Book Title: Divsagar Pannatti Painnayam Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit SamsthanPage 67
________________ ५८ दीवसागरपण्णतिपइर्णिय [१४] एगं च सर्वसहस्सं १००००० वित्थिण्णाओ सहस्समोविद्धा १००० । निम्मच्छ - कच्छभाओ जलभरियाओ अ सव्वा ॥ ( द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, गाथा ४३ ) [१५] पुक्खरणीण चउदिसि पंचसए ५०० जोयणाण बाहाए । पुव्वाइआणुपुव्वी चउद्दिस होंति पागारपरिक्खित्ता सोहंते ते वर्णसंडा ॥ अहियरम्मा | वणा पंचसए ५०० वित्थिन्ना, सयस्सहस्सं १००००० च आयामा ॥ पुव्वेण असोगवणं, दक्खिणओ होइ सत्तिवन्नवर्ण । अवरेण चंपयवणं, चूयवणं उत्तरे पासे ॥ ( द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ४४-४६ ) [१६] रयणमुहा उ दहिमुहा पुक्खरणीणं हवंति मज्झम्मि । दस चेव सहस्सा १०००० वित्यरेण, चउसट्ठि ६४ मुविद्धा ॥ ( द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ४८ ) [१७] जो दक्खिणअंजणगो तस्सेव चउद्दिसि च बोद्धव्वा । पुक्खरिणी चत्तारि वि इमेहि नामेहि विनेया ॥ पुवेण होइ भद्दा १, होइ सुभद्दा उ दक्खिणे पासे २ । अवरेण होइ कुमुया ३, उत्तरओ पुंडरिगिणी उ४ ॥ ( द्वीप साग र प्रज्ञप्ति, गाथा ५२-५३ ) [१८] अवरेण अंजणो जो उ होइ तस्सेव चउदिसि होंति । पुक्खरिणीओ, नामेहिं इमेहिं चत्तारि विनेया ॥ पुवेण होइ विजया १, दक्खिणओ होइ वैजयंती उ२ । अवरेणं तु जयंती ३, अवराइय उत्तरे पासे ४ ॥ Jain Education International ( द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, गाथा ५४-५५ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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