी दर्शती, करुणभावनी तथा सुदृष्टि वर्षती: सदोज्ज्वलां हतां धृति कृति अने मतिः अमारी आ स्वीकारजो सदा नमस्कृति. ५ For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७३ प्रगूढभावनी तमे अगूढता करी, प्रमूढलोकनी घणीज मूढता हरी; अगाधभावमा अगाधबुद्धि स्पर्शति, स्वीकारजो सदा अमारी आ नमस्कृति. कविता प्रसंगमां कवित्व दर्शतुं, हरेक सौम्य वातमांही हुं हतुं; न जाणुं आपनी गुरो ! कइ हती गति, स्वीकारजो सदा अमारी आ नमस्कृति. ॥७॥ मधुर ज्ञाननां तमे उबाडी वारणां: उद्धार लोकनो कर्यो उतारुं वारणा: अजित शिष्यनी पदाब्जमांही विनति, स्वीकारजो सदा अमारी आ नमस्कृति. ॥८॥ २७ मस्त फकीरी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ६ पूनमचांदनी खोली पूरी अहींरे-ए राग. अति अलमस्त फकीरी बुद्धिसागर महाराजनीरे, जेनुं वर्णन करतां वाणी विरमी जाय, अति-ए टेक. साखी - शांतस्वरूप सोह्यामनुं, शांतस्वरूप सत्कर्म; शांत भरेली वाणीथी, पावन पाल्या धर्म. निर्मल एक अगोचर अलख निरंजन ध्यानमारे; अवधूत एवी दशानी वृत्ति केम विसराय अति० ॥ १ ॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ साखी-आत्माऽहं रटना सदा, जेनुं साचं सूत्र; विश्व सकल मम आतमा ए पुत्रि ए पुत्र. म्हारुं हारूं एवी गणना अज्ञानी तणीरे; मेने वसुधा एक कुटंब सदा सममायः . अति० ॥२॥ साखी-अगमपंथ जैनो घणों, अगम अंगोचरदेव: अगमभावना आत्मनी, अगमसुखावह सेव. जेनी अगमदशा आ जर्गमां सज्जन जाणतारे; पावक ज्वाला जेवीं जेनी प्रेमप्रभाय. अति० ॥३॥ साखी-सुखने नव संभारता, दुःख पण तेवी रीत; सहजानंद स्वभावमां, पूरी जेनी प्रीत. जेनो राज रंकपर सरखो भावं सुहावतोरे, वृत्ति एक अखंडित जिनवरमां देखाय. अति० ॥४॥ साखी-अज्ञानी जाणे नहिं, भेदु जाणे भेद, __अखेददेशनी वातने, शुं ? समजेज सखेद. गुरुवर समदर्शी जग सदा शीयलसंतोषनारे; उत्तम अनुभव महिमा वदतां कैम वदाय ? अति० ॥५॥ साखी-देशविदेशे नामना, जाणे संतो सर्व ___ गुणनिधि दुर्गुण परिहर्या, मोह नहिं नहिं गर्व. वासी आनन्दधन यश विजयदेवना देशनारे । महिमा गुरुनो जाणी अजितमूरि नित्यगाय. अति० ॥६॥ For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७५ २८ श्री गुरुदेवने. गजल सोहिनी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उद्यानमा गुलावनी, कोमलकलिका जोड़ छे; मृदु कुन्द सौम्य शिरीषने, मधुमालिका पण जोड़ छे. उद्यानं ० ॥१॥" कोमलपणानी रसभरी, यौवनदशा निरखी अति; पण आपना त्याँ हृदयनी, मृदुभावना देखी नथी. उ० ॥२॥ जन पतितपावनी बोलता, ते जोइ छे भागीरथी; मोहनतणी यमुना तथा, अतिरम्य जोइ सरस्वती. उ० ॥३॥ तापी तथा आ नर्मदाने जोइ छे साबरमती: पण आपना शुभभावनी, रसवाहिनी देखी नथी. उ० ॥४॥ चलकाट करती चन्द्रिका, आकाशमां देखी वणी: प्रातःसमय पूर्वा विषे, किरणावली देखी वणी. उ० ॥५॥ विद्युत्तणा चमकारनी, म्हें देखी हे ज्योति अति; पण आपना त्या ज्ञाननी, ज्योत्स्ना कदी देखी नथी. उद्यान • ||६|| सिन्धुतणीय अगाधता, आकाशनी उंडाणता; हिमगिरितणी उंचाणता, जलबिन्दुओनी प्रमाणता. उद्यान० ॥ For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७६ ए सर्व म्हें देख्यां छतां, गुरु आपना सरखां नथी; चैतन्यसम जडवस्तुमां, प्रौढत्व म्हें देख्यां नथी. उ० ॥८॥ आकाशना तारातणी, गणना कदीक बनी शके: वर्षादना जलबिन्दुनी, गणना कदापि थइ शके उ० ॥९॥ पण गुरु तणा गुणनी कदी, गणना सुणी देखी नथी; गुरुदेवसम म्हें दिव्यता, जन अन्यमां देखी नथी. उ० ॥१०॥ सिंहे करेली गर्जना, गजयूथने भय आपती; ने सूर्यनी ज्योति तिमिरना, पुंजनेज हठावती, उ० ॥ ११॥ वी गुरुनी गर्जनाओ, पाप ताप प्रजालती; गुरु गर्जना सम गर्जना, बीजे महद् देखी नथी. उ० ॥ १२॥ २९ केवल दैव ? Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गजलसोहिनी. मम जन्मनी भूमि जूदी, ने अन्य पृथ्वी आपनी; मम मध्यता गुजरातनी, उत्तर हती गुरु आपनी मम० ॥ १ ॥ मम जन्मनी जाति जूदी, वली आपनी जाति जूदी; आचार पण जूदा अने, वृत्ति हती तेमज जूदो. मम० ॥२॥ ना जाणतो गुरु कोण छो ? ना जाणता हुँ कोण हुँ; त्या जाण सर्वबनी गइ, छो कोण गुरु हुं कोण हुँ, मम० ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुं अन्य पंथे परवņने, आप पण बीजे गया; पण पूर्वना परिबल वडे, संबंधी थइ भेगा थया. मम० ||४|| म्हारी अने गुरु आपनी, थइ भूमिकामां एकता; म्हारी अने गुरु आपनी, थइ जातिमांही एकता. मम० ॥५॥ उत्तर अने बळी मध्यनी, आजे बनी गइ एकता; आचार वृत्ति विचारमां, गुरु आज थइ गड़ एकता. मम०॥६॥ आ दैवनी कृति एकतानी, भिन्नता केमज बनेः अद्वैत - मांहि एकतानी, द्वैतता क्यांथी बने. जे नगरमा सुतो हतो, त्यां मृत्यु घंटा गाजती; घनश्याम सूना आश्रमे, शय्या अमे कीधी हती. मम०॥८॥ त्यां एकदम आवी तमे, आज्ञा सुखद आपी दीधी: जाग्रत मधुर आवी अने, निद्रा दुःखावह दूर कीधो. मम०||९|| मम० ||७|| म्हारा सुना मंदिर विषे, भरपूर वस्ती आपनी: म्हारा मृदुल मंदिर विषे, मृदुभक्ति शस्ती आपनी. मम० ॥ १०॥ म्हारा सुभग आश्रम विषे, शुभमूर्त्ति हसती आपनी; विसराय ना ने जायना रसता हती ते आपनी मम०॥११॥ For Private And Personal Use Only आ दैवकृत संयोगनो, उपयोग पण पूरण थयो; घनरात्रि आज हठावी भासुर, उदय पण पूरण थयो.. मम० ||१२|| Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७८ आ अमरताना योगमां, मरता हवे देखु नहि; मरता मरी अमरत्वमां, त्यां अन्य कंइ मीच्छ्रे नहि. मम० ||१३|| जाता नहिं जाता नहिं जातां छतां जाशो नहिं सूरि अजितनो आश्रम तजी, बीजे खुशी थाशो नहि. मम० ||१४|| पद. तारुं मनडु मायामां मोही र रे, भर्यु अंतरमां अति अभिमान; एथी ईश्वरने हें नव ओलख्यारे, ए टेक - कढ़ी परनुं भलं करतो नथीरे, देतो नथी गरीबोने दान; एथी० ॥ १ ॥ हारा पापमा बंधाणा के प्राण. एथी० ॥ २ ॥ जूटुं बोल्यामां दिवसो जायछेरे, नथी दीनता दया त्हारां दीलमारे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन हरवामां धर्यु सदा ध्यान एथी० ॥ ३ ॥ परनार जनेता समी जाणी नहीरे, गम्या घटमां कपट ककास; संत साधुने कदी नमतो नथीरे, For Private And Personal Use Only एथी० ॥ ४ ॥ खलखूटलना सँग गम्या खास; एथी० ॥ ५ ॥ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७९ तने विचार विवेक घडी नव गभ्योरे, नथी प्रभुजीना नाम उपर प्यार; एथी० ॥६॥ संत साधुनी सेवना साधी नहीरे, शेठ लोकोनो मोटो सरदार; एथो० ॥ ७॥ माटे समजीने सिद्ध पंथ चालजेरे, प्रभु भजनमां थाजे हुंशीयार: एथी० ॥ ८ ॥ अजितमूरिना व्हालाने भज भावथीरे, त्हारा भवनो बेडो थाय पार. एथी० ॥९॥ गुरुस्मरणाष्टकम् वसन्ततिलका. मच्चिन्मुखास्पदमनन्यगुणानुहारी. सौराष्ट्रराष्टजनतापरिपुप्रहारी; निर्भानमोह भवभीतिरघापहारी, मूरीशबुद्धिजलधिः स्वर्गोत्सुकोहा? ॥१॥ दीव्यात्मशक्तिमणिना हृदयावरूढं, गाढान्धकारमखिलं भवता निरस्तम् । विज्ञानवास ? कुमताध्वनिवारकस्त्वं, रिक्ता त्वयाद्य वसुधाऽधिविराजते नो ॥॥ For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८० सर्वागमार्थविदखण्डितबोधगे हैं, विद्या पुरस्थजनमङ्गल हेतुराद्यः । अद्यामरेन्द्रपुरवासमनुप्रपन्नः, शून्यं विभाति जगदिष्टगुरो ? समस्तम् हे सूरिपुङ्गव ? विभो जनसंशयानां, छेत्ताऽधुना न सुलभः समतानिधानः । कं ज्ञानिनं समधिगम्य मनोभिलाषां, - पूर्णीकरिष्यति वचः सुधया जनोऽयम् विद्यावतां व्रतजुषां स्पृहणीयशीलः, शीलाङ्गभारवहनेऽतिधुरन्धरश्रीःः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्ममण्डलविभावक आत्मनिष्टः, सुरीश बुद्धिजलधिः स्वदशां प्रयातः आनन्दमूर्त्तिरखिलागमसारवेदी, विज्ञातदर्शनमतोमतभेदभिन्नः । संप्राप्तपण्डितपदः कविराजराजः, सूरीशबुद्धिजलधिः स्वगतिं प्रपन्नः श्री विरशासनमिदं रुचिरं विभाति, यद्वाग्विलासविभवेन सुविस्तृतेन । यत्पादपङ्कजरतिः शुभदा नराणां, सूरीश बुद्धिजलधिः स्वगतिं प्रयातः हे सद्गुरो ! मतिसुधारक ? तावकीनं, पादारविन्दमतुलं सततं स्मरामि । For Private And Personal Use Only ॥३॥ ॥