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मल्या शीर्ष बुद्धयन्धि श्रीयोगिराजा, अजितान्धिना चित्तमही विराज्या; कर्यो जन्म कृतकृत्यने मोक्ष दीधो, तथा म्हें व्यथा त्यागी तुज बोध लीधो. थयुं शुं १९
ॐ - गुरुस्तुति
छन्द नाराच अथवा गंजल अंग्रेजो वाजानो.
कुपात्र ने सुपात्र हेगुरो ? बनावता, सुपात्रना प्रति हमें सहर्ष आविताः गुणज्ञ लोकमां तमारी नामना हती, गुणो अतीव आपना कह्या जता नथी. स्मरी स्मरी ज्वलायमान अंग थाय छे, फरी फरी स्मरी स्म अने स्मराय छे; अमोथी ना बने बन्युंज जे तमो थकी, गुणो गुणज्ञ ! आपना कहा जता नथी. दुःखो विलोकी दीननां दयालुता थती, सुखो विलोकी अभ्यन सुखार्द्रता थती; भविक मंडली की सुप्रार्थना थती, गुणानुवाद आपना कहां जता नथी.
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