Book Title: Divsagar Pannatti Painnayam
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 78
________________ [४०] [४१] Jain Education International दिगम्बर परम्परा मान्ये आगेम तुल्य ग्रन्थ द्वीपस्स प्रथमस्यास्य व्यन्तरोऽनादरः प्रभुः । सुस्थिरो लवणस्यापि प्रभास प्रियदर्शनी || कालश्चैव महाकाल : कालोदे दक्षिणोत्तरौ । पद्मश्च पुण्डरीकश्च पुष्कराधिपती सुरौ ॥ ( लोकविभाग, श्लोक ४/२४-२५ ) चक्षुष्मांश्च सुचक्षुश्च मानुषोत्तर पर्वते । द्वौ द्वावेवं सुरौ वेद्यौ द्वीपे तत्सागरेऽपि च ॥ श्रीप्रभ श्रीधरी देवी वरुणौ वरुणप्रभः । मध्यश्च मध्यमरचोभौ वारुणीवरसागरे ॥ पाण्ड (ण्डु )र: पुष्पदन्तश्च विमलो विमलप्रभः । सुप्रभस्य (श्च) घृताख्यस्य उत्तरश्च महाप्रभः ॥ कनक: कनकाभश्च पूर्णः पूर्णप्रभस्तथा । गन्धश्चान्यो महागन्धो नन्दी नन्दिप्रभस्तथा ॥ भद्रश्चैव सुभद्रश्च अरुणश्चारुणप्रभः । सुगन्धः सर्वगन्धश्च अरूणोदे तु सागरे ॥ एवं द्वीपसमुद्राणां द्वौ द्वावधिपती स्मृतौ । दक्षिण: प्रथमोक्तोऽत्र द्वितीयश्चोत्तरापतिः ॥ ( लोकविभाग, श्लोक ४ / २६-३१ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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