Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij

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Page 65
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६ गुरुविरह तणा भाला वागे, गुरूपदमां अजितअनुरागे; प्रेमे वली वलीने पाय लागे. शरण० ||९|| १५ श्रीमद् गुरुदेवस्तुति. रघुपति राम हृदयमां रहेजोरे-ए राग. रुडा गुरुदेव ? हृदयमांही रहेजोरे, दान ज्ञान अमृत तणां देजो; रुडा० ए टेक० तमो ज्ञानसागर गुरूदेवारे, सारी शीखवजो गुरु ? सेवारे; अमने भक्ति तणी देजो हेवा. रुडा० ॥ १ ॥ रुडी मूर्ति मनमांही भावेरे, विरह अश्रुने नयनमां लावेरे; दीव्य वाणीतो तन तलसावे. For Private And Personal Use Only रुडा० ॥२॥ शांतिकेरा तमो शुभ सिन्धुरे, एक जिनवरमां लक्ष बिन्दुरे; योग अभ्यासना बीजा इन्दु. रुडा० ॥३॥ आपे जन्म सफल करी लीधोरे, प्रेम प्यालो पूरण तमे पीधोरे; उपदेश अनूपम दीधो. रुडा० ||४|| जेजे देशमां आप पधारे, भवसागरथी जन तार्यारे; अज्ञान तिमिरथी उद्धार्या. रुडा० ||५|| मोटा महीपति राखता मानारे, नाम सांभली जन आवे झाझारे सर्व शास्त्र ज्ञाता गुरुराजा. रुडा० ||६||

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