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द्वीपसागरप्रज्ञप्ति प्रकीर्णक (१४१) इन सबकी स्थिति डेढ़ पल्योपम है और इन आठों ही शिखरों का
परस्पर में कोई भेद नहीं है।
(१४२) (१) पूर्व दिशा में स्वातिकूट, (२) पश्चिम दिशा में नंदनकूट, (३)
दक्षिण दिशा में लोकहित तथा (४) उत्तर दिशा में सर्वभूतहित (शिखर हैं)।
(१४३-१४८. दिग्रहस्ति शिखर )
(१४३-१४४) पूर्वादि दिशाओं के अनुक्रम से दिग्रहस्ति देवों के एक हजार
योजन वाले ये चार शिखर हैं-(१) पद्मोत्तर, (२) नीलवंत, (३) सुहस्ति और (४) अंजनगिरी । ये दिगहस्ति देव डेढ़ पल्योपम स्थिति वाले हैं।
(१४५-१४६) पूर्वादि दिशाओं के अनुक्रम से विद्युत् कुमारी देवियों के एक
हजार योजन वाले ये चार शिखर हैं-(१) पूर्व दिशा में विमल, (२) दक्षिण दिशा में स्वयंप्रभ, (३) पश्चिम दिशा में नित्यालोक' तथा (४) उत्तर दिशा में नित्योद्योत ।
१. प्रस्तुति कृति में पश्चिम दिशा के शिखर का नाम स्पष्टतः उल्लिखित नहीं
है किन्तु तिलोयपण्णत्ति (महाधिकार ५ गाथा १६०) में इस शिखर का नाम नित्यालोक (णिच्चालोयं) बतलाया गया है।
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