Book Title: Divsagar Pannatti Painnayam
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 127
________________ दीवसागरपण्णत्तिपइण्णय तासुप्परि महिंदज्झया य, तेसु पुरओ भवे नंदा । दसजोयण १० उव्वेहा, हरओ वि दसेव १० वित्थिण्णो ॥१९४॥ एसेव जिणघरस्स वि हवइ गमो, सेसियाण वि सभाणं । जं पि य से नाणत्तं पि य वोच्छं समासेणं ॥१९५॥ बहमज्झदेसे पेढिय, तत्थेव य माणवो भवे खंभो । चउवीसकोडिमंसिय बारसमद्धं च हेठुवरिं ॥१९६॥ फलया, तहियं नागदंतया य, सिक्का तहिं [च ] वइरमया। तत्थ उ होति समुग्गा, जिणसकहा तत्थ पन्नत्ता ॥१९७॥ माणवगस्स य पुग्वेण आसणं, पच्छिमेण सयणिज्जं । उत्तरओ सयणिज्जस्स होइ इंदज्झओ तुगो ॥१९८॥ पहरणकोसो इंदज्झयस्स अवरेण इत्थ चोप्पालो । फलिहप्पामोक्खाणं निक्खेवनिही पहरणाणं ॥१९९॥ जिणदेवछंदओ जिणघरम्मि पडिमाण तत्थ असयं १०८ । दो दो चमरधरा खलु, पुरओ घंटाण अट्ठसयं १०८ ॥२०॥ सेससभाण उ मज्झे हवंति मणिपेढिया परमरम्मा । तत्थाऽसणा महरिहा, उववायसभाए सयणिज्जं ॥२०॥ मुहमंडव पेच्छाहर हरओ दारा य सह पमाणाई । थूभा उ अट्ठ उ भवे दारस्स उ मंडवाणं तु ॥२०२॥ उव्विद्धा 'वीसं, उग्गया य वित्थिण्ण जोयणऽद्धं तु । माणवग महिंदझया हवंति इंदज्झया चेव ॥२०३॥ जिणदुम-सुहम्म-चेइयघरेसु जा पेढिया य तत्थ भवे । चउजोयण ४ बाहल्ला, अट्ठव ८ उ वित्थडाध्यामा ॥२०४॥ १. तीसं हं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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