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काम क्रोध कंकासने कापे, टाले भवना रोगजो; ज्ञान भक्ति वैराग्यने आपे, संहारे सौ शोक. विरही०॥७॥ पृथ्वी अतिव प्रफुल्ल थइ छे, पामी पाणी प्रसंगजो; सद्गुरु विरहे पण मुज मूक्या, अंतरना उमंग. विरही०॥८॥ नव अंकूर उग्या छे नौतम, उग्यां क्षत्रे धानजो; पण मम हर्षसमग्र सुकाणा, मनडे त्याग्यूं मान विरही० ॥९॥ बाह्यअग्निनी ज्वालासारी, थाय विमल फरी अंगजो अजित अब्धि गुरुविरहनी ज्वाला, फेर न आपे उमंग.वि०॥१०॥
श्री गुरुविरहनो शोक.
राग उपरनो. सखी गुरु ए त्यागी काय, शोक घन छाइ रह्यो; हवे घरमां केम रहेवाय ? शोक अति छाइ रह्यो. ए टेक० जन्म धर्यों विजापुर गामे, विद्या पण भण्या त्यांयरे; महिमा प्रगट कर्यों निजपुरमां, तनु पण त्यागी त्यांय.शोक०
ओगणीसो एकाशी संवत् , ज्येष्ठ मास सुखकारजो; कृष्ण पक्षने तिथि त्रीजे, स्वर्ग कयु स्वीकार. शोक ॥२॥ तार अपाणा देशो देशे, लोक उदास अपारजो; जैन हिंदु इस्लाम आदिसहु, समरे वर्ण अढार; शोक० ॥३॥ योगी योगी स्वरूपे जाणे, शास्त्री शास्त्र प्रकारजो;
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