Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij
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तमे क्लेश तणा तो मूल, संघलां काप्यारेः तमे आत्म विद्या के दान, मुमुक्षुने आप्यारे. हतो ऊर्द्ध तमारो प्रदेश' कोइ जन जाणेरे; तमे अनुभव मार्ग प्रवीण, जाणे ते माणेरे. तमे ध्यानी तणा पण ध्यानी, ज्ञानीना ज्ञानीरे; तमे प्रेमी तणा पण प्रेमी दानीना दानीरे. तमे अखंड जगावी अलेख, अवधूत पंथेरे; तमे जगाडयो आतमराय, वखाण्या संतेरे. सूरि अजित कहे गुरुदेव, उत्तम आचारीरे; सदा आपतणा गुण गाय, अरजी उच्चारीरे.
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॥८॥
॥९॥
॥१०॥
॥११॥
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अलि साहेली जंगम तीरथ जोवा उभीरेने - ए राग.
गुरुदेव तमो भवनमांही सिद्धो पंथ बतावता. सहु प्राणी तणा, कूडमति हरवाने औषध आपता; ए टेक. तमे संत सदा परउपकारी, तमे सुख परित्याग्यां संसारी. हति प्रभु तणी भक्ति प्यारीः
गुरु० ॥ १ ॥ जए जोग विषे निशदिन जाग्या, आतम रस माटे अनुराग्या. वली विश्व भोग मिथ्या लाग्या; गुरु० ||२|| धर्मणां बहुत्त पाल्यां, तमे आधि उपाधि बधां टाल्यां. तमे शिवपुर के घर भाल्यां;
गुरु० ॥३॥

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