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ध्यान करूं घडी आपनु, आवे मूर्ति प्रत्यक्षजी; प्रेमातुर आवं वंदवा, पण उघडे ज्यां चक्षजी.सद्गुरु०॥३॥ एहसमे दर्शन आपनां, यदा नव अवलोकायजी; व्यापे विरहतणी वेदना, काया थर थर थायजी.सद्गुरु०॥४॥ समष्टि तमे साचवी, सौमां सरखोज प्रेमजी सौ पर आशिष ते रीते, राखता सरखीज रहेमजी.सद्॥५॥ जूनो लोपायलो जैननो, कीधो योग उद्धारजी; निर्मल मति गति आपनी, निर्मल सर्व प्रकारजी. ॥६॥ आपनी जग्या खाली पडी, कोना थकी पूरायजी; कामदुधा क्यां अपरपशु, केम उपमा अपायजी, ॥७॥ लभ्य कीधुरे अलभ्यने, कीर्छ अदृष्ट दृष्टजी; सभ्य कीधुरे असभ्यने, कीधुं सृष्ट असृष्टजी. ॥८॥ भेद कीधारे अभेदना, कीधा अभेदना भेदजी: समजावी शान सोह्यामणी, कापी मोहनी केदजी. ॥९॥ शिष्यनो संघ संभारतो, गुरुज्ञान विशालजी: अजित नमे आप पायमां, गुरुदेव दयालजी. ॥१०॥
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