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सोsहं शब्द सुणाच्या म्हारा कानमां, जडचेतननी समजावी शुभशानजो; रुपैया आप्याथी वस्तु ना-मले, ते प्रभु केरुं गुरुए दीधुं दानजो. ज्ञानभानु प्रगटाव्यो दील आकाशमां, निर्मल भावे कर्यो तिमिरनो नाशजो; समीप वस्तु कीधी दूर प्रदेशमां, दूर वस्तु दर्शावी छे पासजो. सद्गुरुना वचने म्हें छोडी जातडी, सद्गुरु वचने त्याग करी म्हें नातजो गुरुवचनामृत पीनेत्याग्या तातने, गुरुवचनोथी मानी मात अमातजो. भ्रमणा मम भागीने लगनी लागा है, गुरु वचनोमां तन मन धन कुरवानजो; आत्मानी परमातमशुं थइ प्रीतडी.
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सद्गुरु ॥२॥
सद्गुरु. ||३||
सद्गुरु ॥४॥
अलख निरंजन प्रभुनुं लाग्युं ध्यानजो. सद्गुरु ॥५॥ असंख्य प्रदेशी चिघन प्रेमे पामीयो, वर्षो रह्या कां शांतितणा वरसादजो; स्मृति आवी छे विस्मृतिकेरा नाथनी, अयाद देवनी गुरु दीधी यादजो. शा शा गुण गणावुं श्री गुरुदेवना, अनंत दिवस गणतां पण नावे पारजो;
सद्गुरु ||६||