Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij
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अथ द्वितीया चन्दनपूजा.
दुहा.
गुरु कर्या मन मानता, सुखसागर मुनिराय, सद्गुरु वचन सुण्या विना, भक्ति कदी नव थाय. ॥१॥ गुरु विण ज्ञान मले नही, गुरु वगर नही ध्यान; गुरु वगर गति नव मले, गुरु वण नही भगवान ॥२॥ गुरु बतावे ज्ञानथी, परमात्मानो पंथ; शुं समजे अज्ञात जन, समजे विरला संत. ॥३॥ शिष्य स्वभावे संगमां, करी सेवा अति श्रेष्ठ, संसारी सुख परहयाँ नक्की जाण्यां नेष्ट. ॥४॥ सद्गुरुमी करुणा वडे, उत्तम पाम्या ज्ञान: आ जन्मे जाणी लीधा, घट भीतर भगवान. ॥५॥
ढाल-अलबेलीरे अंबे मात. ए राग. छ महिमा अपरंपार, श्री सद्गुरु केरो आवे निर्मल आचार, जाय फोगट फेरो. ए टेक० श्री सद्गुरुजी ज्ञान प्रतापे, प्रगटे घटमां ज्ञान जो; नाय अंधारु अज्ञान केलं, थाय प्रभुनुं ध्यान. श्रीसद० ॥२॥ सद्गुरुनी छे करुणा सारी, जेवी चंदन छायजो; 'भवाटवीना ताप समूला, जीवडा केरा जाय; श्रीसद्॥२॥ सद्गुरु पासे दीक्षा पाम्या, पाम्या विमल विचारजो; धर्मध्यान पग पेमे पाम्या, बली उत्तम आचार.श्रीसद्॥३॥
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