Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij
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ર૪
अनंत कालनी खोयेली वस्तु, पाम्या छे खोली पटारो;
श्रावक० ॥५॥ बहु गुणवंता बुद्धिसागरजी, अमने हवे न विसारो; अजितसागर विनवे अति भावे, जेवो तेवो हुं तमारो.
श्रावक० ॥६॥
काव्य. विषयवाजिवशीकरणौजसे, मदविषोद्धरणोत्तमशक्तये । मतिमतां हृदि निश्चितमूर्तये, गुरुवराय मुधुपमहं यजे ॥१॥
ॐ ह्री श्री गुरुपदपूजाथै धूपं समर्पयामि-स्वाहा.
अथ पंचमी दीपपूजा.
दुहा. योगाभ्यासी तन हतुं, योगाभ्यासी चित्त योगाभ्यासी भावथी, रुडी राखी रीत. चित्तष्ठत्तिओ रोकीने, कीधी एकाकार; ध्येय ध्यान व्यता तगा, जाण्या मूह मंकार. २ निर्मल जेनी प्रीतडी, निर्मल जेनी रीत: मन इन्द्रिय कवजे कयाँ, वात तजी विपरीत. ॥३॥ कोमल जेनी वाणीमां, वरसे अमृतधार; वली वलीने चरणमां, प्रणाम वार हजार. ॥४॥ शोध्या आगम निगमने, वली जाण्यु वेदांत; अन्य धर्मना सारने, सहज कयों विज्ञात; ॥५॥
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