४॥ ॥५॥ ॥६॥ ॥७॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८१ नान्यन्मदीयशरणं कलयामि सूरे ? संसारतारक ! विभो ? भवपारगामिन् ॥८॥ सूरीश्वरेण सुधियाऽजितसागरेण, संगीतमेतदन पायसुखप्रदायि । गुर्वष्टकं गुरुगुष्मानुविधानदक्षं, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्मर्तुः सदा सुखकरं कलिकालमध्ये ३१ श्रीमद् योगनिष्ठ सद्गुरुश्रीबुद्धिसागरसूरीश्वर - विरहाष्टकम् शार्दूलविक्रीडितम् ॥ श्रीमान् धर्मधुरन्धरः सुखमयः शङ्कातमस्तारकः, कर्मारिक्रमभेदकः क्षितितले सद्बोधवीजाकर ; । स्याद्वादामृत सिन्धुशीतकिरणश्चारित्रचूडामणिः, ॥९॥ श्रीमद्बुद्धिपयोधिसूरिसविता कास्तंगतः संमतः १ ॥ वक्ता वादिगणेषु वादविरतः सत्याञ्चितान्तः क्रियोंवैराग्यैकरसार्द्रमानसवरः सर्वार्थसिद्धिप्रदः । सर्वापत्तिनिवारको मुनिवरः संप्रार्थितः सर्वदः, For Private And Personal Use Only श्रीमान् बुद्धिपयोधि रिसविता कास्तंमतः संमतः ॥२॥ अध्यात्मैafari सदव विदितः सद्ध्यानमेरुश्रितो Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भक्तानामभयङ्करः शिवकर सर्वापदा चारकः । नानादर्शनदीक्षिता क्षितिभुजां मौलीकृतोऽकामतः, श्रीमान् बुद्धिपयोधिमूरिसविता कास्तंगतः संमतः ॥३॥ दुर्दैवस्य विलास एष निखिलः प्रोज्जृम्भितो भूतले, ___ मन्ये सद्गुरुपुङ्गवस्य विरहः स्यादन्यथा मे कुतः । योगानन्दविलासलासितमनाः सिद्धिश्रिया सेवितः; श्रीमान् बुद्धिपयोधिमूरिसविता वास्तंगतः संयतः ॥४॥ यस्यानन्तगुणानुवादकरणे नो शक्तिमान् वाक्पति यद्गाम्भीर्यमगाधमुन्नतधियां नैव स्फुरेन्मानसे, । नवार्थप्रतिबोषभासुरंगिरां यः संशयोच्छेदकः, श्रीमान् बुद्धिपयोधिमूरिसवितासोऽस्तंगतः संयतः॥५॥ श्रीमद्भारतभूमिभूषणमलं मोहान्धकारापहः श्रीमद्गौतमसम्पदा कुलगृहं हन्ताऽऽपदां लौकिकीम् । श्रीयोगीन्द्र इलाधिराजमहितः, शिष्टक्रियाकर्मठः, श्रीमान बुद्धिपयोधिमूरिसविता काऽस्तंगतः संयनः ॥६॥ ग्रन्थान् याकृतवान् शतं सुललितानष्टोत्तरं भासुरान् , तत्त्वार्थप्रचुरश्चराचरहिते नित्योद्यमी संयमी। सोऽयं भास्वरकान्तिमान प्रकटयन्निचिमार्गक्रम, श्रीमान् बुद्धिमयोधिमूरिसविता क्वाऽस्तंगतः संयतः॥७॥ लोकानामुफ्कारकारकगुरो ? सर्वत्र कीर्तिस्तव, त्रैलोक्यां विलसत्यखण्डितगुणा संदर्शनं दीयताम् । For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निर्मूल्यात्मसमाधिना रिघुगणे स्वानन्दसौस्थितः, _श्रीमान् बुद्धिपयोधिमूरिसविता काऽस्तंगता संयतः॥८॥ शुद्धानन्दविधायक भवभयक्षोभान्तकं पावन, मूरीशाजितसागरेण विहितं गुर्वष्टकं शोभनम् । ये शृण्वन्ति हृदि स्मरन्ति मनुजा नित्यं पवित्रात्मना, तेषां सनिधितामयन्ति विविधाः संपत्तयः शोभनाः ॥