Book Title: Divsagar Pannatti Painnayam Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit SamsthanPage 45
________________ दीवसागरपण्णत्तिपइण्णय [३२] तेगिच्छि दाहिणओ, छक्कोडिसयाई कोडिपणपन्नं । पणतीसं लक्खाइं पण्णसहस्से ६५५३५५०००० अइवइत्ता ।। ओगाहित्ताणमहे चत्तालोसं भवे सहस्साई ४०००० । अभितरचउरंसा बाहिं वट्टा चमरचंचा ॥ एगं च सयसहस्सं १००००० वित्थिण्णो होइ आणुपुव्वीए। तं तिगुणं सविसेसं परीरएणं तु बोद्धव्वा ॥ (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा १७४-१७६ ) [३३] सयमेगं पणुवीसं १२५, बासटुिं जोयणाई अद्धं च ६२३ । एकत्तीस सकोसे ३१३ य ऊसिया, वित्थडा अद्धं ॥ (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा १८७) [३४] पासायस्स उ पुव्वुत्तरेण एत्थ उ सभा सुहम्मा उ। तत्तो य चेइयघरं उववायसभा य हरओ य॥ अभिसेक्का-ऽलंकारिय-ववसाया ऊसिया उ छत्तीसं ३६ । पन्नासइ ५० आयामा, आयामऽद्धं २५ तु वित्थिण्णा ॥ (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा १८८-१८९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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