Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५७
विद्यापुर केरी भूमि छे सारीरे, जन्मभूमि ए भव्य तमारीरे; त्यांनां ताय तमे नरनारी.
रुडा० ॥७॥ साधुरूप साचवीयुं छे साचुरे, जग सुखने जाण्युं हतुं काचुरे;
रुडा० ||८||
भाव भक्ति तमारी हुं याचुं. अजितसागरना मनमांही आवोरे, बुद्धिसागरजी दया लावरे; कृपा वारि विमल वरसावो.
रुडा० ॥९॥
१६
श्रीमद् सद्गुरुस्तुति.
राग उपरनो.
बुद्धिसागर सद्गुरुनी बलीहारीरे, जेने भक्ति प्रभु मेरी प्यारी. जैनधर्म तणी टेक धारीरे, यावत् जीवनना सहु जीवो तणा उपकारी.
जे काम कासने काप्यारे, अवळा मार्ग सदैव उत्थाप्यारे; दीव्य देशना संदेश आप्या.
बुद्धि० ||२||
मुनिभावनी साचवी दीक्षारे, आपी शिष्योने शास्त्रनी शिक्षारे; जेने भाव भजन केरी भिक्षा. बुद्धि० ॥३॥ शास्त्री लोकोता स्नेहे संभारेरे, पंडित लोको तो प्रेमे पुकारेरे; ध्यानी लोको सदा ध्यान धारे. बुद्धि० ||४|| प्रेमी जनने तो लागता प्रेमीरे, नेमी लोकोने लागता नेमीरे; मति शास्त्र पारंगत जेनी.
बुद्धि० ॥५॥
For Private And Personal Use Only
बुद्धि० ए टेक. ब्रह्मचारीरे; बुद्धि० ॥ १॥

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102