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कोमलतनना कोमल मनमां, कोमल भाव करावो;
-उरमा धारोजी.जे जे प्रकारे सारं अमारु,-थाय ए लक्षमां लावो;
-पार उतारोजी.- ॥ आप समुं भवसागर तरवा, शरणुं नंथी कोइ साचुं;
-उरमां धारोजी.आप कृपाथी जाणी लीधुं छे, कोटि रीते जग काचुं;
-पार उतारोजी.- ॥९॥ अजितसागर शरण थयो छे, बीजानो कदी न थवानो, निर्मलभावे आवरण कापी, ऊद्ध प्रदेशे जनारो;
-पार उतारोजी,-॥१०॥
काव्य. जैनेन्द्रशासनधुरन्धरपुङ्गवाय,
ज्ञानात्मने विजितलौकिकभावनाय । श्रद्धालतानविनवारिधराय शुद्धं,
नैवेद्यमुत्तममहं विनिवेदयामि. ॥१॥ ॐ ह्री श्री सद्गरु पदपूजार्थ नैवेद्यं यजामहे स्वाहा
अथ अष्टमा फलपूजा.
दुहा. ज्ञानसमूं बीजं नथी, उत्तम साधन एक; ज्ञाने घटमां थाय छे, विरति विचार विवेक
॥१॥
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