Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij

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Page 58
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९ अतिवकठिन ए कादवमांथी, निश्चयथी निकलाशे; पण ए निश्चय गुरुविण क्यांथी ! पिंडमां आवशे पासे.मुरु०॥३॥ वृक्ष समग्रनी करीए कलम अने, सिंधुनी शाही सोहासे; पृथ्वीतणो कागल रुडो करतां, शारद हाथ लखाशे. गुरु०॥४॥ आवशे पार समग्रनो तोपण, गुरुगुण केम गणाशे: कारण आत्मानां सौख्य अनंतां, केमज अंत पमाशे. गुरु०॥५॥ सदगुरु माथे मल्या बुद्धिसागर, हुँ पण आवेलो आशे; वस्तु अनुपमर्नु रूप जणाव्युं, हैडामां देवने होंशे. गुरु०॥६॥ तत्व अतत्त्वनां लक्षण आष्यां, वृत्ति न क्रोध कंकासे; अजितसागर पाम्यो इष्ट अनुभव, गुरुभक्ति केम भूलाशे.गुरु०॥७॥ श्रीमद् गुरुविरह. भेखरे उतारो राजा भरथरी-ए राग. सद्गुरु संत महातमा, गया धर्मने धामजी, विरहवडे व्याकुल बर्नु, रटतां गुरुजीचें नामजी. सद्गुरु टेक. अमने उगार्या असत्यथी, आपी सत्योपदेशजी; पापमपंच तजावीया, सुन्दर साधुने वेषजी. सद्गुरु० ॥१॥ मुर्नु लागे सहुतम विना, सूनो लागे संसारजी; विरह अनिल सतावतो, सुकवे काया आ वारजी.सद्गुरु०॥२॥ For Private And Personal Use Only

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