Book Title: Divsagar Pannatti Painnayam
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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५६
दीव सागरपण्णत्तपइण्णयं
[८] रयणस्स अवरपासे तिणि वि समइच्छिऊण कूडाईं । कूड वेलंबस उ विलंब सुहियं सपा होइ ॥
( द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा १७ )
[९] सव्वरयणस्स अवरेण तिण्णि समइच्छिऊण कूडाई । कूडं पभंजणस्सा पभंजणं आढियं होइ ॥
( द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा १८ )
[१०] तेवद्वं कोडिसयं चउरासीइं च सय सहस्साई १६३८४००००० । नंदीसरवरदीवे
विक्खंभो
चक्कवाले ॥
( द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा २५ )
[११] गासि
एगनउया पंचाणउई भवे सहस्साइं । तिण्णेव जोयणसए ८१९१९५३०० ओगाहित्ताण अंजणगा ॥ ( द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, गाथा २६ )
[१२] चुलसीइ सहस्साई ८४००० उव्विद्धा, ते गया सहस्समहे १००० | धरणियले वित्थिण्णा अणूणगे ते दस सहस्से १०००० ॥ ( द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, गाथा २७ )
[१३] अंजणगपव्वयाण उ सयस्सहस्सं १००००० भवे अबाहाए । पुव्वाइआणुपुव्वो पोक्खरणीओ उ चत्तारि ॥
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पुव्वे होइ नंदा १ नंदवई दक्खिणे दिसाभाए २ । अवरेण य णंदुत्तर ३ नंदिसेणा उ उत्तरओ ४ ॥
( द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ४१-४२ )
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