Book Title: Divsagar Pannatti Painnayam
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 63
________________ दीवसागरपणत्तिपइण्णय [४] तस्सुवरि माणुसनगस्स कूडा दिसि विदिसि होंति सोलस उ। तेसि नामावलियं अहक्कम कित्तइस्सामि ॥ (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ५) [५] पुग्वेण तिण्णि कूडा, दक्खिणओ तिण्णि, तिण्णि अवरेणं । उत्तरओ तिण्णि भवे चउद्दिसि माणुसनगस्स ॥ वेरुलिय १ मसारे २ खलु तहऽस्सगन्भे ३ य होंति अंजणगे ४ । अंकामए ५ अरि? ६ रयए ७ तह जायस्वे ८ य । नवमे य सिलप्पवहे ९ तत्तो फलिहे १० य लोहियक्खे ११ य । वइरामए य कूडे १२, परिमाणं तेसि वुच्छामि । ( द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ६-८) [६] एएसिं कूडाणं उस्सेहो पंच जोयणसयाइं ५०० । पंचेव जोयणसए ५०० मूलम्मि उ होति वित्थिन्ना ।। तिन्नेव जोयणसए पन्नत्तरि ३७५ जोयणाई मज्झम्मि । अड्ढाइज्जे य सए २५० सिहरतले वित्थडा कूडा ।। (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ९-१०) [७] दक्खिणपुव्वेण रयणकूडा(? डं) गरुलस्स वेणुदेवस्स । सव्वरयणं तु पुव्वुत्तरेण तं वेणुदालिस्स ॥ (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा १६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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