Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ अ० ॥११॥ सदा रोगी तणा रोग कष्ट कापतारे. रहेशे विश्वमा अविचल नामनारे, अजितसूरि गुण गाय गुरु आपनारे. अ० ||१२|| काव्य. भविक निर्मलबोधविकासिने, प्रथितकी र्तियशोविशदात्मने । महतकर्मचयाय तमोहरं, विशददीपमहं परिकल्पये ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्री गुरुपदपूजार्थ दीपं यजामहे. स्वाहा. अथ षष्ठी अक्षत पूजा. दुहा— सर्व धर्मना मर्मने, समज्या श्री सूरि राज. नमन करे नरनाथ पण, शोभ्यां संयम साज, ध्यान धर्यु शुभ धर्मनुं, अवगुण कीथा त्याग; एक अविच प्रभु विषे, हतो घणो अनुराग. सर्व धर्म आचार्यनो, कर्यो हतो सहयोग, व्यापक दृष्टि बहु हती, करी शमन सहु शोक; ॥३॥ जगत तापथी तपितने, कल्पवृक्षनी छाय. शो महिमा मुख वर्ण, गुण गंभीर गुरु राय, आनन्द धनना अर्थनी, खरेखरी करी खोज; एक अलख आराधना, रसपूरण प्रभु रोज. ढाल - मा पावा ते गढथी उतयी महाकालीरे. ए राग अक्षत भक्तिना आपीये, सूरिराजारे. अमे क्लेश जगतना कापीये, गुण झाझारे, ॥५॥ For Private And Personal Use Only ॥१॥ ॥२॥ ॥४॥ ॥१॥

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