Book Title: Divsagar Pannatti Painnayam
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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दीवसागरपण्णत्तिपइण्णयं दीवाहिवईण भवे उववाओ दीवमज्झयारम्मि । उदहिस्स य आकीलादीवेसु सागरवईणं ॥१६५।।
[ गा० १६६-१७३. तेगिच्छो पव्वओ | रुयगाओ समुद्दाओ दीव-समुद्दा भवे असंखेज्जा। गंतूण होइ अरुणो दीवो, अरुणो तओ उदही ॥१६६।। बायालीस सहस्सा ४२००० 'अरुणं ओगाहिऊण दक्खिणओ। वरवइरविग्गहीओ सिलनिचओ तत्थ तेगिच्छी ॥१६७।।
सत्तरस एक्कवोसाइं जोयणसयाई १७२१ सो समुग्विद्धो। दस चेव जोयणसए बावीसे १०२२ वित्थडो हेट्ठा ॥१६८॥ चत्तारि जोयणसए चउवोसे ४२४ वित्थडो उ मज्झम्मि । सत्तेव य तेवीसे ७२३ सिहरतले वित्थडो होई ॥१६९।।
सत्तरसएक्कवीसाइं १७२१ पएसाणं सयाई गंतूणं । एक्कारस छन्नउया ११९६ वड्ढते दोसु पासेसु ॥१७०॥ बत्तीस सया बत्तीसउत्तरा ३२३२ परिरओ विसेसूणो । तेरस ईयालाई १३४१ "बावीसं छलसिया २२८६ परिही ॥१७१॥
रयणमओ "पउमाए वणसंडेणं च संपरिक्खित्तो। मज्झे असोउववेढो, अड्ढाइन्जाइं उविद्धो ॥१७२॥
विस्थिण्णो पणुवीसं तत्थ य सीहासणं सपरिवारं । नाणामणि-रयणमयं उज्जोवंतं दस दिसाओ ॥१७३॥
१. अरुणसमुद्रमित्यर्थः। २. तेगिच्छिनगाधोभागपरिधिः ।
३. तेगिच्छिनगमध्यभागपरिधिः । ४. तेगिच्छिनगशिखरतलपरिषिः । ५. पनवरवेदिकाया इत्यर्थः।
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