९॥ गुरुगुणगीतम् कव्वाली. महानन्दं निरानन्दं, निराकारं निरावाघम् । सुखाकारं चिदानन्दं, पदं शुद्धं सदाभीष्टम् । क्रियाकाण्डं समभ्यस्तं, तपस्तप्तं त्रिधा गुप्तम् ! नरामरनाथसंभुक्तं, पदे मनसाऽपि नो क्लसम् ! प्रभो ! बुद्धिसुधासिन्धो ? स्मरामि त्वत्पदाम्भोजम् ॥१॥ भजनमैकान्तिकं कान्त, निरारम्भ जनानन्दम् । विशालं लालितं तावत्-कृपासागर ? मुनीशेन । सदा मूरीन्द्रमुणनिष्ठ ? महायोगीन्द्रपदधारिन् ? . प्रभो ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुवोधारे ? विमोझरे ? भवभ्रान्तिक्रमच्छिन ? रचिततत्त्वाकरग्रन्थ ? समागमसारनिर्मन्थ ? । परापरमेदतात्यागिन् ? निरंजन देवतारागिन् ? प्रभो ॥३॥ क्षमाधारिन् ? गुणाचारिन् ? प्रतापिन् ? बालब्रह्मचारिन ? महायोगिन् ? पराभासिन् ? मुभाषितसाररसधारिन् ? धराधीशप्रजापक्षिन् ? विपक्षारिक्षयाकारिन् ? प्रभो ॥४॥ मणीमोति लल्लुवाडी, सुरागी वीरचन्द्रश्च; गुणानन्दे रता मोहन-जिवनमुख्या महाभक्ताः। कृतार्थ मन्वते जन्म, स्वकीयं सर्वदाभत्तया? प्रभो ॥५॥ जगज्जीवास्त्वनेकेऽपि, भवद्वाणीसुधासिक्ताः, भवापत्रिं क्षणात्तीर्चा, महानन्दालये रक्ताः; कृताः केऽपि त्वया मुक्ता-महामारीभयाद्भक्ताः. प्रभो ॥६॥ मधुपुर्यों जिनाधीश-महासौधान्तिके रम्यम् । मुघण्टाकर्णवीरस्य, निकामं मन्दिरं शुभ्रम् । विभान्ति प्रेमसंबद्धाः, स्वपरपक्षाश्रिता लोकाः प्रभो ॥ ७ ॥ कियन्तो देशवासिनः, समासाद्य प्रकटबोधम्, भवच्चरणाम्बुजासन्नाः, महासंसारपारीणाः । विभान्ति प्रेमसंबद्धाः स्वपरपक्षाश्रिता लोकाः ? प्रभो ॥ ८ ॥ जननमरणापहो लोके, त्वदन्यो दृश्यते नैव; इदानीं कं गमिष्यामि शरण्यं तत्त्वजिज्ञासुमुनीनां मण्डलं शून्य, विभाति त्वद्विभाहीनम् ? प्रभो ॥९॥ For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुधासारां भवडाणी, कृष्णगीतामयीं पीत्वा; असकृच्छमणोऽऽगारं, प्रयाताः संसृतेः पारम् । विशुद्धं चित्रचारित्रं, त्वदीयं सिद्धसुखमित्रम् । अजितमूरिकृतं स्तोत्रं सदा बुद्धिप्रदं भवतु. ॥ प्रभो ? १०॥ गुरुविरहाष्टकम् ललित छन्द. भवभयात्र्तिहं ते पदाम्बुजं, भुवि सुदुर्लभं मूरिपुङ्गच ।। गुरुकृपानिधे ? बुद्धिवारिधे ? वितर दर्शनं कामदं वरम् ॥१॥ स्मरणमुत्कटं ते मुनीश्वर ? मोक्षशर्मदं भक्तवल्लभ ? वरद ? विश्वतस्तारकोत्तम. ? वितर. दर्शनं कामदं वरम् ॥२॥ कलिमलापहं भद्रकीर्तनं, तव विभो ? क्षितौ क्षीणकर्मणः श्रुतमहोदधे स्तत्व वेदक ? वितर दर्शनं बुद्धि वारिधे ? ॥३॥ तव विभुतयः सर्वतः स्थिता-मतिमतां मनःसद्मनि प्रभो ? कलयितुं न कोऽप्यरित ताक्षमो,-वितर दर्शनं बुद्धिवारिधे?॥