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द्वीपसागरप्रज्ञप्ति प्रकीर्णक (१७४-२२५ चमरचंचा राजधानी) (१७४-१७६) ज्ञातव्य है कि तिगिछि पर्वत को लांघकर दक्षिण दिशा
की ओर छ: सौ पचपन करोड़ पैतीस लाख पचपन हजार (योजन) जाने पर और वहाँ से नीचे (रत्नप्रभा पृथ्वी की ओर) चालीस हजार (योजन) जाने पर चमरचंचा राजधानी है जो भीतर से चौरस और बाहर से वर्तुलाकार है। उसका विस्तार अनुक्रम से एक लाख योजन है और उसकी परिधि उससे तीन गुणा से कुछ अधिक है।
(१७७) ज्ञातव्य है कि चमरचंचा राजधानी का प्राकार सभी ओर से
डेढ़ सौ योजन ऊंचा है।
(१७८) उस स्वर्णमय प्राकार का विष्कंभ (चौड़ाई) मूल में पवास योजन,
मध्य में पच्चीस योजन तथा ऊपर में साढ़े बारह योजन है।
(१७९) प्राकार के सभी कपिशीर्षक (कंगूरे) आधा योजन लम्बे, एक कोस
चौड़े तथा कुछ कम आधा योजन ऊंचे हैं।
(१८०) प्राकार की एक-एक भुजा में पाँच-पाँच सौ दरवाजे हैं, उनकी
ऊँचाई ढाई सौ यौजन है।
(१८१-१८२) द्वारों तथा उसी प्रकार प्रवेश मार्ग का विस्तार पच्चीस सौ
(योजन) है। नगरी की चारों दिशाओं में पांच सौ योजन जाने पर चार वनखण्ड हैं। वे वनखण्ड एक हजार योजन से कुछ अधिक लम्बे तथा पाँच योजन चौड़े कहे गए हैं ।
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