SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ? पींड अने ब्रह्मांडमां भय गाजे छे काल; काले कोइ बचे नही, अंते काल कराल. माटे शाणा समजीने, घटमां घरी वैराग; निर्भय देशे जाय छे, देश विरति अनुराग 11411 ढाल-ओधव क्यारे आवशे वनमालीरे..-ए राग. श्रावक केरा वृत्तनी बलीहारीरे, अंते आतमने ले उगारी. श्रावक० ए टेक. श्रावक० ||१|| मगढ्यो श्रावकधर्ममां प्रेमरे, जेमां सुन्दर कुशल क्षेमरे; माटे तजीये कदी तेने केम ? गुरुदेव श्रावक व्रत पालेरे. जुटुं बोले नही कोइ कालेरे; व्रतधारी सुधर्मे विशाले, सुखसागर सद्गुरु पासेरे, श्रावकधर्म रह्या विश्वासेरे : मन वरताणुं धर्म उल्लासे, श्रावक० ||२|| 11811 श्रावक० ॥३॥ बेचरदासनुं मन रुडुं गलियुरे, भाव भक्ति विषे दृढ भलियुंरे; व्रत जपमांही चित्त बलिये. पडावश्यक स्नेहे साधेरे, भाव वैराग्यमां रुडो वाधेरे; सदा ने गुरु आराधे. श्रावक० ||४|| For Private And Personal Use Only श्रावक० ||५|| दुर्लभ सद्गुरु केरी सेवारे, एवी सेवा मांही रुडा मेवारे; जेमां भाव वैरागना लेवा. श्रावक० ||६|| दीक्षा लेवामां प्रेम प्रगटियोरे, मोह विश्वनां सुख केरो मटियोरे; जैनधर्म हृदयमांही रटीयो. श्रावक० ||७||
SR No.008578
Book TitleGurupad Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherShamaldas Tuljaram Prantij
Publication Year
Total Pages102
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy