Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यकदृष्टि गुरुविना, कोण बतावणहार; सम्यक् दृष्टि विना तथा, कोण बचावणहार; ॥३॥ जैनधर्मना सुख भर्या, अति उत्तम मुनिराज; परोपकारी कार्यथी, सिध्यां सघलां काज; ॥४॥ एवा जन थोडा थशे, पावनपरम सुजाण; पूर्ण कृतार्थ बनी रह्या, मोक्षनु राख्यु मान; ॥५॥ ढाल. नाथ कैसे गजको बंध छुडायो-ए राग श्रावकव्रत भवजल तरवानो वारो, नावेगुरु विण पार किनारो, श्रावक० ए टेक. देशथी विरति पंचम गुणस्थानक, साची शान्तिनो उतारो; दीलडाना दोष बधा दूर करवा, समकित सद्गुण प्यारो, श्रावक० ॥१॥ कालने काप्या कंकासने काप्या, उत्तम आव्या विचारो; पाप अने ताप सघला हठाव्या, जाणे के काष हजारो; श्रावक० ॥२॥ प्रेम पावक केरी बलवंती ज्वाला, ध्याननो धूप छ सारो; स्याद्वाद दृष्टि घ्राणमार्गे थई, अध्यात्म गंध प्रसार्यों; श्रावक० ॥३॥ जगवासना केरो रोग हठाव्यो, मोह खपाव्यो छे खारो; सत्कीर्ति सहु जगमांही प्रसरी, उत्तम सहुना उच्चारो; श्रावक० ॥४॥ आत्म परात्मनुं ज्ञान प्रगट करी, ममतानो मार्यों ठठारो; For Private And Personal Use Only

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