Book Title: Divsagar Pannatti Painnayam
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 18
________________ भूमिका विषय-सामग्री द्वीपसागरप्रज्ञप्ति से आगमों में गई है या आगमों की विषयवस्तु से ही द्वीपसागरप्रज्ञप्ति की रचना हुई है, किन्तु इतना निश्चित है कि द्वीप-समुद्रों का पद्य रूप में विवरण प्रस्तुत करनेवाला यह प्रथम एवं प्राचीन ग्रन्थ है। ... 'दीवसागरपण्णत्तिसंगहणीगाहाओ' नामक जो प्रकीर्णक मुनि पुण्य'विजय जी द्वारा संपादित 'पइण्णसुत्ताई' ग्रन्थ में प्रकाशित हुआ है उसके सन्दर्भ में मुनिश्री पुष्पविजय जी ने अपनी प्रस्तावना में यह प्रश्न उठाया है कि प्रस्तुत प्रकीर्णक और नन्दीसूत्र तथा पाक्षिकसूत्र में उल्लिखित द्वीप-सागरप्रज्ञप्ति एक ही है या भिन्न-भिन्न है, यह विचारणीय है।' पूज्य मुनिजी को इस प्रकीर्णक के सन्दर्भ में यह भ्रान्ति क्यों हुई ? यह हम नहीं जानते हैं। जहाँ तक 'द्वीपसागरप्रज्ञप्ति संग्रहणी गाथा' नामक प्रस्तुत प्रकीर्णक का प्रश्न है, यह वही प्रकीर्णक है-जिसका उल्लेख नंदीसूत्र और पाक्षिकसूत्र में है । क्योंकि एक तो इसकी भाषा आगमों की भाषा से भिन्न या परवर्ती नहीं लगती, दूसरे विषयवस्तु को दृष्टि से भी ऐसा कोई परवर्ती उल्लेख इसमें नहीं पाया जाता है जिससे इस प्रकीर्णक को उससे 'भिन्न माना जाय । इसकी विषयवस्तु आगमिक उल्लेखों के अनुकूल ही है, इस दृष्टि से भी इसके भिन्न होने की कल्पना नहीं की जा सकती है। यदि हम यह मानते हैं कि प्रस्तुत द्वीपसागरप्रज्ञप्ति संग्रहणीगाथा वह ग्रन्थ नहीं है जिसका उल्लेख स्थानांगसूत्र, नन्दीसूत्र एवं पाक्षिकसूत्र आदि आगम ग्रन्थों में हुआ है तो हमें यह कल्पना करनी होगी कि वह गद्य रूप में लिखित कोई विस्तृत ग्रन्थ रहा होगा और उस ग्रन्थ की -संग्रहणी के रूप में प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना हुई होगी। फिर भी इतना तो निश्चित सत्य है कि दोनों ग्रन्थों में विषयवस्तु की दृष्टि से कोई अन्तर नहीं रहा होगा । यदि हम इसे भिन्न ग्रन्थ मानते हैं तो भी यह मानने में कोई बाधा नहीं आती है कि इसका रचनाकाल ईस्वी सन् की ५वीं शताब्दी के लगभग हो, क्योंकि संग्रहणी देवद्धि की वाचना से पूर्व हो चुकी थी। आगमों में अनेक जगह कई उल्लेख 'गाहाओ' या 'संग्रहणी' के रूप में हुए हैं। अतः यह मानना उचित है कि 'दोवसागरपण्णत्तिसंगहणी गाहाओ' और स्थानांगसूत्र, नन्दीसूत्र तथा पाक्षिकसूत्र आदि ग्रन्थों में उल्लिखित 'दीवसागरपण्णत्ती' भिन्न-भिन्न नहीं होकर एक ही ग्रन्थ हैं। दिगम्बर परम्परा में द्वीपसागरप्रज्ञप्ति का उल्लेख षट्खण्डागम की १. मुनि पुण्यविजय-पइण्णयसुत्ताई-प्रस्तावना, पृष्ठ ५३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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