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द्वीपसागरप्रज्ञप्ति प्रकीर्णक ( ८७-९७. कुण्डल पर्वत के भीतर सौधर्म ईशान
लोकपालों की राजधानियाँ) (८७) कुण्डल पर्वत की अभ्यन्तरपार्श्व में अर्थात् अन्दर की ओर सोलह
राजधानियाँ उत्तर दिशा में और सोलह दक्षिण दिशा में है।
(८८) उत्तर दिशा में जो सोलह (राजधानियां) हैं वे ईशान लोकपालों की
हैं तथा दक्षिण दिशा में जो सोलह (राजधानियां) हैं वे शक्र लोकपालों की हैं।
(८९) ( कुण्डल पर्वत के ) मध्य भाग में वैश्रमणप्रभ पर्वत नामक उत्तम
पर्वत है। ( यह पर्वत ) रतिकर पर्वत के समान ही गहरा, ऊँचा और विस्तार वाला है।
(९०-९१) उस पर्वत की चारों दिशाओं में जम्बूद्वीप के समान कथित
लम्बाई-चौड़ाई वाली ( ये चार ) राजधानियाँ हैं-(१) पूर्व दिशा में अचलभद्रा, (२) दक्षिण दिशा में मसक्सार, (३) पश्चिम दिशा में कुबेरा और(४) उत्तर दिशा में धनप्रभा ।
(९२-९३) इसी क्रम से पश्चिम दिशा में स्थित वरुणदेव को (ये चार) राज
धानियां हैं--(१) पूर्व दिशा में वरुणा, (२) दक्षिण दिशा में वरुणप्रभा, (३) पश्चिम दिशा में कुमुदा और (४) उत्तर दिशा में पुण्डरीकिणी।
(९४-९५) इसी क्रम से पश्चिम दिशा में स्थित सोमप्रभ पर्वत की चारों
दिशाओं में सोमदेव की (ये चार) राजधानियां हैं-(१) पूर्व दिशा में सोमा, (२) दक्षिण दिशा में सोमप्रभा, (३) पश्चिम दिशा में शिवप्राकारा और (४) उत्तर दिशा में नलिना।
(९६-९७) इसी क्रम से पश्चिम दिशा में स्थित यभवृत्तिप्रभ पर्वत को चारों
दिशाओं में अंतगदेव की (ये चार) राजधानियाँ हैं-(१) पूर्व दिशा में विशाला, (२) दक्षिण दिशा में अतिविशाला, (३) पश्चिम दिशा में श्वेतप्रभा और (४) उत्तर दिशा में अमृता।
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