Book Title: Divsagar Pannatti Painnayam
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 71
________________ दोबसागस्पण्पत्तिपइम्पयं [२४] पुग्वेण होंति कूडा चत्तारि उ, दक्खिणे वि चत्तारि । अवरेण वि चत्तारि उ, उत्तरआ होति चत्तारि ॥ (द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, गाथा ७६ ) १२५] वइरपभ १ वइरसारे २ कणगे ३ कणगुत्तमे ४ इय। रत्तप्पभे ५ रत्तधाऊ ६ सुप्पभे ७ य महप्पभे ८॥ मणिप्पभे ९ य मणिहिये १० रुयगे ११ एगवंडिसए १२ । फलिहे १३ य महाफलिहे १४ हिमवं १५ मंदिरे १६ इय ॥ (द्वोपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ७७-७८) २६] एएसिं कूडाणं उस्सेहो पंच जोयणसयाई ५०० । पंचेव जोयणसए ५०० मूलम्मि उ वित्थडा कूडा॥ तिन्नेव जोयणसए पन्नत्तरि ३७५ जोयणाई मज्झम्मि । अड्ढाइज्जे सए २५० सिहरतले वित्थडा कूडा ॥ (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ७९-८०) [२७] ख्यगवरस्स य मज्झे णगुत्तमो होइ पन्वो ख्यगो। पागारसरिसरूवो रुयगं दीवं विभयमाणो ।। (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ११२ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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