Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij
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स्यादादनी मोघी मता माणी हतीरे. गुरु० ॥५॥ जूनां मंदिर अनेक सुधरावीयांरे, जैनेतरमा अहिंसा बीज वावीयारे. गुरु० ॥६॥ साचा धर्मनो प्रचार तमे बहु कोरे, सर्व धर्ममांथी सार तमे उर धर्योरे. गुरु० ॥७॥ देश दाझ पण आप केरा मन हतीरे, स्वदेशी भावना प्रचारता छार्नु नथीरे. गुरु०॥८॥ जेम कल्पतरु सर्व वृक्षराज छेरे. एम आपनो अवतार मूरिराज छरे. गुरु० ॥९॥ प्रेम भावनां नैवेद्य आपीये अमेरे, पुरा प्रेमथी स्वीकारजो मूरि तमेरे. गुरु० ॥१०॥ मूरि अजितनी हाथ जोडी विनतीरे,
अरज देशकालनी कशी छानी नथीरे गुरु०॥११॥ ढाल बीजी-सजनी मारी, क्यां रमी आवी रजनी
साचं बोलोजी-ए राग. सांभलज्यो सद्गुरुजी साचा, सेवकनी एक अरजी;
-उरमां धारोजी.अनंत भव अथडाणो आत्मा, मानी पोतानी मरजी:
-पार उतारोजी.- ॥१॥ रंक सेवक अमे सदा तमारां, ज्ञान ध्यान नव जाण्यां;
-उरमा धारोजी.
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