________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हुं अन्य पंथे परवņने, आप पण बीजे गया;
पण पूर्वना परिबल वडे, संबंधी थइ भेगा थया. मम० ||४||
म्हारी अने गुरु आपनी, थइ भूमिकामां एकता; म्हारी अने गुरु आपनी, थइ जातिमांही एकता. मम० ॥५॥
उत्तर अने बळी मध्यनी, आजे बनी गइ एकता; आचार वृत्ति विचारमां, गुरु आज थइ गड़ एकता. मम०॥६॥ आ दैवनी कृति एकतानी, भिन्नता केमज बनेः अद्वैत - मांहि एकतानी, द्वैतता क्यांथी बने. जे नगरमा सुतो हतो, त्यां मृत्यु घंटा गाजती; घनश्याम सूना आश्रमे, शय्या अमे कीधी हती. मम०॥८॥ त्यां एकदम आवी तमे, आज्ञा सुखद आपी दीधी: जाग्रत मधुर आवी अने, निद्रा दुःखावह दूर कीधो. मम०||९||
मम० ||७||
म्हारा सुना मंदिर विषे, भरपूर वस्ती आपनी: म्हारा मृदुल मंदिर विषे, मृदुभक्ति शस्ती आपनी. मम० ॥ १०॥
म्हारा सुभग आश्रम विषे, शुभमूर्त्ति हसती आपनी; विसराय ना ने जायना रसता हती ते आपनी मम०॥११॥
For Private And Personal Use Only
आ दैवकृत संयोगनो, उपयोग पण पूरण थयो; घनरात्रि आज हठावी भासुर, उदय पण पूरण थयो..
मम० ||१२||