Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij
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॥४॥
चारित्राराधन स्वरूपा सप्तमी नैवेद्य पूजा ॥७॥
दुहा. कहेणी सम रहेणी नही, मले नही भलीवार; कहेणी सम रहेणी थतां, उपजे शांति अपार. ॥१॥ माटे सत् चारित्रमा, संतो मूके भार; गुरु करुणा चारित्रमां, छे हेतु सुखकार. ॥२॥ कर्म टले कर्मोथकी, खरेखरो छे न्याय; सत्कर्मेथी विश्वनां, असत्य कर्म बलाय. ॥३॥ दृष्टि तणां बिंदु तणी, गणना कदिये थाय; भूमि केरा भारनो, आंक कदी अंकाय. धर्म तणा पालनतणी, केम किंमत अंकाय: स्वल्प धर्मने पालतां, प्राणी पावन थाय.
ढाल-नाथ कैसे गजको बंध छोडायो. त्यागी केरा धर्म कर्म सहु पाले, पीडमांही प्रभुजीने भाले;
त्यागी. ए टेक. ग्रामनगर मांही संचरताने, निर्मल नाथने न्याले; सत्कर्मेथी पाप करमनां, बीज वधां गुरु बाले. त्यागी. ॥१॥ संतोनी संगत निशदिन करता, मन रारवी ज्ञानहिमाले; योगतणा अभ्यासे करीने, बाह्यत्ति पाछी वाले. त्यामी. ॥२॥ द्रव्यने जाण्यां अद्रव्यने जाण्यां, क्लेश काढया पाणी काले; खल जनने पण उपदेश आपी, खांते खूटलता खाले.
त्यागी ॥३॥
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