Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ क्लेशकर्म जाय छे ने आत्मसुख थाय छे; शीद जीव विश्वमांही आथडे, गुरुनी. ॥१॥ काम क्रोध नव रहेने-दोष दीलना दहे; आत्मनो विवेक रुडो आवडे गुरुनी. ॥२॥ मोह तणां मूल बधां, जाय सहज वातमां; उखेडी शकाय ज्ञान पावडे. गुरुनी ॥३॥ व्हाल थाय नाथमां ने, आत्म आवे हाथमां; जाय छे अशांति शमतावडे, गुरुनी. ॥४॥ आज्ञा शिर धारताने,-प्रेमधर्म पालता, केम जीव खोटा ख्यालमां खडे ? गुरुनी. ॥५॥ गुरु विना मुक्ति नही,-सर्व संत उच्चरे; स्हेजमां प्रभुनो पंथ पर वडे; गुरुनी. ॥६॥ रुडी सुख सागरजी, सेवा गुरुनी सजी; पाप बीज सेक्यां ज्ञान तावडे, गुरुनी. ॥७॥ आशिष रुडी लीधीने, लीला ल्हेर तो कीधी; कालरूप सर्प केम आभडे, गुरुनी. ॥८॥ गुरुजी ज्ञान दाताने, आपे सुख शाता; अजित नरक द्वार ना नडे; गुरुनी. ॥९॥ काव्य. भवभयक्षतिकर्मविधायकान , शुभगुणाचरणोत्तमशिक्षकान् । शिवनिकेतनकेतनतुल्यकान्, परिदधामि पवित्रतराक्षतान् ॥१॥ ॐ ही श्री सद्गुरुपदपूजाथै अक्षतान् यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102