Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij

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Page 62
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरु० ॥२॥ गुरु० ॥३॥ गुरु०॥४॥ पीपल उपर बेठेलां पंखी, अगम प्रदेशे उडाव्यां. मति गति पहोचे नही तेवे पर्वत, अनुभव वारि वहाव्यां; गगन सिंहासने आसन शोमे, त्यां अम स्थान ठराव्यां. ज्ञानगंगा जले स्नान कराव्यांने, स्नेहनां पुष्प सुंघाव्यां; प्रेमनी पेटी उघाडी कृपाघन, करुणानां पट पहेराव्यां. बालक पर जेवां लालन पालन, ए लाड अमने लडाव्यां: काम क्रोध केरा ककडा करी अने, दोषनां मूल दबाव्यां. कठिन कठोरता कापी दीधी अने, साधन शुद्ध शिखाव्यां; अलख वस्तु म्हारा दीलमां लखावी, लक्षण खलनां खपाव्यां. बुद्धिसागर गुरुमुज शिर शोभ्या, शांतिनां क्षेत्र सोहाव्यां; अजितसागर कहे सद्गुरु चरणे, भावने भक्ति भणाव्यां. गुरु०॥५॥ गुरु०॥६॥ गुरु०॥७॥ For Private And Personal Use Only

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