Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४४
गुरु० ॥३॥
सुरु० ॥४॥
गुरु०॥५॥
मनडुं सदाय भूडं भमतुं भमे छे, भव्य गुरु हवे ना भमावजोरे, जैन धर्मरूपी रुडा बागमांही आसमे, वैराग्यनां बीज आवी वावजोरे; अनाचार अंतरना दूर करी नाखजा, आचारनी ध्वजाओ उठावजोरे. हिंसा वधे छे विश्वमांही आ समा विषे: अहिंसाना आनंद उडावजोरे. असंख्य प्रदेशी तमे आतमा अनूपछो, आत्मज्ञान नीरे न्हवरावजोरे, अजितसागर केरी विनती स्वीकारजो, शुद्धतानां पाणी पीवरावजोरे.
गुरु० ॥६॥
गुरु० ॥७॥
गुरु० ॥८॥
गजल. ॐ ही श्री गुरुदेव छो, पावन परम परमेश्वरा, हुँ आपनुं समरण करु,-थाजो सदाये सुखकरा;-ॐ०॥१॥ माता तमो पिता तमो, भ्राता तमो बीजूं नही, म्हारी तथा जाती तमो, बीजुं कशुं इच्छु नही.-ॐ॥२॥ आकाशमां पातालमां, गुरु आप सम कंइये नथी, आत्मा परात्म बनाववा, वीजुं सुखद साधन नथी:-ॐ॥३॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102