Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij
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जैन सहित जैनेतर, सहु वंदन करता, गुरु सहु वंदन करता; प्रेमज्ञानना बलथी; समोपे संचरता;
'जयदेव जयगुरु देव. N८ बुद्धिसागर सद्गुरुनी; जे आरति गाशे; गुरु जे आरति गाशे; अजितसागर कहे एनां; सहु संकट जाशे;
जयदेव जयगुरु देव. ॥९॥
मंगलदोवो. दीवोरे दीवो अति मंगल कारी, अनुभव दीपक अति उपकारी: दीवो० ॥१॥ पहेलोरे दीवो गुरु ज्ञान- ज्योती, दर्शन करी मन वृत्तिओ म्होती: दीवो० ॥२॥ बीजारे दीवो शुभ आचार पालो, दीलनी अविद्या उपाधिने टालो;
दीवो० ॥३ त्रीजोरे दीवो प्रभुध्यान समाधि, साधन करी हरिये अंतर उपाधि दीवो० ॥४॥ चोथोरे दीवो शुद्ध चारित्र जाणो, आत्मा परमात्मानुं बार| मानो; दीवो० ॥५॥ अलख निरंजन आत्मानां दर्शन, पावन करीये अंतर तन मनः दीवो० ॥६॥ सूर्य शशी दीवा प्रभुजीना शोभे, देखी देखी सूरि मुनि मन लोभे; दीवो० ॥७॥
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