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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९ मृदुहास्य संत प्रसंगमां, वचनो सुधाज्ञाने भर्यो. ज्यारे अने त्यारे तमारा, निकटमां ग्रन्थो पड्या, रहेता हता शुभशाखना, के काव्यना के ज्ञानना; घडी एक पुस्तक वांचता तो ते विषे तल्लीन थता, घडी एक भजन सुणी अने, आत्माविषे आल्हादता ॥४॥ For Private And Personal Use Only ॥३॥ घडी एक ध्यान धरी प्रभुनुं, बाह्यमान विसारता, घडी एक दीव्य निरीक्षणे, कँइ नवीन ग्रन्थ विचारता; घडी एक वचनामृत दइ, प्रभुज्ञान अत्र प्रसारता, ने विश्वनुं हित केम बने, ते दृष्टि मनमां धारता. सुन्दर तमारा देहमां, सुन्दर बसी शमता हती, ने मोक्षकेरा मार्गमां, गुरु आपने ममता हती; आ सर्व विश्व भमावता, मनडातणी शमता हती, आचार तत्व स्वरूपां गुरु ? सौम्य निर्मलता हती. ॥६॥ सहु भूतपर अनपायिनी प्रभु ? आप मांही दया हती, ने ती तपना योगथी, कमनीय तव काया हती; शिष्यो उपर शीतल सुभग, गुरु ? आपनी छाया हती, ममता रहित मानव उपर, मधुरी महद् माया हती. ॥७॥ छो आप ऊर्ध्व प्रदेशमां, करुणानी दृष्टि राखजो, आधि अने व्याधि वध, संकष्ट सद् गुरु ? कापजो; छे ध्वांत अम दिलडां विषे, त्यां ज्ञानरूपे व्यापजो, वैराग्यरूपी कल्पतरूनुं, बीज स्थिर मन स्थापजो. ॥५॥ በራሱ
SR No.008578
Book TitleGurupad Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherShamaldas Tuljaram Prantij
Publication Year
Total Pages102
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size4 MB
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