Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij
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पींड अने ब्रह्मांडमां भय गाजे छे काल; काले कोइ बचे नही, अंते काल कराल. माटे शाणा समजीने, घटमां घरी वैराग; निर्भय देशे जाय छे, देश विरति अनुराग
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ढाल-ओधव क्यारे आवशे वनमालीरे..-ए राग. श्रावक केरा वृत्तनी बलीहारीरे, अंते आतमने ले उगारी. श्रावक० ए टेक.
श्रावक० ||१||
मगढ्यो श्रावकधर्ममां प्रेमरे, जेमां सुन्दर कुशल क्षेमरे; माटे तजीये कदी तेने केम ? गुरुदेव श्रावक व्रत पालेरे. जुटुं बोले नही कोइ कालेरे; व्रतधारी सुधर्मे विशाले, सुखसागर सद्गुरु पासेरे, श्रावकधर्म रह्या विश्वासेरे : मन वरताणुं धर्म उल्लासे,
श्रावक० ||२||
11811
श्रावक० ॥३॥
बेचरदासनुं मन रुडुं गलियुरे, भाव भक्ति विषे दृढ भलियुंरे; व्रत जपमांही चित्त बलिये.
पडावश्यक स्नेहे साधेरे, भाव वैराग्यमां रुडो वाधेरे; सदा ने गुरु आराधे.
श्रावक० ||४||
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श्रावक० ||५||
दुर्लभ सद्गुरु केरी सेवारे, एवी सेवा मांही रुडा मेवारे; जेमां भाव वैरागना लेवा.
श्रावक० ||६||
दीक्षा लेवामां प्रेम प्रगटियोरे, मोह विश्वनां सुख केरो मटियोरे; जैनधर्म हृदयमांही रटीयो.
श्रावक० ||७||

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