Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij

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Page 83
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ साखी-आत्माऽहं रटना सदा, जेनुं साचं सूत्र; विश्व सकल मम आतमा ए पुत्रि ए पुत्र. म्हारुं हारूं एवी गणना अज्ञानी तणीरे; मेने वसुधा एक कुटंब सदा सममायः . अति० ॥२॥ साखी-अगमपंथ जैनो घणों, अगम अंगोचरदेव: अगमभावना आत्मनी, अगमसुखावह सेव. जेनी अगमदशा आ जर्गमां सज्जन जाणतारे; पावक ज्वाला जेवीं जेनी प्रेमप्रभाय. अति० ॥३॥ साखी-सुखने नव संभारता, दुःख पण तेवी रीत; सहजानंद स्वभावमां, पूरी जेनी प्रीत. जेनो राज रंकपर सरखो भावं सुहावतोरे, वृत्ति एक अखंडित जिनवरमां देखाय. अति० ॥४॥ साखी-अज्ञानी जाणे नहिं, भेदु जाणे भेद, __अखेददेशनी वातने, शुं ? समजेज सखेद. गुरुवर समदर्शी जग सदा शीयलसंतोषनारे; उत्तम अनुभव महिमा वदतां कैम वदाय ? अति० ॥५॥ साखी-देशविदेशे नामना, जाणे संतो सर्व ___ गुणनिधि दुर्गुण परिहर्या, मोह नहिं नहिं गर्व. वासी आनन्दधन यश विजयदेवना देशनारे । महिमा गुरुनो जाणी अजितमूरि नित्यगाय. अति० ॥६॥ For Private And Personal Use Only

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