Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij

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Page 85
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७६ ए सर्व म्हें देख्यां छतां, गुरु आपना सरखां नथी; चैतन्यसम जडवस्तुमां, प्रौढत्व म्हें देख्यां नथी. उ० ॥८॥ आकाशना तारातणी, गणना कदीक बनी शके: वर्षादना जलबिन्दुनी, गणना कदापि थइ शके उ० ॥९॥ पण गुरु तणा गुणनी कदी, गणना सुणी देखी नथी; गुरुदेवसम म्हें दिव्यता, जन अन्यमां देखी नथी. उ० ॥१०॥ सिंहे करेली गर्जना, गजयूथने भय आपती; ने सूर्यनी ज्योति तिमिरना, पुंजनेज हठावती, उ० ॥ ११॥ वी गुरुनी गर्जनाओ, पाप ताप प्रजालती; गुरु गर्जना सम गर्जना, बीजे महद् देखी नथी. उ० ॥ १२॥ २९ केवल दैव ? Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गजलसोहिनी. मम जन्मनी भूमि जूदी, ने अन्य पृथ्वी आपनी; मम मध्यता गुजरातनी, उत्तर हती गुरु आपनी मम० ॥ १ ॥ मम जन्मनी जाति जूदी, वली आपनी जाति जूदी; आचार पण जूदा अने, वृत्ति हती तेमज जूदो. मम० ॥२॥ ना जाणतो गुरु कोण छो ? ना जाणता हुँ कोण हुँ; त्या जाण सर्वबनी गइ, छो कोण गुरु हुं कोण हुँ, मम० ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only

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