४॥ तव समाधिना नाथ केवलं, शयनमङ्गिनो दुर्भगाःखलु, विधिवशादिदं जातमक्षम, वितर दर्शनं बुद्धिवारिधे ? ॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशदभूतिमाँल्लौकिको गणो, तवगुरो ? वच संपदा सदा; तदपि तावक दर्शनं वरं,नहि-जनः प्रभो ? विस्मरत्यहो ? ॥६॥ मधुमतीजनक्षेमदायक : विविधतत्त्वतो मीतमायक। विगतमन्युना संघपालक ? वरगुरो ? शुभं दर्शन त्व? ॥७॥ भवति शोभनस्त्वद्रतोजनो-निखिल सिद्धिमान् दुर्गतास्तथा ? परमभावतः प्रेमभाजन ? वितर दर्शनं बुद्धिवारिधे ? ॥८॥ भवारण्ये भ्रान्ता-जननमरणबातविधुराः, अनेके संयाता,-ध्रुवपदमखण्डात्मविभवाः । अयं ते सद्भावः समजनि महामोदजनक इदानीं स्वर्यातः किमु गुरुवर ? क्षेमसदन? ॥९॥ अजितसागरः मूरिरष्टकं, गुरुगुणप्रियः पावनं वरम् । श्रुतिपथं जना ये प्रकुर्वते, विहितवानलं ते शुभान्विताः ॥१०॥ श्रीसद्गुरुस्मरणम्. खग्धरावृत्तम्श्रीमन्तं ज्ञानवन्तं विशदमतिमतां संमतं चारुमति, सौभाग्यैकमधानं प्रवरसुखपदं सर्वशास्त्रप्रवीणम् । शुद्धानन्दप्रकाशं विबुधजनवरं कर्मभूमीवनित्रं, बुद्धयब्धि मूरिवर्य स्मरत भविजना: ? सद्गुरुं दिव्यरूपम् ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अव्यक्तार्थप्रबोधं विमथितमदनं धर्मतत्त्वमदानं, विद्यारण्याम्बुधारां समधिगतसुखं साधितार्थप्रमाणम् । सच्चित्तानन्दगेहं जननमृतिहरं मृत्युपारं प्रयातं, बुद्धयब्धि सूरिवर्य स्मरत भविजनाः! सद्गुरुं दिव्यरूपम्।।२॥ रे रे ! भव्यात्मलोकाः ? अयत पदयुगं यस्य सिद्धान्तभाजः। मोक्षस्वर्गार्थदाय विविधसुखमयं सर्वसंपत्तिराजः । छिन्नाऽनर्थपतानं कविकुलतिलकं भूरिलोकप्रगीतं, बुद्धयब्धि मूरिवयं स्मरत भविजनाः? सद्गुरुं दीव्यरूपम्।।३॥ श्रीमद्विद्यापुरस्था नरयुवतिगणाः कीर्तिपीयूषसारं, पीत्वा पीत्वा निकामं सुखरतिमगमन् दिक्षु लोकाश्च यस्य; लोकालोकमभावं सदतुलविभव सिद्धिशर्मकधाम, बुद्धयब्धि मूरिवर्थ स्मरत भविजनाः सद्गुरुं दीव्यरूपम्॥४॥ गीता गीतार्थयुक्ता श्रितनिगमनया येन सा कृष्णगीता, विदर्यण सारा विलसति वसुधामण्डले मोदमाला । योगामानवित्ता सुरचितघटना भिन्नकर्मप्रभावा, बुद्धयब्धि सुरिवर्य स्मरत भक्जिनाः सद्गुरुं दीव्यरूपम् ॥५॥ दर्श दर्श प्रभावं भवदभयहरं यस्य सूरीश्वरस्य, श्रावं श्रावं यदीयां भजनविरचना निर्ममत्वार्थबोधम् । स्मारं स्मारं च शैली गुणगणविदितां तुष्टिमन्तः समस्ता,बुद्धयब्धि मूरिवर्य स्मरत भविजनाः सद्गुरु दीन्यख्यम्॥६॥ For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सारं सारस्वतं यो मनसि कलितवानक्षतं शुद्धबुद्धधा, न्यायं नव्याsनवीन स्मृतिविषयम (लं) ₹ चक्रिवानेकभावः । वेदान्तं वेदसारं भजनपदतया व्यावृणोदक्षतार्थं. बुद्धन्धि सूरिव स्मरत भविजन:: सद्गुरुं दीव्यरूपम् ||७|| भूतानां भूरिभाग्याद् गुरुगुणनिलयं यं धरन्ती धरित्री, रत्नाढ्या कोर्त्तिते जनहृदयहरं कल्पवल्लीप्रभावम् । दैवं सर्गे प्रपन्नस्तदखिलजनताऽभाग्यमेवाधुनाऽसौ. बुद्ध्यधि सूरीवर्यं स्मरत भविजनाः ? सद्गुरुं दीव्यरूपम् ॥१८॥ सूरीशेनाजितेन प्रविहितमनघं स्तोत्रमेतद्गुरूणां, श्री शान्तिक्षेमसौधं जननमरणहं दुःखदारिद्र्यहारि । श्रुत्वा ये धारयन्ते निजहृदि विशदान् सर्वशमक मूलान्, तेषां सर्वात्मसिद्धिर्भजति शुभगुणान् पार्श्वभावं स्वभावात् ॥ ९ ॥ ३५ गुरुगुणाष्टकम्. आत्मध्यानपरायणं निजगुणान्संशोधयन्तं सदा, ज्ञानानन्दमहालयं श्रितजनक्षेमङ्करं शङ्करम् । हेयाऽहेयविवेकरत्न जलधिं सत्यव्रतक्षेत्रकं, सूरिश्रीवृतबुद्धिसागरमुनिं बन्दे सदा योगिनम् For Private And Personal Use Only 11201 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २॥ विद्यारत्नमहोदधि मुनिवरं निर्मानमोहक्रम, योगक्षेमसमानतां विदधतं स्वच्छक्रिये मानसे । जिज्ञासुश्रमशोषिणं नयवचःपीयूषसंसेचनात्, सूरिश्रीवृतबुद्धिसामरमुनिं वन्दे सदा योगिनम् सच्छ्रद्धावनवीथिकावनधरं सौभाग्यसारपदं, हिंसाऽरण्यहुताशनं कलिमलमध्वंसगङ्गाजलम् । उच्छिन्नान्तरवैरिवार मनघं दीव्यप्रभाभासुरं, मूरिश्रीवृतबुद्धिसागरमुनि वन्दे सदा योगिनम् निर्मातारमनेकशासनविधिं वक्तारमन्यप्रियं, दातारं सुखसंपदा प्रतिदिनं हर्तारमक्षेमताम् । त्रातारं विषमस्थितिप्रतिहतान् जेतारमक्षनजं, मूरिश्रीकृतबुद्धिसागरमुनि वन्दे सदा योगिनम् ॥३॥ ॥४॥ मान्यानामपि माननीयममलं तेजस्विभिः सेवितं, क्षुब्धानामपि चेतसि प्रकटयन्तं सत्यबोध सदा। विज्ञानैकसुधाकरेण मनुजान्सन्तोषयन्तं भुवि, मूरिश्रीवृतबुद्धिसागरमुनि वन्दे सदा योगिनम् ॥५॥ यत्पादाम्बुजदर्शनेन विपदो, नश्यन्ति भव्यात्मनां, सम्पत्तिश्च समुन्नति कलयति क्षेमाङ्कराम्बुप्रदा । कीर्तिर्दिक्षु दशस्वपि प्रतिदिनं व्याप्नोत्यकालोद्गमा; मूरिश्रीवृतबुद्धिसागरमुनिं वन्दे सदा योगिनम् समाङ्कराम्बर मरिश्रीरास्वपि पति For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्मूर्त्तिर्हृदि भाविता जनयते माङ्गल्यमालां शुभा, दुर्वारोऽरिगणः प्रशाम्यति महासंसारदुःखप्रदः निर्वाणं निजभावतोsपि विधिना सान्निध्य मापद्यते, सूरश्रीवृतबुद्धिसागर मुनिं बन्दे सदा योगिनम् सद्वचनामृत सेवधिं निरवधिं मोदं सदा विभ्रतं, कैवल्यं कलयन्तमात्मसुखदं तत्वावधानेन वै । दीनानुद्धारयन्तमत्र पतितान्संसारगर्ने क्षणाद् बुद्धिक्षीरनिधि स्मरामि सततं सुरीश्वरं योगिनम् सर्वापत्तिपयोधर