Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij
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स्याद्वादनी समजण पाम्या, पाम्या शांति अपारजो; दयाधर्म दीलडामां पाम्या, धर्मक्रिया सुखकार. श्रीसद्॥४॥ परोपकारमा प्रीति पाम्या, पाम्या परम प्रसादजो; हृदयशुद्धि परिपूरण कीधी,काप्या क्लेश प्रमाद.श्रीसद्॥५॥ सागरमां जेम स्वातीबिंदु, ग्रहण करे कोइ जंतजा; सद्गुण सघला एम समाणा,उपज्यो उदय अनंत.श्रीसद्॥६॥ श्री सद्गुरुनी पूर्ण कृपाथी, सफल थयां सहु काजजो; अजितसागरना सद्गुरु साचा, बुद्धिसागर महाराज.
श्रीसद् ॥७॥
काव्य. त्रिविधतापहराय शुभात्मने, जगति जन्मवतां सुखदायिने । कुमत्तिकर्दमन्दविशोषिणे, परिदधाम्यतिशीतलचन्दनम् ॥१॥ ॐ ह्री श्री गुरुपदपूजार्थं चन्दनं यजामहे-स्वाहा
अथ तृतीया पुष्पपूजा-दुहा. परमपदारथ प्रभुपदे, लागी लगन अपार, छोळयो सिन्धु सुखतणो, लाग्युं विश्व असार; ॥१॥ जबरां बंधन जगतणां, जबरां जगनां दुःख; गुरु करुणा वण नव छुटे, थाय न साचं सुख; ॥२॥ गुरुविना गति नवमले, गुरुविना नही मोक्ष; सहु वस्तु सद्गुरु विना, प्रगट छतांय परोक्ष; ॥३॥ सहु वस्तु पैसे मले, सद्गुरु वस्तु अमूल्य; अजित कहे श्रीगुरुविना, कर्यु कराव्यु धूल; ॥ ४ ॥
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