Book Title: Gnata Dharmkathangam
Author(s): Chandrasagarsuri
Publisher: Siddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
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॥३-अण्डकाख्यं ज्ञाताध्ययनम् ॥ अथ तृतीयमण्डकाख्यमध्ययनं, तस्य च पूर्वेण सहायं सम्बन्धः-अनन्तराध्ययने साभिष्वङ्गस्य निरभिष्वङ्गस्य च दोषगुणानभिदधता चारित्रशुद्धिर्विघेयतयोपदिष्टा, इह तु शङ्कितस्य निःशङ्कस्य च तानभिदधता संयमशुद्धेरेव हेतुभूता सम्यक्त्वशुद्धिविधेयतयोपदिश्यते, इत्येवं संबन्धस्यास्येदमुपक्षेपसूत्रम्
जति ण भंते !, समणेणं भगवया महावीरेणं दोचस्स अज्झयणस्स णायाधम्मकहाणं अयम? पन्नत्ते, तहअस्स अज्झयणस्स केअढे पण्णत्ते , *एवं खलु जंबू !, तेणं कालेणं २, चंपा नाम नयरी होत्या, वन्नओतीसे ण चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए सुभूमिभाए नाम उजाणे होत्था, सम्वोउय. सुरम्मे नंदणवणे इव सुहसुरभिसीयलच्छायाए समणुबद्धे, तस्स णं सुभूमिभागस्स उजाणस्स उत्तरओ एगदेसंमि मालुयाकच्छए वन्नओ, तत्थ णं एगा वरमऊरी दो पुढे परियागते पिटुंडीपंडुरे निव्वणे निरुवहए भिन्नमुढिप्पमाणे मऊरीअंडए पसवति२, सतेणं पक्खवाएणं सारक्खमाणी संगोवमाणी संविटे. माणी विहरति तत्थ णं चंपाए नयरीए दुवे सत्थवाहदारगा परिवसंति, तं०-जिणदत्तपुत्ते य सागरदत्तपुत्ते य, सहजायया सहवड्डियया सहपंसुकीलियया सहदारदरिसी अन्नमन्नमणुरत्तया अन्नमन्नमणुब्वयया अन्न१ नं व्याख्यायते त० अ । • • एतदन्तर्गतः पाठः 'अ' प्रतौ नास्ति । २ ° मयुरी. अ।
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