Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
काव्य. भविकनिर्मलबोधविकासिने, प्रथितकीर्त्तियशोविशदात्मने । पहतकर्मचयाय तमोहरं, विशददीपमहं परिकल्पये ॥११॥
ॐ हीश्री सद्गुरुपदपूजार्थं दीपं यजामहे स्वाहा ॥
गुरु सेवारूपा षष्ठी अक्षत पूजा ॥ ६ ॥
दुहा. सद्गुरुनी पासे रही, सेवा करता नित्य: वण सेवा मेवा नही, ए सेवानी रीत. ॥१॥ महा वाट परलोकनी, गुरुविण नावे पार; सद्गुरुनी सेवावडे, झट आवे निस्तार. ॥२॥ अंधारी आ रातमां, सूझ पडे नही रंच; असत्य सत्य जणाय छे, ए मिथ्या छे संच. ॥३॥ हृदयद्वार सद्गुरु विना, कोण उघाडणहार ? सद्गुरु सेवन पुण्यनो, गणतां नावे पार. ॥४॥ गुरु गुरु गुरु मुखे रटे, धरे प्रभुनुं ध्यान; ए साधुनो धर्म छे, पामे पद निर्वाण. ॥५॥ ढाल-आवजो आवजो आवजोरे-व्हेनी ? राग. सेवा थकी सर्व सुख सांपडे, गुरुनी रुडी सेवा थकी,
___ सर्व सुख सांपडे; मुक्ति तणी जुक्ति हाथमां जडे, गुरुनी रुडी. ए टेक.
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102