Book Title: Gurupad Pooja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुण्य पूर्वतणां घणां जाग्यारे, मुख साधु तणां सारां लाग्यारे; दान गुरु पासे दीक्षानां माग्यां. श्रावक० ॥८॥ होय सत्यवैराग्यमां भावरे, पडशे प्रभुनो हृदयमां प्रभावरे, अजितसागरनो ए ठराव. श्रावक० ॥९॥ काव्य. विषयवाजिवशीकरणौजसे, मदविषोद्धरणोचमशक्त ये। मतिमतां हृदि निश्चितमूर्तये, गुरुवरायसुधूपमहं यजे ॥१॥ ॐ ही श्री सद्गुरुपदपूजार्थं धूपं समर्पयामि स्वाहा ॥ दीक्षाग्रहणस्वरूपा पंचमी दीपपूजा ॥५॥ दुहा. साधुपदथी सृष्टिमां, उपजे उत्तम ज्ञान; अनुकुलता सर्वे रीते, धरवा प्रभुनुं ध्यान ॥१॥ पंचमहाव्रत पालतां, आवे दीव्य प्रदेश: आ दीव्य आत्मा धारतो, दीव्य प्रभुनो वेष ॥२॥ सहु साधनमां श्रेष्ठ छे, मुनिना पंचाचार; ग्रहस्थ करतां श्रेष्ठ छे, त्याग दशा सुखकार. ॥३॥ त्याग विना मुक्ति नथी, भाखे श्री भगवंत: जन्म मरणना रोगनो, आवे त्यागे अंत. ॥४॥ समजु लोके समजवो, मीथ्या आ संसार; त्याग दशाए पामवो ऊर्ध्वलोक सुखकार. ॥५॥ For Private And Personal Use Only

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