Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij
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४३
॥५॥
॥६॥
॥७॥
दाम-धाम-गाम-सर्व जेणे त्यागीयांरे लोल, जेने वंदवाने नरनारी लागीयारे लोल.. जेनी प्रीति तणी रीति घणी आकरीरे लोल; जेणे अलबेलानी भक्ति भली आदरीरे लोल, जेणे जैनधर्म केरी करी गजनारे लोल. मिथ्या वादीनी करावी बधे तर्जनारे लोल: जेनी सिद्ध दशा केरी व्यापी मान्यतारे लोल, जेने सज्जनो सुसिद्ध साचा जाणतारे लोल. देश कालना प्रमाणे ज्ञान ध्यानमारे लोल; कयों धर्मनो प्रचार-महा मानमारे लोल, मूरि अजितनी विनती छे एटलीरे लोल. जीव्हा एकने स्तुति कराय केटलीरे लोल;
॥८॥
॥९॥
॥१०॥
आवजो आवजो आवजोरे, व्हेनी-ए राग. लावजो लावजा लावजोरे, गुरु प्रार्थनाने लक्षमांही लावजो. प्रेमरूपी पुष्प प्रगटावजोरे, गुरु प्रार्थनाने० एटेक०
अज्ञान अंतरमांही अति उभराय छे. एने ज्ञान दीपके हठावजोरे;
गुरु० ॥१॥ शोकरूपी अग्नि केरी झाल झलकाय छे,.. स्नेह तणा पाणीथी शमावजोरे, गुरु० ॥२॥
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