Book Title: Divsagar Pannatti Painnayam
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

Previous | Next

Page 95
________________ दीवसागरपण्णत्तिपइण्णय अंजणगपव्वयाण उ सयस्सहस्सं १००००० भवे अबाहाए। पुव्वाइआणुपुत्वी पोक्खरणीओ उ चत्तारि ।। ४१ ॥ पुव्वेण होइ नंदा' १ नंदवई दक्खिणे दिसाभाए २। अवरेण य णंदुत्तर ३ २नंदिसेणा उ उत्तरओ ४ ॥ ४२ ॥ एगं च सयसहस्सं १००००० वित्थिण्णाओ सहस्समोविद्धा १०००। निम्मच्छ-कच्छभाओ जलभरियाओ अ सव्वाओ ।। ४३ ॥ पुक्खरणीण चउदिसिं पंचसए ५०० जोयणाणऽबाहाए। पुव्वाइआणुपुत्वी चउद्दिसिं होंति वणसंडा ।। ४४ ॥ पागारपरिक्खित्ता सोहंते ते वणा अहियरम्मा । पंचसए ५०० वित्थिन्ना, सयस्सहस्सं १००००० च आयामा ॥ ४५ ॥ पुव्वेण असोगवणं, दक्खिणओ होइ सत्तिवन्नवणं । अवरेण चंपयवणं, चूयवणं उत्तरे पासे ॥ ४६ ॥ सवेसिं तु वणाणं चेइयरुक्खा हवंति मज्झम्मि । नाणारयणविचित्ताहिं परिगया ते वि दित्तीहिं ।। ४७ ॥ [गा. ४८-५१. दहिमुहपव्वया तदुवरि जिणाययणाणि य] रयणमुहा उ दहिमुहा पुक्खरणीणं हवंति मज्झम्मि। दस चेव सहस्सा १०००० वित्थरेण, चउसट्ठि ६४ मुग्विद्धा ॥४८॥ एकत्तीस सहस्सा छच्चेव सया हवंति तेवीसा ३१६२३ । उदहिमुहनगपरिखेवो किंचिविसेसेण परिहीणो ।। ४९ ॥ संखदल-विमलनिम्मलदहिघण-गोखीर-हारसंकासा । गगणतलमणुलिहिता सोहंते दहिमुहा रम्मा ।। ५० ।। पत्तेयं पत्तेयं सिहरतले होंति दहिमुहनगाणं । अरहंताययणाई सीहनिसाईणि तुंगाणि ॥ ५१ ॥ १. “नंदुत्तरा य नंदा आणंदा गंदिबद्धणा।" इति चत्वारि नामानि जीवाजीवा भिगमे दृश्यन्ते पत्र ३५७ । लोकप्रकाशेऽप्येतान्येव नामानि वर्तन्ते, किञ्च तत्र 'आणंदा' स्थाने 'सुनन्दा' नामोल्लेखो वर्तते । २. नंदिरसणा उ हं० । ३. नगदहिमुपरिक्खेवो प्र० ६० मु० । लेखकप्रमादजोऽयं विकृतः पाठः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142