________________
ॐ%A5%AECARRC-%%%
भगवान् श्रीमहावीरप्रभुए क्या भावो वर्णव्या छे!; आ प्रश्नना समाधानमा श्रीसुधर्मास्वामीजी जणावे छे के-हे जम्बू! भगवान् श्रीमहावीरे आ छट्ठा अंगना बे श्रुतस्कंध-"णायाणि-ज्ञातानि" एटले दार्टान्तिक अर्थनी सिद्धि माटे आपेला दृष्टान्तोना उदाहरणोना नामथी, अने बीजो श्रुतस्कंध बनेला बनाववानी नोधरूप धर्मकथाओना नामथी शास्त्रमा सुप्रसिद्ध छे, ज्ञाता नामना प्रथम श्रुतस्कंधना १९ ओगणीस अध्ययनो छे, अने धर्मकथा नामनो बीजो श्रुतस्कंध छे तेना १० वर्गो छ, अने बीजा श्रुतस्कंधना २०६ अध्ययनो छे. प्रथम श्रुतस्कंधना १९ अध्ययनोना नाम अनुक्रमे आ प्रमाणे छे. अनुक्रमे ज्ञात शब्दथी १ उरिक्षप्त, २ संघाटक, ३ अण्डक, | ४ कूर्म, ५ शैलक, ६ तुम्ब, ७ रोहिणी, ८ मल्ली, ९ माकन्दी, १० चन्द्र, ११ दावद्रव, १२ उदक, १३ दर्दुर, १४ तेतलीपुत्र, १५ नन्दीफल, १६ अपरकका, १७ आकीर्ण, १८ सुसुमा; अने १९ पुण्डरीक आ नामना ओगणीस अध्ययनो छे.
अत्र आ ग्रन्थना प्रथम विभागमा प्रथम उरिक्षप्त नामना अध्ययनथी मल्ली अध्ययन सुधीना आठे अध्ययनो लीधेला छे, तेथी अत्र आठ अध्ययनोनो सारांश आपेलो छे. अने ते सिवायना प्रथम श्रुतस्कंधना अगीआर अध्ययनो तथा बीजा श्रुतस्कंधना दशवर्गो
अने तेना सर्व अध्ययनोनो सारांश आ ग्रन्थना बीजा विभागमा आवशे... ___आ प्रथम-विभागरूप ग्रन्थनी सामग्रीओमा लगभग जैनशासननो झलकतो इतिहास छे, धर्मनी सन्मुख थनाराओने माटे अने पूर्वे धर्म पामेलाओने वधु स्थिर करवा माटे आ सामग्रीओ अमोघ साधनरूप छ; अने द्वितीय विभाग जे हवे पछी प्रकाशन करवामां आवशे ते पण पूर्व जणावेल बीना माटे मशहूर छे, अने रहशे.
SALAAAAAACANCanca