प्रतिहतौ वातप्रकाण्डं महद्, दुष्कर्मारिसमूहमर्दनविभ्र क्षेमङ्करं सर्वदा । सद्गुर्वष्टकमेतदिष्ठसदनं संपद्यतां सर्वदं, सूरीशाजित सागरेण विहितं त्रैलोक्यसंत्रायकम् ३६ सद्गुरुस्मरणाष्टकम् स्रग्धरावृत्तम् सद्भावेनोपपन्नं क्रमगुणनिधितां भावयन्तं समानां, लोकेषु ख्यापयन्तं धृतिशमनिवहं चेतसा चिन्तयन्तम् । For Private And Personal Use Only 11911 ||८|| 112.11 Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संसारोद्विग्नभावं कलिमलजडतां हापयन्तं स्वबुद्धया, लोकानानन्दयन्तं प्रकृतिवशगतान् बुद्धिवाद नमामि ॥१॥ ध्यानारूढं सुनासं दृढतरविहितानन्यपद्मासनस्थं, विज्ञानज्ञानसोदकनिधिमतुलं छिन्नभावारिपाशम् । कारुण्याक्रान्तमूर्ति जनचयहृदयाभीष्टतत्त्वामरर्दू, योगीन्द्रं बुद्धिवादि भजतु जनगणः सूरीसाम्राज्यभाजम्॥१॥ भोगाभोगोपकृत्यं शिवसुखहतकं सर्वदा वर्जयन्त, शास्तारं वर्मसंस्थेन्द्रियतुरगगणं योगलबध्या सहेलम् । कामारि कामजन्यां विविधमदकरी भावनां चोत्यजन्तं, योगीन्द्र बुद्धिवाद्धि भजतु जनगणः सूरीसाम्राज्यमाजम्॥२॥ वाराणस्यां वसन्त विबुधजनगणं लब्धविद्याप्रसाद, सन्तोषं मापयन्तं निरवधिममलज्ञानचन्द्रोपलेन । तं सर्वैः सर्ववृत्त्या सकलकलगुणप्राप्तये सेवनीय: योगीन्द्रं बुद्धिवाद्धि भजतु जनगणः मूरिसाम्राज्यभाजम्॥४॥ नित्यानन्दप्रकाशं प्रमथितमदनं गीतनीतिप्रभाव मजानध्वान्तराशिं निजमतिरविणा नाशयन्तं जनानाम् । ध्यानाध्वानं विशालं विदधतमनघं भरिभाग्योपसेव्य, योगीन्द्रं बुद्धिवाद्धि भजतु जनगणः सूरिसाम्राज्यभामम् ।।५। प्राणायामप्रवीणं प्रकटितविभवं सिद्धिसौधाधिरूढं, योगाङ्गज्ञान वित्तं प्रविदितसकलपत्नतच्वागमार्थम् । For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्वानर्थप्रभेदं शरणमुपगतानुद्धरन्तं समस्तान्, योगीन्द्रं बुद्धिवाद्धं भजतु भविगणः सूरिसाम्राज्यभाजम् ॥६॥ विख्यातं दिक्षु सर्वास्वपि निजगुणतः शुद्धट्टत्तिस्वभावं, सद्धर्मणोपपन्नं सुघटितसुकृतं सर्वतन्त्रस्वतन्त्रम् । शुद्धप्रेम्णो निशान्तं प्रशमित कलहं क्रूरकर्मान्तिकारं, योगीन्द्रं बुद्धिवाद्धं भजतु भुविजनः मूरिसाम्राज्यभाजम् ॥ ७ ॥ दुर्बोधानीहतच्चान्यतिसुगमतया व्यावृणोद्यः सुखाय, दुर्बोधान्धान्मनुष्यान्विकसितनयनान्व्यात नोत्स्वीयशक्त्या । दुर्वादस्थान्समस्तानकुरुत सततं सत्यमार्गाधिरूढान्, योगीन्द्रं बुद्धिवाद्धं भजतु भुविजनः सूरिसाम्राज्यभाजम् ॥ ८॥ अजितसागर मूरिविनिर्मितं, स्वगुरुभक्तिरसेन शुभां गतिम् । कुमतिभूरुहकुञ्जरमष्टकं श्रुतिपर्थं कुरुते स तु वीक्षते ॥९॥ For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only