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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुविना बीजी छे गति नहिं, गुरु बिना अहीं छ मति नहिं; गुरुजी ! व्हालथी आप व्यापता, परिहरो हवे सर्व आपदा ॥२॥ पतित शिष्यना कष्ट कापजी, उर विषे रुडा ज्ञाम आपजो. मुजशिरे सदा छत्र छाजता, गुरु ! विदारजो सर्व आपदा; ॥३॥ तिमिरता हती अज्ञता तणी, परिहरी हमे हे शिरोमणिः । करणी धर्मनी आषता हता, गुरुविदारजी सर्व आपदा ॥४॥ जगत्लोकमा आत्मभावना, इतर कोण ये! आफ्ना विना; . शरण शिष्यनी लाजराखता, गुरुविदारजो सर्व आपदा.॥५॥ इतर तीर्थती पाप कापशे, पण गुरु विमा मोक्ष क्या थशे; अमतणी तमो माघी छो मता, गुरु विदारजी सर्व आपदा.॥६॥ रझलतो हतो विश्व रानमां, समज आपला धर्यज्ञाममां, .. मम शिरे रहो ना विसारता,गुरु ! विदारजी सर्व आपदा.॥७॥ नमन आपना पायमां हजो, भ्रमणता हवे ना बीजी थजो; अजित अधिनी एवी प्रार्थना,शरण राखजो हे दयाधना.॥९॥ श्रीसद्गुरुना चरण ललित छंद. ललित छंदमां विनती करूं, ललित काल छे तोय हूं डरु: गुरु विना हवे केम गोठशे ? गुरु विना हवे ग्लानि शेजशे?? ममत माहरी छोडवी दीधी, ममत माहरी धर्ममां कीधी: इतर सौख्यनी प्राप्तिओ थशे, गुरु विना हवे केम गोठशे? २ For Private And Personal Use Only
SR No.008578
Book TitleGurupad Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherShamaldas Tuljaram Prantij
Publication Year
Total Pages102
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size4 MB
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