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द्वीपसागरप्रज्ञप्ति प्रकीर्णक (११८-१२०) पूर्व दिशा में आठ, दक्षिण दिशा में आठ, पश्चिम दिशा में
आठ और उत्तर दिशा में भी आठ शिखर हैं । ( इस प्रकार ) रुचक पर्वत की चारों दिशाओं में (कुल बत्तीस ) ( शिखर ) हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-(१) कनक, (२) काञ्चन, (३) तपन, (४) दिशास्वस्तिक, (५) अरिष्ट, (६) चंदन, (७) अञ्जनमूल और (८) वज। अग्नि ज्वाला के समान नाना रत्नों से विचित्र प्रकाश करने वाले ये आठों ही शिखर रुचक पर्वत की पूर्व दिशा
में हैं।
(१२१-१२२) (१) स्फटिक, (२) रत्न, (३) भवन, (४) पद्म, (५) नलिन,
(६) शशि, (७) वेश्रमण और (८) वेड्र्य-ये आठ शिखर रुचक पर्वत की दक्षिण दिशा में हैं, (ऐसा ) जानना चाहिए। अग्नि में तपी हुई अनुपम मूर्ति के समान नाना रत्नों से विचित्रित
ये आठों ही शिखर रुचक पर्वत की दक्षिण दिशा की ओर हैं। (१२३-१२४) (१) अमोह, (२) सुप्रबुद्ध, (३) हिमवत्, (४) मंदिर,
(५) रुचक, (६) रुचकोत्तर, (७) चन्द्र और (८) सुदर्शन । अग्नि में तपी हुई अनुपम मूर्ति के समान नाना रत्नों से विचित्रित ये
आठों ही शिखर रुचक पर्वत की पश्चिम दिशा की ओर हैं। (१२५-१२६) (१) विजय, (२) वैजयन्त, (३) जयंत, (४) अपराजित,
(५) कुंडल, (६) रुचक, (७) रत्नोच्चय और उसी तरह (८) सर्वरत्न (शिखर ) जानना चाहिए। अग्नि ज्वाला की तरह नाना रत्नों से विचित्र प्रकाश करने वाले ये आठों ही शिखर रुचक पर्वत की उत्तर दिशा की ओर हैं।
(१२७-१४२. विशाकुमारियाँ और उनके स्थान) (१२७) इन शिखरों पर ( जितने ) पल्योपम स्थिति देवों की है, पूर्व
(आदि) दिशाओं के अनुक्रम से वही स्थिति दिशाकुमारियों
की है। (१२४-१२९) (१) नन्दोत्तरा, (२) नन्दा, (३) आनन्दा, (४) नंदिषेणा,
(५) विजया, (६) वैजयन्ती, (७) जयन्ती और उसी प्रकार (८) अपराजिता। ये आठ देवियाँ रुचक पर्वत पर पूर्व दिशा में हैं। रुचक पर्वत पर पूर्व दिशा में जो आठ शिखर हैं उन्हीं पर ये देवियां ( रहती ) हैं।
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